कभी बाला साहब के माने जाते थे उत्तराधिकारी, जानिए कैसे राज ठाकरे के हाथों से 'फिसलती' गयी महाराष्ट्र की राजनीति?

राज ठाकरे ने अब अपने बेटे अमित को भी राजनीति में उतार दिया है और चुनाव प्रचार के लिये अमित ठाकरे भी राज्य के अलग अलग इलाकों का दौरा कर रहे हैं.

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मुंबई:

इस बार महाराष्ट्र के विधान सभा चुनाव जिन दिग्गजों का सियासी भविष्य तय करने वाले हैं उनमें से एक हैं राज ठाकरे. बीते दस सालों से राज ठाकरे की पार्टी सिर्फ एक विधायक वाली पार्टी बनकर रह गयी है, लेकिन इस बार पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिये वे पूरी ताकत लगा रहे हैं.  कभी मराठीवाद तो कभी हिंदुत्ववाद, कभी नरेंद्र मोदी का समर्थन तो कभी उनका विरोध, कभी उत्तर भारतीयों के खिलाफ जहर उगलना तो कभी किसी उत्तर भारतीय को पार्टी का महासचिव बना देना...राज ठाकरे की राजनीति सियासी पंडितों का सिर चकरा देती है. क्योंकि उनकी पार्टी का इंजन अक्सर पटरी बदलता रहा है. हमारी कोशिश है राज ठाकरे की इसी उलझी हुई राजनीति को सुलझा कर पेश करने की.

2003 में बालासाहेब ठाकरे के तीसरे बेटे उद्धव ठाकरे को उनका सियासी वारिस घोषित किया गया. महाबलेश्वर में हुए एक अधिवेशन के दौरान उद्धव ठाकरे की शिव सेना के कार्याध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति हुई. कईयों के लिये ये ऐलान चौंकाने वाला था, खासकर उन लोगों के लिये जो बालासाहेब के सियासी वारिस के रूप में राज ठाकरे को देख रहे थे.

राज ठाकरे को बालासाहब के सियासी वारिस के तौर पर देखना तर्कहीन न था. राज ठाकरे न केवल बालासाहेब की तरह दिखते थे बल्कि उनके व्यकित्तव में बालासाहेब जैसी आक्रमकता थी, भाषण देने की शैली भी बिलकुल बालासाहेब की तरह थी. बालासाहेब की तरह ही राज ठाकरे भी कार्टूनिष्ट थे.

एमएनएस के महासचिव वागीश सारस्वत कहते हैं कि उस वक्त राज ठाकरे बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी दिखाई दे रहे थे...बचपन से भाषण देना...कार्टून बनाना...अचानक फोटोग्राफी कर रहे उद्धव ठाकरे को किसी ने उकसाया...पिता पुत्र को वरीयता देगा...महाबलेश्वर कांड हो गया.

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कौन हैं राज ठाकरे
राज ठाकरे बालासाहब ठाकरे के भाई श्रीकांत ठाकरे के बेटे हैं. परिवार संगीतप्रेमी होने के कारण उनका नाम स्वरराज रखा गया जो कि सार्वजनिक जीवन में सिर्फ राज हो गया. अपने चाचा बालासाहब की तरह राज ठाकरे को भी कार्टून बनाने का शौक था लेकिन बचपन से ही घर में राजनीतिक माहौल होने के कारण उनका भी रूझान सियासत की तरफ हुआ और वे शिव सेना में सक्रिय हो गये.

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माइकल जैक्सन को बुलाकर विवादों में उलझे थे राज ठाकरे
बालासाहेब ठाकरे ने उन्हें शिव सेना की छात्र इकाई भारतीय विद्यार्थी सेना का अध्यक्ष बनाया. नब्बे के दशक के मध्य में उन्होने मराठी युवाओं को रोजगार दिलाने के मकसद से शिव उद्योग सेना की शुरूवात की. पार्टी की इस नयी इकाई की खातिर फंड जुटाने के लिये उन्होने कुछ ऐसा किया जिससे सभी चौंक गये. उन्होने प़ॉप स्टार माइकल जैक्सन को मुंबई के अंधेरी स्पोर्टस कॉम्प्लैक्स में एक शो आयोजित करने के लिये आमंत्रित किया. राज ठाकरे का ये फैसला शिव सेना की छवि से मेल नहीं खा रहा था. एक तरह शिव सेना पश्चिमी संस्कृति के विरोध के नाम पर वैलेंटाईइन डे मनाने वाले प्रेमी युगलों को पीटती थी तो दूसरी तरफ उसकी ओर से माइकल जैक्सन को बुलाया जाना बडा विरोधाभास था.

