संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बताया, हिंदू होने का क्या मतलब; हिंदुओं के 4 प्रकार भी बताए

संघ के 100 वर्षों की यात्रा पर बेंगलुरू में आयोजित कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा कि सभी मुसलमान और ईसाई के पूर्वज भी इसी भूमि के रहे हैं, इसलिए वे सभी भी हिंदू हैं.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को बेंगलुरू में एक कार्यक्रम में हिंदू होने का मतलब बताया. उन्होंने कहा कि हिंदू होने का अर्थ है, भारत माता के वंशज, भारत के लिए जिम्मेदार. जो भी भारत के लिए लड़े, वे सभी हिंदू हैं. सभी मुसलमान और ईसाई के पूर्वज भी इसी भूमि के रहे हैं, इसलिए वे सभी भी हिंदू हैं. मुसलमानों में भी माना जाता है कि जब तक वतन की मुट्ठी भर मिट्टी जनाजे में नहीं पड़ती, तब तक जन्नत नसीब नहीं होती.

4 तरह के हिंदू कौन-कौन से?

संघ के 100 वर्षों की यात्रा पर बेंगलुरू में आयोजित दो दिवसीय लेक्चर सीरीज के पहले दिन आरएसएस प्रमुख भागवत ने कहा कि चार प्रकार के हिंदू होते हैं. पहला, जो अपने होने पर गर्व करते हैं. दूसरे हिंदू वह जो यह तो कहते है कि वे हिंदू हैं, पर गर्व नहीं महसूस करते. तीसरे हिंदू वो हैं, जो निजी रूप से स्वयं को हिंदू मानते हैं, पर किसी लाभ-नुकसान के भय से सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करते. और चौथी तरह के हिंदू वो हैं, जो यह तक भूल चुके हैं कि वे हिंदू हैं.

'पूरी दुनिया में संघ जैसा कोई संगठन नहीं'

भागवत ने कहा कि संघ एक अद्वितीय संगठन है. पूरी दुनिया में इसके समान कोई नहीं है. संघ न तो किसी परिस्थिति की प्रतिक्रिया है, और न ही विरोध. संघ का उद्देश्य विनाश नहीं बल्कि पूर्णता की स्थापना है, पूरे समाज को एकजुट करना है. उन्होंने कहा कि संघ का एक ही लक्ष्य है “सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठन”. संघ प्रत्येक व्यक्ति को शाखा में प्रशिक्षण देकर सिखाता है कि वह केवल भारत माता के बारे में सोचे. सम्पूर्ण समाज के संगठन तथा व्यक्ति-निर्माण की पद्धति को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विकसित किया है. 

'सत्ता नहीं, समाज को संगठित करना उद्देश्य'

मोहन भागवत ने कहा कि संघ हिंदू समाज का संगठन भारत माता के वैभव के लिए करना चाहता है, सत्ता के लिए नहीं. संघ के संचालन के लिए एक भी पैसा बाहर से नहीं लिया जाता.उन्होंने कहा कि विश्व में ऐसा कोई स्वैच्छिक संगठन नहीं है, जिसने संघ जैसी कठिनाइयों का सामना किया हो. संघ ने तीन प्रतिबंध झेले, हालांकि तीसरा प्रतिबंध वास्तविक अर्थों में कोई खास प्रतिबंध नहीं था.

'हम भूल गए हैं कि हम भारतीय कौन हैं'

संघ प्रमुख ने कहा कि हम भूल गए हैं कि हम भारतीय कौन हैं. आत्मविस्मृति ने हमें जकड़ लिया है. हम अपने ही लोगों को भूल गए और हमारी विविधता तथा भिन्नताएं विभाजन की रेखा बन गईं. स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद का मानना था कि हमारे समाज ने अपने इतिहास को भुला दिया है और यही सुधारों की असफलता का कारण बना.

आरएसएस प्रमुख भागवत ने कहा कि ब्रिटिश पहले हमलावर नहीं थे, भारत पर आक्रमण बहुत पहले से शुरू हो चुके थे. सबसे पहले शक, हूण, कुषाण और यवनों ने हमले किए. उसके बाद इस्लामी आक्रांताओं ने किए और आखिर में ब्रिटिशों ने. ब्रिटिश हमलावरों के आने से पहले तक हम राष्ट्र के रूप में एकजुट थे. 

Advertisement
Featured Video Of The Day
Asaduddin Owaisi EXCLUSIVE | 'कौन से धर्म में लिखा है की मैं'वक्फ पर क्यों भड़के Owaisi? Bihar Election