आटा नहीं अब डेटा से भरेगा पेट? बैंकों का डूबा कर्ज़, अपराध का दिखा धर्म

चुनाव के समय कई बयानों का कोई ओर-छोर नहीं होता है. लोग पूछ रहे हैं आटा महंगा है, प्रधानमंत्री कहते हैं डाटा सस्ता है. जनता पूछ रही है कि गैस का सिलेंडर महंगा हो गया. प्रधानंमत्री कह रहे हैं कि इंस्टा और रील देखना सस्ता हो गया है.

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चुनाव के समय कई बयानों का कोई ओर-छोर नहीं होता है. लोग पूछ रहे हैं आटा महंगा है, प्रधानमंत्री कहते हैं डाटा सस्ता है. जनता पूछ रही है कि गैस का सिलेंडर महंगा हो गया. प्रधानंमत्री कह रहे हैं कि इंस्टा और रील देखना सस्ता हो गया है. मोदी सरकार है इसलिए 250-300 का डेटा मिल रहा है, वर्ना कांग्रेस की सरकार होती तो एक महीने का बिल 5000 रुपये का आ रहा होता. इतना बचा दिया है प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की नीति ने. अगर यही हिसाब सही है तो फिर यह भी हिसाब हो कि गैस का सिलेंडर महंगा हुआ, पेट्रोल और डीज़ल यूक्रेन युद्ध के पहले भी 100 रुपया लीटर से भी ज़्यादा महंगा हो गया, आटा महंगा हो गया, दूध महंगा हो गया, खाने-पीने की चीज़ें महंगी हो गई, इनके कारण आपकी जेब से 5000 निकले या उससे भी अधिक निकल गए? आप जब 2021 में 110 रुपया लीटर पेट्रोल खरीद रहे थे तब आपकी जेब से कितने हज़ार निकलते जा रहे थे? 

प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि उनकी सरकार की नीति के कारण डाटा सस्ता है, तब तो फिर बताना ही चाहिए कि उनकी सरकार की नीति से आटा क्यों नहीं सस्ता है. मई के महीने में हरिकिशन शर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट लिखी कि अप्रैल में आटा 32 रुपये 38 पैसे किलो हो गया था. जनवरी 2010 के बाद सबसे अधिक रेट है. 12 साल में आटा सबसे महंगा हो गया ,और प्रधानमंत्री बताते हैं कि डाटा सस्ता हो गया है. प्रधानमंत्री भूल गए कि आटा जब महंगा होने लगा तब जून 2022 में गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई गई थी ताकि कीमतों को स्थिर किया जा सके. महंगाई को लेकर प्रधानमंत्री का यह बयान कोई साधारण बयान नहीं है. बल्कि दो साल के दौरान महंगाई को लेकर जब भी मुद्दा उठा,प्रधानमंत्री ज़्यादातर समय ख़ामोश ही रहे. अपने इस बयान में प्रधानमंत्री कहते हैं कि आप इंस्टा देख पाते हैं, रील देख पाते हैं क्योंकि डाटा सस्ता है. तो आप यही देख लीजिए कि आप इंस्टा और रील देखने की कितनी बड़ी कीमत चुका रहे थे. पिछले 34 महीनों में घरेलु गैस सिलेंडर के दाम में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

इस तरह आप दूध,पेट्रोल, फीस का हिसाब निकालेंगे तो पता चलेगा कि आपकी जेब से कई हज़ार निकल गए. आप पहले से गरीब हो गए. कांग्रेस की सरकार होती तो डाटा का बिल 5000 रुपये का आता, यह पूरी तरह से काल्पनिक बात है. लेकिन महंगाई काल्पनिक नहीं है. वो तो मोदी सरकार के दौर में ही है. जब प्रधानमंत्री डाटा सस्ता होने का श्रेय ले रहे हैं तब फिर इन चीज़ों के महंगा होने का श्रेय किसे दिया जाए? अगर आप किसान हैं तो चारे के दाम में जो वृद्धि हुई है उसे भी जोड़ सकते हैं. 400 रुपये क्विंटल चारा 1200 रुपया क्विंटल मिलने लगा. इस हिसाब से आपकी जेब से कितने पैसे निकले, उसका हिसाब खुद कर लीजिए या प्रधानमंत्री से पूछ लीजिए. 

