द बैड्स ऑफ बॉलीवुड केस: 'फिल्मी किरदार और मुझमें चार समानताएं', समीर वानखेड़े ने दिल्ली हाई कोर्ट को सौंपा जवाब

वानखेड़े ने बताया कि इस मानहानि के कारण केवल उन्हें ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नी और बहन को भी लोगों से लगातार आपत्तिजनक और गंदे संदेश मिल रहे हैं.

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आई.आर.एस अधिकारी समीर वानखेड़े ने शाहरूख खान की कंपनी रेड चिलीज के खिलाफ दायर मानहानि के मामले में अपना जवाब दिल्ली हाई कोर्ट को सौंपा है. वानखेड़े ने ये मुकदमा रेड चीलीज के शो बैड्स औफ बॉलीवुड के जरिये अपनी छवि को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए दर्ज किया था. उनके मुताबिक शो में दिखाये गये एनसीबी अधिकारी के किरदार और उनके बीच चार स्पष्ट समानताएं हैं -

  • शारीरिक रूप से समानता: पात्र का उनके चेहरे और शरीर की बनावट से काफी मेल है.
  • काम करने का तरीका और हावभाव: पात्र के बोलने का ढंग, काम करने का तरीका और हावभाव वानखेड़े से मिलते-जुलते हैं.
  • हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारी: पात्र फिल्म उद्योग से जुड़े एक प्रभावशाली व्यक्ति को गिरफ्तार करता है, जो आर्यन खान की गिरफ्तारी की घटना से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है.
  • सबसे गंभीर बात, पात्र बार-बार "सत्यमेव जयते" शब्द का उपयोग करता है. वानखेड़े ने बताया कि यह वही शब्द है जो वह आर्यन खान मामले की जांच के दौरान मीडिया से बात करते हुए अक्सर इस्तेमाल करते थे. वानखेड़े ने कहा कि इस राष्ट्रीय आदर्श वाक्य का अपमानजनक तरीके से उपयोग करना किसी भी कीमत पर उपहास या मजाक नहीं माना जा सकता.

काल्पनिक होने का दावा झूठा

वानखेड़े ने कहा कि आर्यन खान ने खुद एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि यह सीरीज़ "कुछ असलियत से प्रेरित" है. यह बयान खुद साबित करता है कि रेड चिलीज का 'पूरी तरह काल्पनिक' होने का दावा झूठा है. वानखेड़े ने जोर देकर कहा कि बदनाम करने वाली सामग्री और उसका लहजा साफ दिखाता है कि इसका मकसद कोई कलात्मक कहानी सुनाना नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और संस्थागत प्रतिशोध लेना और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना है.

परिवार पर हमला और 'पतली चमड़ी' का आरोप

वानखेड़े ने बताया कि इस मानहानि के कारण केवल उन्हें ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नी और बहन को भी लोगों से लगातार आपत्तिजनक और गंदे संदेश मिल रहे हैं. उन्होंने रेड चिलीज के इस आरोप को खारिज किया कि वह 'पतली चमड़ी' वाले अधिकारी हैं. उन्होंने कहा कि एक सरकारी अधिकारी को सार्वजनिक पद पर होने के कारण निराधार बदनामी चुपचाप सहने की उम्मीद नहीं की जा सकती. यह उनके और उनके परिवार के मौलिक संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की मांग है.

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