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किणी कांड के तौर पर आया बड़ा तूफान
इस बीच राज ठाकरे के जीवन में एक तूफान आया जिसने कि उनके सियासी सफर की दिशा बदल दी. ये तूफान था किणी कांड की शक्ल में. रमेश किणी नाम के एक शख्स से राज ठाकरे का एक बिल्डर दोस्त दादर की हिंदू कॉलनी में घर खाली करने के लिये दबाव डाल रहा था...लेकिन किणी घर खाली करने को तैयार नहीं था. 23 जुलाई 1996 को पुणे के एक सिनेमाघर में उसकी लाश बरामद हुई. किणी की पत्नी शीला ने कहा कि उस दिन उन्हें सामना के कार्यालय में बुलाया गया था.

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रमेश किणी की मौत ने महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल ला दिया. उन दिनों महाराष्ट्र में शिव सेना बीजेपी की सरकार थी और मनोहर जोशी मुख्यमंत्री थे. विपक्ष के कांग्रेसी नेता छगन भुजबल ने राज ठाकरे के खिलाफ मुहीम छेड दी और आरोप लगाया कि किणी की हत्या के पीछे राज ठाकरे का हाथ है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने जांच सीबीआई को सौंप दी. राज ठाकरे को पूछताछ के लिये सीबीआई के सामने हाजिर होना पडा. हालांकि ठाकरे गिरफ्तारी से तो बच गये लेकिन उनके खास दोस्त आशुतोष राणे को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया.

भले ही राज ठाकरे जेल न गये हों लेकिन इस विवाद के बाद से शिव सेना में उन्हें दरकिनार किया जाने लगा. यही वो मोड़ था जब उद्धव ठाकरे ने पार्टी पर अपनी पकड मजबूत करनी शुरू कर दी. इसके बाद से राज और उद्धव के बीच खींचतान की खबरें भी आने लगीं. अंदरूनी राजनीति में उद्धव का पलडा भारी हो रहा था. राज ठाकरे और उनकी टीम के लोग भी बडे फैसलों दरकिनार किये जाने लगे. विधान सभा और मुंबई महानगरपालिका के चुनावों में राज ठाकरे समर्थकों के टिकट कटने लगे. टिकट बंटवारे की प्रक्रिया में उद्धव ठाकरे हावी रहते थे.

एमएनएस के नेता वागीश सारस्वत बताते हैं कि जैसे ही उद्धव कार्याकारी अध्यक्ष बने उन्होने राज ठाकरे के काम रोक दिये...कौरव और पांडव की तरह पांच गांव मांगे...नासिक दिया वो भी छीन लिया...पोस्टर नहीं लगते थे..मतलब उनको राजनीति में नहीं रहने देना चाहते थे. 

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच तनातनी की एक मिसाल 2003 में देखने मिली जब उद्धव ठाकरे ने मी मुंबईकर नाम की मुहीम शुरू की. इसी मुहीम के तहत उद्धव का इरादा सभी प्रांत के लोगों को शिव सेना से जोडने का था लेकिन राज ठाकरे इसका उलटा कर दिया. उनके समर्थकों ने कल्याण रेलवे स्टेशन पर रेलवे भर्ती की परीक्षा देने उत्तर प्रदेश और बिहार से आये परीक्षार्थियों को दौडा दौडा कर पीटा.