जिस हिसाब से प्रधानमंत्री डेटा सस्ता होने का श्रेय ले रहे हैं, लग रहा है कि इलॉन मस्क भी उनकी नीतियों के कारण ट्विटर पर ब्लू टिक का रेट 8 डॉलर से कम कर देंगे. प्रधानमंत्री के इस बयान को एक और तरह से देखा जा सकता है. उनकी राजनीतिक विचारधारा के प्रसार में सस्ता डाटा का बहुत रोल रहा है. व्हबाट्स एप यूनिवर्सिटी बड़ी होती गई और पुष्ठ अपुष्ट सूचनाओं का संसार बड़ा हो गया. और यह संभव नहीं होता अगर डाटा सस्ता न हुआ होता. तो डाटा सस्ता होने के लाभार्थी प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी भी हैं. यही कारण है कि सोशल मीडिया पर चुनावी प्रचार की आंधी चल रही है. इसका फायाद राजनीतिक दलों को ही मिल रहा है. उस डाटा के ज़रिए जनता के पास सही सूचनाएं कहां पहुंच रही हैं? गोदी मीडिया के दौर में असली मुद्दों की रिपोर्टिंग तो बंद सी हो गई है. 

एक वेबसाइट पर हिसाब है कि 2015 जो सामान 100 रुपया का आता था वो अब 145 रुपये का आता है क्योंकि मुद्रा स्फीति बढ़ गई. इस हिसाब से आपके आज पैसे का वैल्यू कितना घटा है, उसका भी हिसाब आप प्रधानमंत्री से पूछ सकते हैं, अगर जवाब मिलता है तो. 

हम बस उन खबरों की कतरनें दिखा रहे हैं जो पिछले साल की हैं. नवंबर 2021 की खबर के अनुसार वोडाफोन आइडिया ने कॉल और डाटा के दाम में 18-25 प्रतिशत की वृद्धि की है. एयरटेल ने भी 25 प्रतिशत की वृद्धि कर दी है. जियो ने भी 20 प्रतिशत की वृद्धि की है. यह तब हुआ जब वर्क फ्राम होम और ऑनलाइन स्कूल चल रहे थे. लोगों के फोन और इंटरनेट बिल भी बढ़ गए हैं. तो आप प्रधानमंत्री से पूछिए कि कहां से उनकी नीतियों के कारण डाटा सस्ता हुआ है? हिन्दू में खबर है कि धारवाड़ में डाटा महंगा होने के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए हैं. 

टेलिकॉम कंपनियां मोदी सरकार की नीतियों के कारण डाटा सस्ता दे रही हैं या आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते ऐसा कर रही हैं? कंपनियां ज़्यादा से ज्यादा ग्राहकों तक पहुंचने के लिए दाम घटा रही हैं या सरकार की नीति के कारण ऐसा कर रही हैं? अब जब इन कंपनियों ने दाम बढ़ा दिए हैं तब भी क्या प्रधानमंत्री कहेंगे कि उनकी सरकार की नीति के कारण ऐसा हुआ है?2014 के पहले टेलिकाम कंपनियों में कितनों को रोज़गार मिलता था और अब कितनों को मिल रहा है, इसका भी अध्ययन करना चाहिए. क्यों टेलिकाम सेक्टर में दो ही मुख्य खिलाड़ी रह गए हैं.वोडाफोन और BSNL की हालत खस्ता हो गई है. वोडाफोन ने तो आपरेशन ही बंद कर दिया है. BSNL जिसकी पहुंच गांव-गांव में थी और लोग इसकी सेवा से खुश नज़र आते थे, उसे लेकर कई बार आंदोलन हो चुके हैं कि नीतियों में भेदभाव के कारण BSNL की हालत खस्ता हुई है.  

