कौन थे हकीम अब्दुल मजीद, जानिए रूह अफजा की पूरी कहानी

रूह अफजा की शुरुआत 1906 में दिल्ली में हुई, जब उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में जन्मे हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने हमदर्द लेबोरेटरीज की नींव रखी.

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नई दिल्ली:

हाल ही में योग गुरु बाबा रामदेव के एक बयान ने रूह अफजा को चर्चा में ला दिया. उन्होंने बिना नाम लिए कहा, "एक कंपनी है जो आपको शरबत देती है, लेकिन उसकी कमाई का इस्तेमाल मदरसे और मस्जिद बनाने में होता है. अगर आप वह शरबत पीते हैं, तो मदरसे और मस्जिद बनेंगे.” इस बयान से साफ था कि उनका इशारा रूह अफजा की ओर था. इस विवाद के बाद रूह अफजा के इतिहास और इसकी विरासत पर नई बहस शुरू हो गई है. आइए, आज हम आपको रूह अफजा की कहानी बताते हैं.

रुह-आफजा का जन्म

रूह अफजा की शुरुआत 1906 में दिल्ली में हुई, जब उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में जन्मे हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने हमदर्द लेबोरेटरीज की नींव रखी. हमदर्द की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, 1920 तक उनकी छोटी सी दुकान एक पूर्ण उत्पादन इकाई में बदल गई थी. हकीम अब्दुल मजीद ने पारंपरिक यूनानी चिकित्सा की जड़ी-बूटियों और सिरप का उपयोग कर एक ऐसा पेय बनाया, जो गर्मी और हीट स्ट्रोक से राहत दे सके. इस पेय का नाम रखा गया रूह अफजा, जिसका उर्दू में अर्थ है- "वह जो आत्मा को तरोताजा कर दे.”

हमदर्द ट्रस्ट की स्थापना

1922 में हकीम हाफिज अब्दुल मजीद का निधन हो गया. इसके बाद उनकी पत्नी राबिया बेगम और दोनों बेटों ने हमदर्द ट्रस्ट की स्थापना की. उस समय ट्रस्ट की आय का 85% हिस्सा धर्मार्थ कार्यों, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं, में खर्च किया जाता था. उनके बड़े बेटे, हकीम अब्दुल हमीद, ने मात्र 14 साल की उम्र में हमदर्द लेबोरेटरीज की जिम्मेदारी संभाली और इसे नई ऊंचाइयों तक ले गए.

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भारत विभाजन और रूह अफजा का बंटवारा

हकीम अब्दुल मजीद के दो बेटे थे- हकीम अब्दुल हमीद और हकीम मुहम्मद सईद. 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय हकीम मुहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए और उन्होंने कराची में हमदर्द पाकिस्तान की स्थापना की. उसी दौरान, भारत में हमदर्द इंडिया को एक वक्फ (गैर-लाभकारी ट्रस्ट) के रूप में स्थापित किया गया. इसके साथ ही हमदर्द फाउंडेशन की शुरुआत हुई, जो धर्मार्थ और शैक्षिक कार्यों के लिए समर्पित थी. जब 1971 में बांग्लादेश का गठन हुआ, तो वहां भी हमदर्द बांग्लादेश की स्थापना हुई. इस तरह, रूह अफजा तीन देशों में अपनी पहचान बना चुका था.

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हकीम अब्दुल मजीद के परपोते की जुबानी

हकीम हाफिज अब्दुल मजीद के परपोते, हामिद अहमद, ने रुह-आफजा की विरासत को स्पष्ट करते हुए कहा, "1906 में सिर्फ एक हमदर्द था. लेकिन 1947 के विभाजन के बाद, मेरे परदादा और उनके एक बेटे भारत में रहे, जबकि दूसरे बेटे हकीम मुहम्मद सईद ने पाकिस्तान में हमदर्द की शुरुआत की. फिर 1971 में बांग्लादेश के गठन के साथ वहां भी हमदर्द शुरू हुआ. लेकिन रुह-आफजा तीनों देशों में बनता है.” उन्होंने जोर देकर कहा, "रूह अफजा 1907 में हमदर्द का पहला ब्रांडेड उत्पाद था. यह पाकिस्तान और बांग्लादेश के जन्म से भी पुराना है. यह एक भारतीय उत्पाद है.”
 

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