एक तरफ जहां सामना अखबार का हिंदी संसकरण प्रकाशित करके और उत्तर भारतीय महासम्मेलन आयोजित करके और बिहारी नेता संजय निरूपम को राज्यसभा भेज कर उद्धव ठाकरे उत्तरभारतियों और शिव सेना के बीच पुल बना रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ हिंसा करवा कर राज ठाकरे ने उद्धव के इरादों में पानी फेर दिया.

शिवसेना पर बढ़ने लगा उद्वव ठाकरे का प्रभाव
2003 में कार्याध्यक्ष नियुक्त होने के बाद पार्टी में उद्धव ठाकरे का दबदबा और बढ गया और इसी के साथ राज ठाकरे के साथ रिश्ते में आई कड़वाहट भी बढ गयी. उद्धव ठाकरे ने अपने भरोसेमंद लोगों का एक घेरा बना लिया था और वही गिनेचुने लोग सारे फैसले लेते थे. राज ठाकरे की पार्टी में चलनी बिलकुल बंद हो गयी. पार्टी में हो रहे इस व्यवहार से आहत राज ठाकरे का मन राजनीति से उचट गया. उन्होंने राजनीति छोड़ कर फिल्में बनाने का फैसला किया, लेकिन फिल्मकार साजिद नडियादवाला ने उन्हें समझाया.

एमएनएस की कैसे हुई स्थापना? 
2005 में राज ठाकरे ने शिव सेना छोड़ दी और अगले साल उन्होने अपनी नई पार्टी शुरू की जिसका नाम दिया महाराष्ट्र नव निर्माण सेना. हालांकि राज ठाकरे शिव सेना से तो अलग हो गये लेकिन उन्होने ऐलान किया कि बालासाहब ठाकरे उनके आदर्श बने रहेंगे. पार्टी की विचारधारा के रूप में उन्होने वही मराठीवाद और परप्रांतीय विरोध चुना जिनके आधार पर बालासाहब ने 60 के दशक में शिव सेना की स्थापना की थी. 2009 के विधान सभा चुनाव से पहले राज ठाकरे के कार्यकर्ताओं ने उत्तरभारतियों के खिलाफ खूब हिंसा की और महाराष्ट्र के कई शहरों से उत्तरभारतियों को पलायन करना पडा. भडकाऊ भाषण देने के आरोप में राज ठाकरे की गिरफ्तारी भी हुई. राज ठाकरे की पार्टी चर्चित हो गयी और कई मराठी युवा उनके साथ हो लिये.

एमएनएस के पूर्व विधायक नितिन भोसले ने बताया कि उनका विजन...उनकी स्पीच..हम यूथ लोगों को पसंद आई...हम अट्रेक्ट हुए...नासिक को हमने एमएनएस का बालेकिल्ला बना दिया.

एमएनएस के नेता सुदाम कोंबडे कहते हैं कि माननीय राज साहेब ठाकरे जब शिव सेना में थे तबसे नासिक शहर से उनका लगाव था...शिव सेना के नेता पद से राजीनामा दिया तो नासिक आये. नासिक की जनता प्रभावित थी...2009 में 3 विधायक...40 नगरसेवक..बडा काम करके हमलोगों ने दिखाया. 

2009 के विधान सभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी के 13 उम्मीदवार जीते. हालांकि 288 सीटों वाली विधान सभा में ये कोई बहुत बडा आंकड़ा नहीं था लेकिन शिव सेना की नींद उडाने के लिये पर्याप्त था. राज ठाकरे की एमएनएस, शिव सेना की प्रतिदवंद्वी बनकर उभरी थी. एमएनएस के उम्मीदवारों ने शिव सेना के मराठी वोट बैंक में सेंध लगाई थी. यहां तक कि उस दादर इलाके में एमएनएस के उम्मीदवार ने शिव सेना को हरा दिया जहां शिव सेना भवन है और जो हमेशा से शिव सेना का गढ़ माना जाता रहा है. लोग शिव सेना के अस्तित्व को लेकर आशंकित हो गये और कहा जाने लगा कि आने वाले वक्त में एमएनएस ही शिव सेना की जगह ले लेगी.