एक वेबसाइट है cable.co.uk.  इस वेबसाइट पर जो डेटा उसके अनुसार एशिया के कई देश हैं जहां एक जीबी डेटा एक डॉलर से कम का है. भारत, नेपाल, बांग्लादेश पाकिस्तान में एक जीबी का डेटा आधे डॉलर से भी कम का है. इसके अनुसार सस्ता डाटा देने के मामले में दुनिया में भारत का स्थान पांचवा है. सबसे सस्ता डाटा इज़राइल में मिलता है. उसके बाद इटली का स्थान आता है. दक्षिण कोरिया में एक जीबी डेटा 12 डॉलर का है. तब भी यह 984 रुपये का होता है.स्विटज़रलैंड में भी डाटा महंगा है. एक जीबी 7 डॉलर का है. यानी 572 रुपये का होता है. अमरीका और कनाडा में करीब 408 रुपये का पड़ेगा. प्रधानमंत्री कहते हैं कि कांग्रेस की सरकार होती तो महीने का बिल 4000-5000 रुपये महीने का होता.  इसकी जगह प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि आम इस्तेमाल की चीज़ों की महंगाई से कितना गया, यह नहीं बताया जा रहा है, डाटा से कितना बचा, प्रधानमंत्री बता रहे हैं कि कांग्रेस का राज होता तो एक महीने का बिल 5000 का होता है. इसी तरह की दलीलें व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में घूमती रहती हैं और लोग यकीन कर लेते हैं. 

लेकिन ऐसी खबरें व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में नहीं घुमाई जाती हैं. जिससे पता चले कि पिछले पांच साल में दस लाख करोड़ रुपये के लोन बट्टे खाते में डाले गए हैं. यह वो पैसा जिसे कर्ज़ के तौर पर लिया गया था और कोरपोरेट नहीं चुका सका. जिसके चुकाए जाने की संभावनाएं बहुत कम होती हैं इसलिए बैंक बट्टे खाते में डाल देते हैं ताकि बार-बार यह राशि NPA के खाते में न दिखे. जार्ज मैथ्यू ने RTI के ज़रिए भारतीय रिज़र्व बैंक से इस बारे में जानकारी मांगी थी. बहुत मेहनत से की गई इस रिपोर्ट से पता चलता है कि पांच सालों में दस लाख करोड़ बट्टे खाते में डाले गए ताकि इनकी वसूली अलग से होती रहेगी. इस दस लाख करोड़ में से केवल 13 प्रतिशत की वसूली हो पाई. 1, 32, 036 लाख करोड़ की ही वसूली हुई है. रिज़र्व बैंक ने RTI में यह नहीं बताया है कि किन लोगों के लोन बट्टे खाते में डाले गए हैं. इन लेनदारों के नाम क्यों नहीं बताए जाते हैं? आम दर्शकों को समझना होगा कि बैंकों का NPA कम इसलिए लग रहा है क्योंकि लोन न चुकाने पर उस राशि को बट्टे खाते में डाल दिया जाता है. 

NPA की राशि और बट्टे खाते में डाली गई राशि अलग होती है. NPA का हर पैसा बट्टे खाते में नहीं डाला जाता है. इसे आप इस तरह से देख सकते हैं. इस साल जुलाई में लोकसभा में सरकार ने बताया कि सभी अनुसूचित कमर्शियल बैंकों ने पिछले 8 वर्षों में NPA हो चुके लोन में से आठ लाख 60 हज़ार करोड़ से अधिक का लोन रिकवर किया है. एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि बट्टे खाते में जो पैसा डाला गया है, उसकी वसूली बहुत ही कम है. 

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास अब भी कह रहे हैं कि भारत में मंदी नहीं आएगी. लेकिन अमरीका और ब्रिटेन में खुलकर स्वीकार किया जा रहा है कि मंदी आ चुकी है. ब्रिटेन में टैक्स में भयंकर बढ़ोत्तरी की गई है.भारत के उद्योगों की एक संस्था CII ने सरकार से आग्रह किया है कि इस बार के बजट में आयकर में कटौती की जाए जिससे लोगों के हाथ में पैसा आए और वे खर्च कर सकें. आज के लाइव मिंट में खबर छपी है कि इस साल जनवरी से लेकर अब तक स्टार्ट अप सेक्टर में 20,000 लोग नौकरी से निकाल दिए गए हैं. गुजरात में प्रधानमंत्री ने कहा कि युवा नौकरी नहीं चाहता, स्टार्ट अप करना चाहता है. पत्र सूचना कार्यालय ने सूचना दी है कि प्रधानमंत्री 22 नवंबर को 71000 नियुक्ति पत्र सौंपेगे. इसके पहले अक्तूबर महीने में 75000 नियुक्ति पत्र सौंप चुके हैं. PIB की रिलीज़ में इसकी जानकारी नहीं दी गई है कि 71000 लोग किस विभाग के हैं, उन्होंने कौन सी परीक्षा पास की है और कब पास की है? प्रधानमंत्री कहते हैं कि डाटा सस्ता हुआ है लेकिन इसी दौर में डाटा विवादित हुआ है, संदिग्ध हुआ है और ग़लत हुआ है. कई बार सरकार पर आरोप लगते हैं कि वह रोज़गार से संबंधित डाटा सही सही नहीं देती है, बेरोज़गारी का डाटा आता है तब चुप्पी छा जाती है. 

