पुणे पोर्शे एक्सीडेंट केस: नाबालिग आरोपी की चाची पहुंची हाईकोर्ट, तत्काल रिहा करने की मांग

बॉम्बे हाईकोर्ट में 10 जून को दायर की गई याचिका शुक्रवार को जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की डिवीजन बैंच के सामने सुनवाई के लिए आई

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पुणे के पोर्शे एक्सीडेंट मामले में आरोपी लड़का फिलहाल पुणे के एक ऑब्जर्वेशन होम में बंद है.
मुंबई:

Pune Porsche Accident Case: पुणे पोर्शे कार एक्सीडेंट केस में नाबालिग आरोपी की चाची ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने दावा किया है कि लड़के की हिरासत "अवैध" है. उन्होंने उसको तत्काल रिहा करने की मांग की है. आरोपी लड़का फिलहाल पुणे के एक ऑब्जर्वेशन होम में बंद है.

याचिकाकर्ता महिला ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus Petition) में कहा है कि वह प्रतिवादियों (पुणे पुलिस) के खिलाफ "प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और कानून के शासन की घोर अवहेलना करने" पर याचिका दायर करने के लिए बाध्य हुईं. उन्होंने कहा है कि किशोर न्याय बोर्ड, पुणे की ओर से पारित रिमांड आदेश के तहत "मनमानी और अवैध हिरासत" जारी रखी गई. यह किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों का "पूर्ण उल्लंघन" है. उन्होंने कहा है कि उनका भतीजा कानून से संघर्षरत है उसको "अवैध हिरासत" में रखा गया है.

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बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका गिरफ्तार व्यक्ति को अदालत के समक्ष पेश किए जाने के लिए दायर की जाती है. इससे यह निर्धारित होता है कि हिरासत वैध है या नहीं.

'पुलिस की कार्रवाई अवैध'
याचिकाकर्ता ने आगे कहा, "जिस तरह से कानून से संघर्षरत बच्चा (CCL) और उसके परिवार के साथ व्यवहार किया गया है, उससे साफ पता चलता है कि प्रतिवादियों (पुणे पुलिस) की कार्रवाई अवैध है और रिमांड के जरिए सीसीएल की निरंतर हिरासत, याचिका के तहत मांगी गई उसकी तत्काल रिहाई का अधिकार देती है."

हादसे में आरोपी नाबालिग 

आरोपी की चाची ने याचिका में कहा है कि, "आरोप है कि दुर्घटना के समय लड़का शराब के नशे में गाड़ी चला रहा था. इस याचिका पर फैसले के लिए प्रासंगिक अन्य अहम तथ्यों पर विचार करने से पहले इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को चाहे जिस दृष्टिकोण से देखा जाए, यह एक हादसा था और जिस व्यक्ति के बारे में कहा गया है कि वह वाहन चला रहा था, वह नाबालिग है."

बॉम्बे हाईकोर्ट में 10 जून को दायर याचिका शुक्रवार को जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आई.

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