उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संभल में एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं.लक्ष्मण गंज में स्थित एक प्राचीन बावड़ी के रहस्यों को उजागर करने के लिए राज्य पुरातत्व विभाग की टीम ने खुदाई शुरू की है.भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम ने बुधवार को चंदौसी क्षेत्र में स्थित पृथ्वीराज चौहान की बावड़ी का निरीक्षण किया. डीएम-एसपी के साथ टीम के लोगों ने बावड़ी के अंदर जाकर, दीवारों को छूकर पूरा निरीक्षण किया. टीम ने तोता-मैना की कब्र भी देखी.
अब तक क्या-क्या मिला है?
- चंदौसी क्षेत्र में खुदाई के दौरान एक गुप्त सुरंग और बावड़ी मिली है.
- संभल में बांके बिहारी मंदिर के पास खुदाई के दौरान 'रानी की बावड़ी' नामक एक प्राचीन बावड़ी मिली है.
- इस बावड़ी में सुरंग जैसी संरचनाएं मिली है जिसके ऐतिहासिक महत्व को लेकर लगातार खुलासे हो रहे हैं.
- सुरंग का निर्माण 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित माना जा रहा है.
- खुदाई में मिट्टी के बर्तन, ईंटें और पत्थरों की कलाकृतियां भी मिली है.
- नीमसार का कुआं में खुदाई के दौरान जल मिला है. यहां 10-12 फीट की गहराई पर जल है.
- तोता-मैना की कब्र थोड़ी जीर्ण हालत में मिली है. उसे सुरक्षित करने का कार्य किया जाएगा.
- राजपूत काल की बावड़ी जो कि पृथ्वीराज के समय में बनी थी, वह बहुत सुंदर और भव्य है, उसे भी सुरक्षित करने की योजना है.
संभल को बड़े पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित करने की है योजना
डीएम ने कहा कि यहां 200 से लेकर 250 ऐसे स्थान होंगे, जहां पर लोग आएंगे, दो-चार दिन का समय बिताएंगे. हम कहेंगे - "एक दिन गुजारिए संभल में". हम सभी कूपों को संरक्षित कर रहे हैं. एक कूप जल्दी ही सामने होगा. यहां के स्थान का भ्रमण किया जा रहा है. संभल के कुछ स्थानीय लोगों ने मंदिर के पास ही गली में स्थित खाली प्लॉट में बावड़ी होने का दावा किया था. डीएम के आदेश पर उसी दिन खुदाई शुरू की गई तो बावड़ी अस्तित्व में आने लगी. रोजाना सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक खुदाई का कार्य चल रहा है.
1857 से जुड़े हैं बावड़ी के तार
बावड़ी को लेकर दावे किए जा रहे हैं कि इसका निर्माण 1857 में हुआ था. इसके अंदर 12 कमरे, एक कुआं वो सुरंग है.अब तक के खुदाई में 4 कमरे स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं. 2 जेसीबी की मदद से खुदाई का कार्य जारी है. हालांकि ढांचे को कोई नुकसान न हो इसके लिए बेहद सावधानी बरती जा रही है.
बावड़ी क्यों महत्वपूर्ण है?
बावड़ी (जिसे बाउरी, बावली, या वाव भी कहा जाता है) एक पारंपरिक जल संरचना है, जिसे प्राचीन भारत में पानी के संरक्षण और भंडारण के लिए बनाया जाता था. यह सीढ़ीनुमा कुएं की तरह होती है, जिसमें लोग सीढ़ियों के जरिए पानी तक पहुंच सकते हैं. यह भारतीय स्थापत्य और जल प्रबंधन प्रणाली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए भी इनका उपयोग होता था.बावड़ी पानी को सहेजने का एक कुशल तरीका था, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी थी. यह केवल जल भंडारण का स्थान नहीं, बल्कि एक सामाजिक और धार्मिक केंद्र भी हुआ करता था. गर्मियों में यह जगह ठंडक का अहसास देती थी.समय के साथ बावड़ियों का उपयोग कम हो गया, लेकिन आज ये ऐतिहासिक धरोहर और पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है.
जानें कुएं में क्या-क्या मिला
संभल में खुदाई के दौरान गणेश जी की मूर्ति, स्वास्तिक अंकित ईंटें, गौरा पार्वती जी की मूर्ति मिली है. जब मंदिर के पास स्थित पुराने कुएं की मजदूरों ने खुदाई की तो उन्हें तीन मूर्तियां मिली. गणेश-लक्ष्मी जी की एक मूर्ति के अलावा गौरा पार्वती जी की खंडित मूर्ति और स्वस्तिक के चिह्न वाली ईंट निकली है. नखासा थाना क्षेत्र के मोहल्ला दीपा सराय से सटे खग्गू सराय में लगभग 46 साल से बंद पड़े एक पुराने शिव मंदिर को प्रशासन ने शनिवार को खुलवाया था. प्रशासन की टीम इलाके में बिजली चोरी पकड़ने गई थी और इसी दौरान ये मंदिर मिला था.
संभल को लेकर कैसे हरकत में आयी यूपी सरकार
संभल में हाल ही में प्राचीन बावड़ी और सुरंग की खोज के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने त्वरित कार्रवाई की है.मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर, ASI की टीम को तत्काल प्रभाव से संभल भेजा गया है. वे इन संरचनाओं की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की जांच कर रहे हैं. स्थानीय समुदाय को इन खोजों के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं, जिससे वे इन धरोहरों के संरक्षण में सहयोग कर सकें. कई जगहों पर दोनों समुदाय के लोग सरकार के कदमों का स्वागत भी कर रहे हैं.
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