कांटों की सरहद और अधूरी राखियां: बाड़मेर रह रही पाक विस्थापित बहनों का रक्षाबंधन पर दर्द

मिश्री की तरह ही बाड़मेर में कई ऐसी बहनें हैं, जो सरहद के उस पार बिछड़े भाइयों से मिलने को बेताब हैं.

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राखी पर इन बहनों की कहानी रुला देगी
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  • भारत-पाकिस्तान बंटवारा कई परिवारों के रिश्तों को तोड़कर रक्षाबंधन जैसे त्योहारों को अधूरा कर गया है.
  • बाड़मेर की मिश्री देवी समेत कई बहनें पाकिस्तान में बिछड़े भाइयों की कलाई पर राखी बांधने से वंचित हैं.
  • विस्थापित हिंदू परिवारों की बेटियां अपनी शादी के बाद भी अपने भाइयों से मिलने में असमर्थ हैं.
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भारत-पाकिस्तान बंटवारे की कांटेदार सरहद ने न केवल दो देशों को बांटा, बल्कि इसने सैकड़ों परिवारों के रिश्तों को भी बांट दिया. रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है, बाड़मेर के कई परिवारों के लिए अधूरा रह जाता है. पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आए परिवारों की बहनें आज भी अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधने को लेकर सालों से  तरस रही हैं. रक्षाबंधन पर हर साल ये बहनें राखी खरीदती हैं, थाली सजाती हैं, लेकिन सरहद की दीवार उनके अरमानों को पूरा नहीं होने देती.

दोनों देशों के बीच तनाव ने उम्मीदों को और धुंधला कर दिया

थार एक्सप्रेस, जो कभी रिश्तों को जोड़ने का पुल थी, अब बंद है. दोनों देशों के बीच तनाव ने इन परिवारों की उम्मीदों को और धुंधला कर दिया है. मिश्री जैसी बहनें बस एक ही आस लगाए बैठी हैं कि एक दिन सरहद का कांटा हटेगा और वे अपने भाइयों के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मना पाएंगी.तब तक उनकी राखियां, उनके आंसुओं के साथ सहेजकर रखी जा रही हैं, उस दिन का इंतजार करते हुए जब वे अपने भाइयों की कलाई पर प्यार का धागा बांध सकें.
 

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