मोदी सरकार ने 2029 के लोक सभा चुनाव से पहले उत्तर भारत के कई राज्यों तक सिंधु जल पहुंचाने की योजना बनाई है. सरकार के शीर्ष स्तर पर इसकी निगरानी की जा रही है. शुक्रवार को वरिष्ठ मंत्रियों की बैठक में इस परियोजना की प्रगति की समीक्षा की गई. सूत्रों के अनुसार शुक्रवार की बैठक में बताया गया कि ब्यास और सिंधु नदी को जोड़ने के लिए बनाई जाने वाली 14 किलोमीटर लंबी सुरंग के निर्माण के लिए डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) का काम शुरू कर दिया गया है. एल एंड टी यह डीपीआर बना रहा है और अगले एक साल में यह डीपीआर तैयार हो जाएगी. इसी तरह सिंधु जल को उत्तर भारत के राज्यों तक पहुंचाने के लिए 113 किमी लंबी प्रस्तावित नहर के काम की समीक्षा भी की गई.
गौरतलब है कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को स्थगित करने का निर्णय किया था. इसी के साथ भारत ने यह भी तय किया कि भारत के हिस्से के पानी का उपयोग करने के लिए विस्तृत योजना पर काम किया जाएगा. अंतर बेसिन सिंधु जल अंतरण योजना के तहत एक महत्वाकांक्षी परियोजना बनाई गई है और इसकी निगरानी सरकार में शीर्ष स्तर पर की जा रही है.
सूत्रों के अनुसार इस परियोजना में सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य 14 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाना है. इसके लिए पहाड़ों की चट्टानों का विस्तृत अध्ययन होगा. कमजोर चट्टान होने पर पाइप के जरिए सुरंग बिछाई जाएगी. डीपीआर की रिपोर्ट आने के बाद इसका निर्माण कार्य शुरू होगा. सुरंग निर्माण में टीबीएम (Tunnel Boring Machine) और रॉक शील्ड तकनीक का उपयोग प्रस्तावित है, जिससे निर्माण तेज़ और सुरक्षित हो सके. यह सुरंग उझ बहुउद्देशीय परियोजना से जुड़ी है, जो जम्मू-कश्मीर के कठुआ ज़िले में स्थित है. यह सुरंग बनने से रावी-ब्यास-सतलुज प्रणाली सिंधु बेसिन से जुड़ जाएगी. इससे भारत अपने हिस्से के जल का अधिकतम उपयोग कर सकेगा। सूत्रों के अनुसार इसके निर्माण में 3-4 वर्ष लगेंगे और 2028 तक इसे पूरा किया जा सकेगा। इसकी संभावित लागत 4 से पांच हजार करोड़ रुपए मानी जा रही है.
इसी के साथ नहर के निर्माण कार्य की योजना को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है। शुक्रवार की बैठक में जानकारी दी गई कि इस नहर का निर्माण का काम अलग-अलग हिस्सों में किया जाएगा. इसका उद्देश्य इंदिरा गांधी नहर तक जल पहुँचाकर राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता बढ़ाना है. इसका फायदा जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब जैसे राज्यों को भी मिलेगा। इसके तहत चिनाब नदी को रावी–ब्यास–सतलुज प्रणाली से जोड़ने के लिए नहर बनाई जाएगी. इन राज्यों की मौजूदा नहर प्रणाली से इसे जोड़ा जाएगा ताकि पानी सीधा इंदिरा गांधी नहर तक पहुंच सके. चिनाब से शुरू होकर इसे रावी–ब्यास–सतलुज प्रणाली तक ले जाने का लक्ष्य है जो पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तक फैली है. यह नहर इंदिरा गांधी नहर प्रणाली से जुड़कर राजस्थान के श्रीगंगानगर तक जल पहुंचाएगी.
इस नहर के बनने के बाद दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में सिंचाई और पेयजल की उपलब्धता बढ़ेगी। साथ ही,पाकिस्तान को जाने वाला भारत के हिस्से का अतिरिक्त जल रोका जाएगा, जिससे भारत की जल सुरक्षा मज़बूत होगी. जलवायु परिवर्तन और वर्षा के बदलते स्वरूप के प्रभावों से निपटने में भी इससे मदद मिलेगी. इससे मौजूदा 13 नहर तंत्र भी मजबूत होंगे. इसके लिए रणबीर नहर की लंबाई को 60 से बढ़ाकर 120 किलोमीटर करने की योजना भी है. साथ ही, उझ बहुउद्देशीय परियोजना को पुनर्जीवित किया जा रहा है, जिससे रावी की सहायक नदी उझ से ब्यास बेसिन तक जल स्थानांतरण संभव होगा.