 2009 के विधानसभा चुनाव के बाद राज ठाकरे को महाराष्ट्र की राजनीति में अपने पैर जमाने का सबसे बड़ा मौका दिया नासिक शहर ने. 2012 में नासिक महानगरपालिका की जो चुनाव हुए उनमें राज ठाकरे की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. पहली बार किसी शहर में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेवा का मेयर चुना गया.

2009 के विधान सभा चुनाव में एमएनएस के जो 13 विधायक चुने गये थे उनमें तीन अकेले नासिक से ही थे. नासिक महाराष्ट्र के बडे शहरों में से एक है और यहां कामियाबी हासिल करके राज ठाकरे ने साबित किया कि वे आने वाले वक्त में वे पूरे राज्य की सियासत को प्रभावित करने का दमखम रखते हैं.

नासिक को बदल नहीं पाए राज ठाकरे
राज ठाकरे ने नासिक की जनता से वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो नासिक शहर का कायाकल्प कर देंगे यह काम उन्होंने एक बड़ी हद तक किया भी. उनका एक ड्रीम प्रोजेक्ट था गुड़ा पार्क का नासिक शहर के बीचों बीच से गोदावरी नदी होकर गुजरती है और राज ठाकरे चाहते थे कि इसके रिवर फ्रंट को चकाचक कर दिया जाए इसका सौंदर्यिकरण किया जाए.

पर वक्त के साथ न तो गोदावरी के तट का सौंदर्य बरकरार रह पाया और न ही राज ठाकरे का सियासी रसूख. 2017 के महानगरपालिका चुनाव में उनकी पार्टी से नासिक की सत्ता छिन गयी और फिर उनके गोदा पार्क प्रोजेक्ट का ये हश्र हुआ. दरअसल राज ठाकरे का सियासी ग्राफ 2014 से ही गिरना शुरू हो गया था जब उनकी पार्टी विधान सभा में सिर्फ एक सीट ही जीत पायी. 2019 के विधान सभा चुनाव में भी एमएनएस का सिर्फ एक ही उम्मीदवार जीता. राज ठाकरे के तमाम वफादार नेता एक एक करके उनका साथ छोड कर जाने लगे जिनमें वे विधायक भी शामिल थे. उन्हें छोडने वाले नेताओं का आरोप है कि राज ठाकरे का मन मौजी तरीका उनके लिये नुकसानदेह साबित हो रहा था. नासिक के नितिन भोसले उन नेताओं में से एक हैं जो एमएनएस के टिकट पर विधायक चुने गये थे लेकिन अब शरद पवार वाली एनसीपी में हैं.

एमएनएस के वागीश सारस्वत बताते हैं कि फोलोविंग तो बहुत बडी है लेकिन ये लोकप्रियता वोट में नहीं बदल पाती...राज ठाकरे खुद भी एनेलिसिस करते हैं..चिढ भी जाते हैं.


2019 के लोकसभा चुनाव मे राज ठाकरे ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार नहीं उतारे, लेकिन उन्होने बीजेपी के खिलाफ उस चुनाव में प्रचार किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खास कर के उनके निशाने पर होते थे. उस दौरान राज ठाकरे की सभाओं में मंच पर एक स्कीन लगाया जाता था. उस स्क्रीन पर मोदी के पुराने बयान दिखा कर राज ठाकरे बताते थे कि किस तरह से मोदी की कथनी और करनी में फर्क है. मोदी के प्रति राज ठाकरे के रवैये ने यू टर्न ले लिया था. यही राज ठाकरे 2011 में गुजरात गये थे जब मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे. करीब हफ्ते भर के गुजरात दौरे के बाद ठाकरे ने मोदी के गुजरात मोडल की खूब तारीफ की. मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनना चाहिये ये कहने वाले सबसे शुरूवाती लोगों में से एक राज ठाकरे थे. मोदी के साथ अपनी करीबी के मद्देनजर 2014 के लोकसभा चुनाव में ठाकरे ने बीजेपी उम्मीदवारों के सामने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे. अब जो राज ठाकरे 2014 में मोदी के दोस्त थे वही राज ठाकरे 2019 में मोदी के विरोधी बन गये.



