- यूक्रेन युद्ध के बीच पुतिन अपने भारत दौरे पर राजघाट जाकर शांति के दूत महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देंगे.
- यह कदम भारत-रूस रिश्तों की मजबूती और रूस की सॉफ्ट पावर रणनीति को दिखाता है
- मोदी-पुतिन बैठक में यूक्रेन संकट और व्यापक रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के अपने दो दिवसीय राजकीय दौरे की शुरुआत महात्मा गांधी को राजघाट पर श्रद्धांजलि देकर करेंगे. पुतिन इससे पहले जब भी भारत आए हैं वो राजघाट गए हैं पर यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू होने के बाद जब वह पहली बार भारत आ रहे हैं तब उनके राजघाट जाने की चर्चा इस लिहाज से हो रही कि एक ओर उनका देश यूक्रेन के साथ युद्ध कर रहा है तो दूसरी तरफ पुतिन शांति के अग्रदूत महात्मा गांधी को नमन कर रहे हैं. आखिर ये क्या संदेश देता है? क्या पुतिन युद्ध से इतर शांति की दिशा में बढ़ रहे हैं?
यूक्रेन युद्ध के बीच ‘शांति के प्रतीक' महात्मा गांधी को नमन करना पुतिन की ओर से एक वैश्विक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है. पुतिन का भारत आना यह संकेत है कि रूस अभी भी भारत को अपनी एशियाई रणनीति का एक प्रमुख साझेदार मानता है. पश्चिम देश जहां रूस पर दबाव बढ़ा रहे हैं ऐसे में पुतिन का भारत को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण माना जा रहा है. कूटनीतिक रूप से यह कदम भारत-रूस संबंधों की पुराने भरोसे वाली छवि को मजबूत करता है. पुतिन इससे यह भी संदेश देना चाहते हैं कि रूस वैश्विक मंच पर खुद को अलग-थलग नहीं पड़ने देना चाहता और इसमें भारत उसका एक अहम जियो-पॉलिटिकल स्पेस है.
इधर भारत के लिए पुतिन का दौरा अमेरिका और रूस के बीच संतुलन को बनाए रखने की नीति को भी दर्शाता है. इसे आगामी द्विपक्षीय वार्ता में सकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता है.
सॉफ्ट पावर की अपील
वहीं पुतिन का राजधाट जाना भारत की सॉफ्ट पावर की अपील के तौर पर भी लिया जा सकता है, जहां गांधी आज भी वैश्विक ‘शांति कूटनीति' की सबसे बड़ी पहचान हैं. सॉफ्ट पावर का मतलब है 'दूसरों को अपनी ताकत दिखाए बिना प्रभावित करना'. यानी बिना लड़ाई या धमकी के सिर्फ अपनी संस्कृति, कला, भाषा, धर्म, योग, फिल्म, शिक्षा और मूल्यों के आधार पर अपनी ओर खींचना.
महात्मा गांधी की समाधि पर श्रद्धांजलि देना- हिंसा न करने की भावना का सम्मान माना जाता है. एक ओर रूस ने यूक्रेन के साथ युद्ध छेड़ रखा है पर जब उसके राष्ट्राध्यक्ष भारत आते हैं तो वो शांति के दूत महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देते हैं, यह अपने आप में जहां एक ओर विरोधाभासी है तो दूसरी तरफ यह पुतिन की छवि को एक शांति समर्थक और इसे लेकर वार्ता के पक्षधर के रूप में दिखाने के प्रयास के तौर पर भी लिया जा सकता है. राजघाट पर महात्मा गांधी का नमन करना इस शांति संदेश को बल देता है.
यह बताता है कि यूक्रेन युद्ध के बीच बातचीत और शांति की उम्मीद बरकरार है और रूस शांति प्रस्तावों पर चर्चा को तैयार है. साथ ही यह जताता है कि पुतिन शांति के प्रयासों को गंभीरता से ले रहे हैं. उनका राजघाट पर जाना एक कूटनीतिक संदेश है कि वे शांति की इच्छा रखते हैं, भले ही वास्तविक युद्ध जारी हो. यानी पुतिन का राजघाट जाना उनकी 'रणनीतिक स्वायत्तता' को भी दिखाता है.
क्या पुतिन से मोदी की यूक्रेन युद्ध पर बात होगी?
निश्चित तौर पर राजघाट पर महात्मा गांधी को नमन करने के साथ ही पूरी दुनिया की नजर इस पर भी बनी रहेगी कि क्या पुतिन और मोदी के बीच यूक्रेन को लेकर बातचीत होगी? और क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन युद्ध समाप्त करने को कहेंगे? निश्चित रूप से यह संभव है क्योंकि भारत ने पहले भी इन दोनों देशों के बीच शांति के प्रयास किए हैं और दुनिया के कई देश यह समझते भी हैं कि भारत रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध खत्म करने और अमन लाने में अहम किरदार निभा सकता है क्योंकि दोनों ही देशों के राष्ट्राध्यक्षों से प्रधानमंत्री मोदी की बात होती है. यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत से ही पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना करने में (चीन के साथ) भारत से हासिल हुआ समर्थन भी रूस के लिए उतना ही अहम रहा है. बेशक चीन और इजराइल अपनी भौगोलिक और सांस्कृतिक वजहों से रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ बनने की रेस में भारत से आगे हो सकते हैं. लेकिन भारत को शांतिदूत के रूप में रूस और यूक्रेन दोनों स्वीकार कर भी सकते हैं, लिहाजा यह उम्मीद की जा रही है कि पुतिन के इस दौरे पर यूक्रेन युद्ध की चर्चा जरूर होगी.
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