डिबेट के लिए ऐसे विषयों की तलाश रहती है. उसमें से भी हत्या और बलात्कार के मामलों में धार्मिक एंगल पर विशेष नज़र रहती है. वर्ना आप हिन्दी अखबारों को पलट कर देखिए. यह खबर 14 अगस्त की है,झांसी से है,अमर उजाला ने लिखा है कि निक्की साहू ने अपने जन्मदिन पर मोनू अहिरवार को केक काटने के बहाने बुलाया और अपनी प्रेमिका का ही गला काट दिया. मोनिका मर गई. यह खबर 10 अक्तूबर की है, अमर उजाला में छपी है. फिरोज़ाबाद की इस खबर में लिखा है कि गौरव ने अपने परिवार वालों के साथ मिलकर अपनी प्रेमिका खुश्बू की हत्या कर दी और उसका शव अपने ही घर में दफना दिया. दो साल बाद यह मामला सामने आया.यह खबर उत्तराखंड के काशीपुर की है, एक सितंबर की है और अमर उजाला में ही छपी है. प्रेमिका की शादी की बात सुनी तो प्रेमी ने मां और बेटी दोनों की हत्या कर दी. यह ख़बर यूपी के बागपत की है, 9 नवंबर के अमर उजाला में छपी है. आरिफ़ और महज़बीं में प्यार था. दोनों ने शादी की और भाग गए. महज़बी के भाई मुर्सलीन ने ही दोनों की हत्या कर दी. यह ख़बर इसी 4 अगस्त की है और अमर उजाला में छपी है.हरदोई ज़िले का दीपक पूजा से प्यार करता था. दोनों घर से भाग कर साथ रहने लगे. जब दीपक पूजा को लेकर घर लौटा तो पूजा के पिता ने दीपक को गोली मार दी. दीपक मर गया. यह खबर भी कानपुर के पास की है.

अमर उजाला में मार्च के महीने में छपी है. सोनश्री का फोन व्यस्त था, जितेंद्र सोनश्री से प्यार करता था, उसे लगा कि सोनश्री का किसी और से चक्कर है, उसने अपनी प्रेमिका की ही हत्या कर दी और जंगल में शव फेंक दिया.यह खबर तो 20 नवंबर की है मगर बिहार के नालंदा से है. विकास और ज्योति प्रेम करते थे, दोनों की अलग अलग शादी हुई तब भी प्रेम करते रहे. एक दिन विकास की हत्या कर दी जाती है और इस हत्या में ज्योति भी पकड़ी जाती है. 26 सितंबर अमर उजाला की खबर है. हरियाणा के हिसार में रोटी नहीं बनाने की बात को लेकर हुए झगड़े से तैश में आए पति ने पहले अपनी पत्नी करीना की गला दबा कर हत्या कर दी थी. उसकी हत्या करने के बाद फिर अपने डेढ़ साल के बेटे चिकू को भी मार डाला. उसने बाद में शव को कहीं झाड़ियों में फेंक दिया था.17 अगस्त जागरण, मेरठ, जागरण संवाददाता. मेरठ, जागरण संवाददाता. लिसाड़ीगेट के कब्रिस्तान में युवती के सनसनीखेज कत्ल का पर्दाफाश भी हैरतअंगेज निकला है. प्रेमी से शादी करने की जिद पर अड़ी बेटी की सोते हुए बेड पर पिता ने ही गर्दन काट दी थी. उसके बाद शव को चादर में बांध कर साइकिल पर रख कब्रिस्तान में फेंक दिया था. साथ ही सिर को उससे करीब दो किमी दूर माधवपुरम में पानी की टंकी के पास नाले में फेंका था. आरोपित पिता को गिरफ्तार कर उसकी निशानदेही पर पुलिस ने सिर भी बरामद कर लिया है.

