देश मेंं धर्म की नगरी वाराणसी में रंगभरी एकादशी का दिन काफी ज्यादा महत्व रखता है. शिवरात्रि के बाद पड़ने वाले इस त्योहार पर शहर भर में शिवभक्त होली के रंगों में डूबे नजर आते हैं, लेकिन इस साल जब कोरोना के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं, वहां से आईं तस्वीरें थोड़ी चिंताजनक हैं.
बुधवार को यहां रंगभरी एकादशी मनाई गई, जिसमें बड़ी संख्या में लोग जुटे. जो तस्वीरें सामने आई हैं, उनमें देखा जा सकता है कि भीड़ इतनी है कि तिल रखने की भी जगह नहीं है, वहीं कोई ढंग से मास्क में भी नजर नहीं आ रहा. कुछ लोगों ने मास्क चेहरे के नीचे लटका रखा है. सारे लोग रंगों से सराबोर हैं और भीड़ खिसकती हुई आगे बढ़ रही है.
कैसे मनाया जाता है काशी में यह त्योहार?
काशी में रंगों की छठा शिवरात्रि के दिन जब भोले बाबा का विवाह होता है तब से ही शुरू हो जाती है. लेकिन काशी नगरी में एक दिन ऐसा भी रहता है जब बाबा विश्वनाथ खुद अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैंय वो दिन रंगभरी एकादशी का होता है. इस दिन बाबा माता पार्वती का गौना कराने आते हैं, लिहाजा बाबा की चल प्रतिमा अपने परिवार के साथ निकलती है. रास्ते मे उनके भक्त गण अबीर गुलाल डमरू की थाप से पूरे इलाके को अद्भुत बना देते हैं.
देश में मथुरा और ब्रज की होली मशहुर है, लेकिन रंगभरी एकादशी के दिन साल में एक बार बाबा अपने परिवार के साथ निकलते हैं बुधवार को रंगभरी एकादशी थी और गुरुवार को बाबा श्मशान घाट यानी मणिकर्णिका घाट जाकर मसाने की होली यानी चिता भस्म की होली खेलेंगे क्योंकि रंगभरी एकादशी के दिन देवता यक्ष सारे लोग आ जाते हैं लेकिन उनके प्रिय भक्त भूत-प्रेत-औघड़ नहीं आते, लिहाजा रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन वह मणिकर्णिका घाट पर जाकर चिता भस्म की होली खेलते हैं.