- भारत और रूस की दोस्ती आजादी के बाद से हर मुश्किल समय में मजबूत और स्थायी रही है.
- 1971 में भारत-रूस ने शांति, मित्रता और सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे रिश्ते मजबूत हुए.
- भारत ने आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर में रूस से प्राप्त एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली का उपयोग किया था.
भारत और रूस की दोस्ती बेहद पुरानी है. इस दोस्ती की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है. भारतीय फिल्मों से लेकर हथियारों तक में रूस और भारत की दोस्ती की गहरी छाप देखने को मिलती है. भारत की आजादी के बाद से हर मुश्किल समय में रूस ने भारत का साथ दिया है. फिर चाहे भारत के सामने अमेरिका खड़ा हो या फिर ग्रेट ब्रिटेन. 1966 का ताशकंद समझौता हो, 1971 और 1999 के कारगिल युद्ध हों, रूस हर बार भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे. भारत-रूस की दोस्ती के लिए आज का दिन बेहद खास है. आज ही के दिन 9 अगस्त, 1971 को भारत और सोवियत संघ ने 'शांति, मित्रता और सहयोग की संधि' पर हस्ताक्षर किए गए थे. यह संधि 20 वर्षों के लिए वैध थी.
ऑपरेशन सिंदूर में ढाल बना S-400 रूस से मिला
22 अप्रैल 2025 को जम्मू और कश्मीर के अनन्तनाग ज़िले में पहलगाम के पास बैसरन घाटी पर एक आतंकवादी हमला हुआ, जिसमें 26 लोग मारे गए. इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर चलाया था. इसके बाद पाकिस्तान, आतंकियों के समर्थन में कूद पड़ा. इस संघर्ष में भारत में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी. भारत ने इस संघर्ष के दौरान जिन ब्रह्मोस जैसी खतरनाक क्रूज मिसाइलों से पाकिस्तान को जवाब दिया, वो रूस के सहयोग से ही बनी हैं. इसके अलावा पाकिस्तान की ओर से दागी गई मिसाइलों को भारत ने अपनी सीमा में घुसने से पहले ही हवा में नष्ट कर दिया. ये एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम से संभव हो पाया. ये मिसाइल डिफेंस सिस्टम भारत ने रूस से ही खरीदा है. अब रूस ने भारत को अपने पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट सुखोई Su-57E के संयुक्त निर्माण और 100% तकनीकी हस्तांतरण का प्रस्ताव दिया है. यह प्रस्ताव भारत की वायुसेना को मजबूत बनाने में मदद कर सकता है.
1971 युद्ध: अमेरिका-ब्रिटेन के सामने दीवार बन खड़ा हो गया था रूस
भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में युद्ध हुआ, जिसके बाद बांग्लादेश का बना था. इस युद्ध के दौरान पाकिस्तान की मदद के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने जहाज बंगाल की खाड़ी की ओर भेज दिये थे. ये बात जब रूस को पता चली, तो उसने अपने नौसैनिक जहाज बंगाल की खाड़ी में तैनात कर दिये. रूस एक दीवार की तरह अमेरिका और ब्रिटेन के जहाजों के सामने खड़ा हो गया था, जिससे अमेरिकी और ब्रिटिश जहाजों को पीछे हटना पड़ा था. इस युद्ध में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर किया था और बांग्लादेश का जन्म हुआ था.
पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को मदद
1970 में भारत परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाह रहा था. लेकिन पश्चिमी देशों को ये मंजूर न था. ऐसे में भारत के परमाणु कार्यक्रम पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगा दिया था. ऐसे में भारत के समर्थन में रूस सामने आया था. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद रूस ने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को तकनीकी सहायता दी थी. रूस ने भारत को परमाणु रिएक्टर और ईंधन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र में रूसी सहायता एक प्रमुख उदाहरण है. इसके बाद, रूस ने भारत के साथ परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए कई समझौते किए थे. इन समझौतों में कुडनकुलम में और रिएक्टरों का निर्माण, महाराष्ट्र के तारापुर रिएक्टर के लिए कम समृद्ध यूरेनियम ईंधन की आपूर्ति भी शामिल है.
1962 के चीन युद्ध में भारत के साथ खड़ा था रूस
भारत और चीन के बीच हुए 1965 के युद्ध में रूस हमारे साथ खड़ा था. युद्ध के दौरान रूस ने सीधे सैन्य हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन उसने भारत को हथियार और सैन्य उपकरण उपलब्ध कराए थे. उस समय भारत के पास हथियारों की भारी कमी है, ऐसे में रूस की मदद काफी अहम थी. इस दौरान रूस ने चीन को भी हथियार बेचना बंद कर दिया था, जिससे भारत पर दबाव कम हुआ. रूस ने भारत के साथ अपनी दोस्ती निभाने के लिए अपने व्यापार को भी ताक पर रख दिया था. ये दोस्ती की मिसाल दुनिया में उस समय कम ही देखने को मिलती थी. इतना ही नहीं भारत-चीन युद्ध के बाद रूस ने ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement) में मध्यस्थता की थी. इस अहम समझौते से युद्ध खत्म हुआ और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध बहाल हुए, जिसमें रूस ने अहम भूमिका निभाई.
अंतरिक्ष में उड़ान भरने में सहयोग
भारत आज अंतरिक्ष में लंबी-लंबी छलांग लगा रहा है, इसके पीछे भी रूस का सहयोग रहा है. रूस ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. भारत का पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट सोवियत संघ की मदद से तैयार किया गया था, जिसे 1975 में लॉन्च किया गया था. आर्यभट्ट का नाम प्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था.
रूस की लाल टोपी
भारतीय फिल्मों में भी रूस का जिक्र देखने को मिलता है. राज कपूर की कल्ट फिल्म आवारा के गाने, 'मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिश तानी के एक हिस्से 'सिर पे लाल टोपी रूसी' का जिक्र है. पीएम मोदी ने भी 2024 में रूस के दौरे में लाल टोपी वाली दोस्ती का जिक्र किया था. भारत की राजनीति में भी इस लाल टोपी का खासा महत्व देखने को मिलता है. रूस की लाल टोपी को वहां की भाषा में बाड्योनोवका कहते हैं. ये एक खास प्रकार की लाल टोपी होती थी. साल 1917 में जब रूसी क्रांति की शुरुआत हुई, तो उस पर पूरी दुनिया की नजरें थीं. यहां जिन क्रांतिकारियों ने रूस में राजशाही का अंत किया, उनके सिर पर लाल टोपी होती थी. रूस की लाल टोपी एक तरह से उनकी सबसे बड़ी क्रांति का प्रतीक है.