ऐसी बहुत सी खबरें हैं जो आपको हिन्दी अख़बारों में मिल जाएंगी. यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि प्रेम संबंधों के कारण की गई सभी हत्याएं एक समान लग सकती हैं मगर होती नहीं हैं. हर हत्या एक दूसरे से अलग है. हर अपराधी की अलग मानिसकता है. उसकी अलग बुनावट है. जो अपराधी साइकोपाथ होता है, उसकी पहचान अलग से होनी चाहिए. उसे हत्या की सनक होती है, वह अन्य कारणों से हत्या को अंजाम देता है. जैसा कि श्रद्धा वॉलकर और आफताब अमीन पूनावाला के केस में हुआ होगा. इस केस को सांप्रदायिक बनाने वाले, धर्म और जिहाद का एंगल ठूंसने वाले ख़तरनाक खेल खेल रहे हैं. ऐसी अनेक खबरें आपके सामने हैं. बस ऐसी खबरें उन चैनलों में अब रिपोर्ट नहीं होती हैं जहां श्रद्धा वॉलकर और आफताब अमीन पूनावाला का मामला बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जा रहा है. हत्या की घटना पर ज़रूर बात होनी चाहिए लेकिन हमें अपराध के पहलुओं को नज़र से नहीं हटाना चाहिए. आज ही जघन्य हत्या की ऐसी खबरें आई हैं जिसका सामना शायद ही आप कर सकें लेकिन इसे देखकर बताइये कि आप कैसे सांप्रदायिक खांचे में रखने की कोशिश करेंगे या इस समस्या को किसी और तरीके से देखना चाहेंगे. बंगाल और यूपी से आई इन दो खबरों 

चार दिन पहले की खबर है. नवभारत टाइम्स में छपी है. हरियाणा के करनाल में रवींद्र नाम का एक युवक रेणु नाम की अपनी प्रेमिका को बुलाकर मार देता है. उसके शव को बोरी में भर कर नाले में फेंक देता है. अमर उजाला की एक खबर है. पांच दिन पहले की. उज़मा परवीन जिससे प्रेम करना चाहती थी, उससे शादी करना चाहती थी. जीशान ने कथित रुप से उसे बदनाम करने की कोशिश की, उसका वीडियो बनाकर वायरल कर दिया और बाद में अपने ही परिवार के साथ मिलकर उजमा की हत्या कर दी. आफताब अमीन पूनावाला और श्रद्धा वॉलकर के केस को लव जिहाद से लेकर क्या क्या नहीं बनाया जा रहा है. उन्हीं के द्वारा ऐसा किया जा रहा है, जो इस बात पर चुप रहे कि बिल्किस बानों के साथ बलात्कार करने वाले दोषियों को समय से पहले रिहा किया गया, तब उन्हें माला क्यों पहनाई गई और तिलक क्यों लगाया गया. श्रद्धा वॉलकर की जघन्य हत्या को लेकर राजनीतिक अवसर ढूंढने वाले अपनी आदत से बाज़ नहीं आएंगे लेकिन आप अपने आस-पास के समाज में नज़र घुमा कर देख लीजिए कि प्रेम करने के कारण बेटियां बाप के हाथों मार दी जाती हैं और प्रेम संबंधों में प्रेमिका मार दी जाती है. आफ़ताब अमीन पूनावाला का कोई एक चेहरा नहीं है. बहुत सारे आफताब पूनावाला बाप,भाई, दोस्त और प्रेमी बनकर लड़कियों की हत्या कर रहे हैं. इसे धर्म के एंगल से मत देखिए. हमारे समाज में स्त्री के प्रति हिंसा एक सच्चाई है. हर धर्म में है हर जाति में है.भारत में तीन में एक महिला अपने ही परिचित की हिंसा झेल चुकी होती है. यह राष्ट्रीय फैमिली सर्वे का डेटा है. 

