यह देश सबका है, लोगों को जाति, धन या भाषा के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए... रायपुर में बोले मोहन भागवत

सरसंघचालक मोहन भागवत ने सप्ताह में एक दिन साथ बिताकर, प्रार्थना करके, घर का बना खाना साझा करके और तीन से चार घंटे तक बातचीत करके पारिवारिक मेलजोल को फिर से शुरू करने की जरूरत पर जोर दिया.

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नए साल से पहले RSS प्रमुख मोहन भागवत का बड़ा बयान
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  • RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जाति, भाषा और धन के आधार पर लोगों को आंका न जाए इसकी आवश्यकता पर जोर दिया
  • भागवत ने सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण संरक्षण और अनुशासित नागरिक जीवन के प्रति जनता को जागरूक करने का आह्वान किया
  • परिवार में संवाद और मेलजोल बढ़ाने के लिए सप्ताह में एक दिन मिलकर बातचीत और प्रार्थना करने की सलाह दी गई
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नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को एक बड़ा बयान दिया. उन्होंने अपने इस बयान में कहा कि लोगों को जाति, धन या भाषा के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि यह देश सभी का है.भागवत ने सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण की जिम्मेदारी और अनुशासित नागरिक जीवन का आह्वान किया तथा लोगों से मतभेदों से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया.

देश सबका है और यही भावना सच्चा सामाजिक सद्भाव है

छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के सोनपैरी गांव में ‘हिंदू सम्मेलन' को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि सामाजिक सद्भाव की दिशा में पहला कदम अलगाव और भेदभाव की भावनाओं को दूर करना है.भागवत ने कहा कि देश सबका है और यही भावना सच्चा सामाजिक सद्भाव है. उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमें सिर्फ आध्यात्मिक सभाओं या चर्चाओं में कही गई बातों को सुनना नहीं चाहिए. हमें उन्हें अमल में लाना चाहिए. हमें पांच चीजें करने की जरूरत है.उन्होंने सामाजिक सद्भाव, पारिवारिक मूल्यों, स्वदेशी उत्पादों को अपनाने और अनुशासित नागरिक बनने के साथ पर्यावरण संबंधी जिम्मेदारियों को निभाने का आह्वान किया.आरएसएस प्रमुख ने कहा कि सामाजिक सद्भाव की दिशा में पहला कदम अलगाव और भेदभाव की भावनाओं को दूर करना है.

सभी को अपना मानें

उन्होंने कहा कि जिस इलाके में आप रहते हैं और घूमते हैं, वहां सभी हिंदुओं में आपके दोस्त होने चाहिए. हम सभी हिंदुओं को एक मानते हैं, लेकिन दुनिया हिंदुओं के बीच जाति, भाषा, क्षेत्र और संप्रदाय के आधार पर अंतर देखती है. दुनिया जिनके बीच अंतर करती है, आपके उन सभी में दोस्त होने चाहिए. आज से ही शुरू करें. लोगों को जाति, धन, भाषा या क्षेत्र के आधार पर न आंकें. सभी को अपना मानें. सब अपने हैं सब भारतवासी मेरे अपने हैं, पूरा भारत मेरा अपना है.

लोगों को समझाना जरूरी

उन्होंने इस दृष्टिकोण को ‘सामाजिक समरसता' बताते हुए इस बात पर जोर दिया कि  मंदिर, जल निकाय और श्मशान घाट, चाहे किसी ने भी स्थापित किए हों, सभी हिंदुओं के लिए खुले होने चाहिए. उन्होंने सामाजिक कार्य को एकता का प्रयास बताया, न कि संघर्ष का.मोहन भागवत ने कहा कि जो लोग सभी को अपना मानते हैं और जिनके विचार आपके क्षेत्रों में प्रभावशाली हैं, उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके क्षेत्र में पानी के स्रोत जैसे तालाब, कुएं, पूजा स्थल जैसे मंदिर और मठ, और यहां तक कि श्मशान घाट भी सभी हिंदुओं के लिए खुले हों, भले ही उन्हें किसी ने भी बनवाया हो. लोगों को यह समझाएं और शांतिपूर्ण तरीके से इसे करने की कोशिश करें. इसके लिए कोई लड़ाई या हिंसा नहीं होनी चाहिए. क्योंकि यह एकता का काम है, संघर्ष का नहीं.

उन्होंने कहा कि जब लोग अकेलापन महसूस करते हैं तो वे अक्सर बुरी आदतों में पड़ जाते हैं. परिवारों के भीतर नियमित बातचीत और संवाद इसे रोकने में मदद कर सकता है. सरसंघचालक ने सप्ताह में एक दिन साथ बिताकर, प्रार्थना करके, घर का बना खाना साझा करके और तीन से चार घंटे तक बातचीत करके पारिवारिक मेलजोल को फिर से शुरू करने की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने इसे ‘मंगल संवाद' बताया.उन्होंने आगे कहा कि वे परिवार में इस बात पर चर्चा कर सकते हैं कि वे कौन हैं, उनकी परंपराएं क्या हैं, उनके पूर्वज कैसे रहते थे, और उन्होंने अच्छे आचरण के कौन से उदाहरण पेश किए.

भागवत ने कुटुंब प्रबोधन की अवधारणा पर जोर दिया और कहा कि व्यक्तियों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वे रोजाना समाज और राष्ट्र के लिए कितना समय और संसाधन समर्पित करते हैं.उन्होंने कहा कि अगर देश खतरे में है, तो परिवार भी खतरे में है.भागवत ने इस दौरान दैनिक जीवन में मूल्यों का पालन करने का आह्वान किया.‘ग्लोबल वार्मिंग' और पर्यावरण के क्षरण पर चिंता व्यक्त करते हुए भागवत ने लोगों से पानी बचाकर, वर्षा जल संचयन करके, एकल उपयोग प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करके और अधिक पेड़ लगाकर अपने घरों से ही संरक्षण के प्रयास शुरू करने का आग्रह किया.

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