बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) द्वारा अपनी पार्टी रालोसपा का जदयू में विलय किए जाने के बाद रविवार को कुशवाहा को जदयू राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा की. पटना स्थित जदयू के प्रदेश मुख्यालय में रविवार को आयोजित एक समारोह के दौरान रालोसपा का जदयू में विलय पर खुशी जाहिर करते हुए नीतीश कुमार ने कुशवाहा को तत्काल प्रभाव से जदयू के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा की. इससे पहले मुख्यमंत्री ने कुशवाहा को गुलदस्ता भेंट करके उनका जदयू में स्वागत किया.
ऐसी चर्चाएं रही हैं कि पूर्व में नीतीश कुमार के दल समता पार्टी और बाद में जदयू में रहे उपेंद्र कुशवाहा को 2004 में पहली बार विधायक बनकर आने के बावजूद नीतीश कुमार ने कई वरिष्ठ विधायकों की अनदेखी करके कुर्मी और कुशवाहा जातियों के साथ एक शक्तिशाली राजनीतिक साझेदारी (लव-कुश समीकरण) को ध्यान में रखते हुए बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया था.
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हालांकि, 2013 में जदयू के राज्यसभा सदस्य रहे कुशवाहा ने विद्रोही तेवर अपनाते हुए जदयू से नाता तोड़कर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) नामक नई पार्टी का गठन कर लिया था. वह 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा नीत NDA का हिस्सा बन गये थे और उस चुनाव के बाद कुशवाहा को नरेंद्र मोदी सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री बनाया था. जुलाई 2017 में जदयू की एनडीए में वापसी ने समीकरणों को एक बार फिर बदल दिया और रालोसपा इस गठबंधन ने नाता तोड़कर राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा बन गई थी.
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2019 के लोकसभा चुनाव में कुशवाहा ने काराकाट और उजियारपुर लोकसभा सीटों से चुनाव लड़स था लेकिन वह हार गए थे. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कुशवाहा ने महागठबंधन से नाता तोड़कर मायावती की बसपा और एआईएमआईएम के साथ नया गठबंधन बनाकर यह चुनाव लड़ा था. बिहार विधानसभा चुनाव में रालोसपा प्रमुख कुशवाहा को उनके गठबंधन द्वारा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया गया था लेकिन इनके गठबंधन में शामिल हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में जहां पांच सीट जीती थी, वहीं रालोसपा एक भी सीट नहीं जीत पायी थी.