हर मामले में अपराधी को एक नज़र से नहीं देख सकते, अपराध के मनोविज्ञान को समझने वाले जानते हैं कि आफताब अमीन पूूनावाला की आपराधिक मानिसकता की अलग बुनावट रही होगी, निर्भया के हत्यारे की मानसिक बुनावट अलग होगी. एक अपराधी के धर्म से उस धर्म को अपराधी साबित नहीं कर सकते और न ही उस धर्म को लेकर असुरक्षा और नफरत की भावना पैदा कर सकते हैं. हत्या और अपराध की इस इस सनक को धर्म के चश्मे से मत देखिए वर्ना आप अपने प्रेमी या जीवनसाथी में ऐसे लक्षण नहीं देख पाएंगे. ये लक्षण हर धर्म और जाति के मर्द या स्त्री में हो सकते हैं. हर रिश्ते में ऐसे पुरुष होते हैं जो हर दिन स्त्री पर हिंसा करते हैं और स्त्री उसे समझ नहीं पाती, उस रिश्ते से बाहर नहीं आ पाती है. श्रद्धा वॉलकर को लेकर कहा गया कि जब आफताब अमीन पूनावाला मारता पीटता था तो वह अलग क्यों नहीं हुई. यह सही नज़रिया नहीं है. श्रद्धा या किसी भी लड़की में ऐसे साइकोपाथ को पहचानने की समझ नहीं भी हो सकती है. इस वजह से उसकी आलोचना नहीं हो सकती. आप श्रद्धा को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं,जब तक श्रद्धा की मनस्थिति के बारे में जानकारी सामने नहीं आती है. ऐसे हिंसक रिश्ते से किसी के लिए निकलना एकदम से आसान नहीं होता है. इन पहलुओं को समझने का मौका हमने गंवा दिया. धर्म से जोड़कर गोदी मीडिया धर्म रक्षक बना फिर रहा है जो खुद पत्रकारिता के धर्म की रक्षा नहीं कर पाता है.ज़रूरी है कि हम किसी में भी अपराध के इन भावी लक्षणों को पहचाने और समय से पहले सतर्क होना सीखें. साइकोपाथ भी एक समान नहीं होते हैं. उनके भीतर देखा जाता है कि कहां तक करुणा और सहिष्णुता बची है और किस हद तक खत्म हो गई है.

जिस तरह से श्रद्धा वॉलकर और आफ़ताब पूनावाला के मामले में गोदी मीडिया कवर कर रहा है, उसका संबंध हत्या से कम, हत्या की राजनीति से ज्यादा है. खबरों की तलाश में जंगलों में दर्जनों संवाददाता उतारे जा रहे हैं, जासूस बुलाए जा रहे हैं. इतनी टीम अगर बिल्किस के बलात्कार और परिजनों की हत्या के दोषियों के पीछे लग जाती तो कम से कम मिठाई खिलाने वाले और माला पहनाने वालों का भी पक्ष सामने आ पाता और मामले की सच्चाई भी. इस मीडिया की हालत बहुत खराब है.आज ही दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यूज़ चैनलों को आदेश दिया है कि दिल्ली शराब कांड के कवरेज में CBI और  ED से मिली आधिकारिक सूचना के आधार पर ही खबरें प्रसारित करें. इसका मतलब यही हुआ कि ऑफ रिकार्ड के नाम प्रोपेगैंडा न करें. अब CBI और ED को भी आधिकारिक बयान देना होगा वर्ना कवरेज कैसे होगा. यह बेहद ज़रूरी फैसला है. हर मामले में लागू होना चाहिए.) 

 अब बढ़ते हैं एक और महत्वपूर्ण ख़बर की ओर. आर्थिक रुप से कमज़ोर तबके को दस प्रतिशत आरक्षण की वैधता के फैसले के साथ यह भी कहा जा रहा है कि अब पचास प्रतिशत तक आरक्षण की सीमा भी टूट चुकी है. छत्तीसगढ़ से होने जा रही है. राज्य में एक नया विधेयक तैयार हो रहा है जिसे विधानसभा से एक संकल्प के रूप में पारित कराया जाएगा.इसके बाद राज्य सरकार केंद्र से अनुरोध करेगी कि इसे संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल कर ले.नये विधेयक के आने के बाद राज्य में आरक्षण की सीमा 80 फीसद से ज्यादा हो सकती है. इसी के साथ यह भी नोट करना चाहिए कि किसी वक्त में छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा आरक्षण का प्रावधान था लेकिन फिलहाल वो देश का इकलौता ऐसा राज्य है जहां आरक्षण रोस्टर लागू नहीं है ... छात्र आंदोलित हैं, नौकरी-शैक्षणिक संस्थानों में भर्ती सब रूक गई है .सरकार विपक्ष को, विपक्ष सरकार को दोषी ठहरा रहा है ... मुख्यमंत्री आश्वासन दे रहे हैं कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा, बेहतर है सरकार आरक्षण रोस्टर भी जल्दी लागू कर दे.

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