आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आज दिल्ली में मुस्लिम बुद्धिजिवियों और इमामों से मिलने कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित मस्जिद में महरहूम मौलाना जमील इल्यासी की मज़ार पर पहुंचे.भागवत ने उनकी मजार पर फूल चढ़ाए. दरअसल, वह डॉ जमील इलियासी की बरसी पर यहां पहुंचे थे. उनके साथ संघ के इंद्रेश , रामलाल और कृष्णगोपाल मौजूद रहे. बैठक में इमाम उमर इलियासी और शोएब इलियासी भी मौजूद रहे. डॉ इमाम उमर इलियासी ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख हैं. मोहन भागवत लगभग एक घंटे मस्जिद में रुके.
डॉ जमील इलियासी के बेटे शोएब इलियासी ने कहा कि मोहन भागवत का आना मुल्क के लिए बड़ा संदेश हैं. हमारे लिए ये खुशी का मौका है. मोहब्बतों का पैगाम है. इसे इतना ही देखा जाना चाहिए. इसमें नहीं पड़ना चाहिए कि मोहन भागवत मस्जिद क्यों गए आदि. मुल्क के लिए ये सुखद परिस्थिति है. इससे मोहब्बत का एक पैगाम जाता है. शोएब ने ये भी कहा कि मोहन भागवत ऐसे नहीं हैं, जैसी कि उनकी छवि पेश की जाती है. उन्होंने श्रीमदभागवत गीता पर लिखी मेरी किताब को देखा और सराहा. वे एक पारिवारिक कार्यक्रम के तहत यहां आए थे.
बता दें कि आरएसएस ने हाल ही मुसलमानों से संपर्क बढ़ाया है और भागवत ने समुदाय के नेताओं के साथ कई बैठकें की हैं. पिछले साल भी उन्होंने मुंबई के एक होटल में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक समूह के साथ मुलाकात की थी. सितंबर 2019 में भागवत ने दिल्ली में आरएसएस कार्यालय में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना सैयद अरशद मदनी से भी मुलाकात की थी.
गौरतलब है कि मुस्लिम समुदाय के कुछ बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat)से पिछले महीने मुलाकात की थी. इस दौरान हिंदू-मुस्लिम के बीच सौहार्द के लिए काम करने पर सहमति बनी है. RSS ने हाल के दिनों में मुसलमानों से संपर्क बढ़ाया है. इन मुस्लिम बुद्धिजीवियों में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग भी शामिल थे. NDTV से बातचीत में कुरैशी ने बताया कि 22 अगस्त को मुस्लिम बुद्धिजीवियों से संघ प्रमुख भागवत मिले थे. इस दौरान पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ़ नुपुर शर्मा के बयान पर चर्चा हुई थी. इसके अलावा बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद के विषय में भी बातचीत हुई.
कुरैशी ने बताया कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने इस मुलाकात के लिए वक्त मांगा था. बातचीत के दौरान भागवत ने गौकशी और हिंदुओं को काफ़िर कहने पर आपत्ति जताई थी, दूसरी ओर, मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने हर मुसलमान को शक की निगाह से देखने पर अपनी चिंता का इजहार किया था.