लेकिन राज ठाकरे का मोदी विरोध ज्यादा दिनों तक टिक न सका.लोकसभा चुनाव के कुछ दिनों बाद ही राज ठाकरे को एनफोर्समेंट डाईरेक्टोरट का सम्मन आ गया.एक रियल इस्टेट कंपनी से जुडे दस साल पुराने मामले में राज ठाकरे से ईडी के इस दफ्तर में 22 अगस्त 2019 को करीब 9 घंटे तक पूछताछ की गयी. राज ठाकरे उस कंपनी की हिस्सेदारी काफी पहले छोड चुके थे लेकिन ईडी ने अपनी जांच के दायरे में उन्हें भी घसीट लिया. राज ठाकरे गिरफ्तार तो नहीं हुए लेकिन उन 9 घंटों ने राज ठाकरे की राजनीति बदल कर रख दी.

उस दिन के बाद से राज ठाकरे ने कभी मोदी के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया. यही नहीं 2024 के लोक सभा चुनाव में उन्हें फिरसे प्रधानमंत्री बनाने के लिये बीजेपी को बिनाशर्त समर्थन देने का ऐलान कर दिया. इससे पहले 2020 में उन्होने अपनी पार्टी में भी बदलाव किये. एमएनएस के चौरंगी झंडे को हटाकर भगवा झंडा अपना लिया. जो राज ठाकरे अब तक मराठीवाद की बात करते थे, वे हिंदुत्ववाद की बात करने लगे. अपने आप को हिंदुत्ववादी नेता साबित करने के लिये उन्होने मसजिदों पर लाऊडस्पीकर लगाये जाने का ऐलान किया और धमकी दी कि अगर लाऊडस्पीकर नहीं हटाये जायेंगे तो उनके कार्यकर्ता मसजिदों के बाहर जाकर हनुमान चालीसा बजायेंगे.

जब एमएनएस का गठन नहीं हुआ था तब मैं बतौर पत्रकार उनके साथ गाडी में जाता था...हर जगह से आवाज आती थी कि बालासाहब की तरह वे हिंदुत्व की आवाज उठायें...आजाद पार्क में अप्रिय घटना हुई उसके बाद राज ठाकरे को लगा कि हमें कदम उठाना पडेगा...पहले यही झंडा था...हिंदुत्व का मतलब मुस्लिम विरोध नहीं.

हिंदी भाषी वागीश सारस्वत राज ठाकरे की पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता हैं. 90 के दशक में सारस्वत पत्रकार हुए करते थे और शिव सेना बीट कवर करते थे. इसी दौरान इनकी राज ठाकरे से दोस्ती हुई. राज ठाकरे ने साल 2006 में शिव सेना से निकल कर जब अपनी पार्टी बनाई तो इन्हें भी जोड लिया. सारस्वत का कहना है कि राज ठाकरे बाकी राजनेताओं से हट कर सोचते हैं. उन्होने पूरे महाराष्ट्र का दौरा करके बडी मेहनत से महाराष्ट्र का विजन डॉक्यूमेंट तैयार किया था. 2012 में मुंबई महानगरपालिका चुनाव की खातिर ठाकरे ने उम्मीदवारों के चयन का एक अलग तरीका अपना कर सबको चौका दिया. ठाकरे ने कहा कि  टिकट उसी को मिलेगा जो कि उनकी ओर से ली गयी लिखित परीक्षा पास करेगा.

राज ठाकरे के बेटे की हो चुकी है राजनीति में एंट्री
राज ठाकरे ने अब अपने बेटे अमित को भी राजनीति में उतार दिया है और चुनाव प्रचार के लिये अमित ठाकरे भी राज्य के अलग अलग इलाकों का दौरा कर रहे हैं. फिलहाल इनकी पार्टी महाराष्ट्र के किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है. 2019 में राज ठाकरे ने कहा था कि वे विपक्ष में बैठने के लिये चुनाव लड रहे हैं लेकिन इस बार उनका लक्ष्य सत्ता हासिल करना है. देखना दिलचस्प होगा कि क्या उनकी पार्टी 1 विधायक वाले आंकडे से आगे बढकर सत्ता का स्वाद चख पाती है. 

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