तब बेशर्मी के साथ स्वीकार कर लेते थे... - मोदी का राजीव गांधी पर कटाक्ष

पीएम मोदी ने कहा कि पहले भाई भतीजावाद होता था. गरीब को घर लेना हो तो हजारों रुपये के घूस देनी होती थी. गैस कनेक्शन के लिए सांसद के यहां अच्छे अच्छों को चक्कर लगाना पड़ता था.

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नई दिल्ली:

पीएम मोदी ने लोकसभा में कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Former Prime Minister Rajiv Gandhi) पर भी तंज किया. पीएम मोदी ने कहा कि पहले घोटाले ही घोटाले होते थे. घोटालों की स्पर्धा होती थी. राजीव गांधी पर भी निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि दिल्ली से भी माना जाता था की 1 रूपया निकलता है तो पूरा नहीं पहुंचता था. पॉलिसी पैरालिसिस भी होता था.  भाई भतीजावाद होता था. गरीब को घर लेना हो तो हजारों रुपये के घूस देनी होती थी. गैस कनेक्शन के लिए सांसद के यहां अच्छे अच्छों को चक्कर लगाना पड़ता था. राशन के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती थी.

जम्मू-कश्मीर में लोग संविधान लागू करने से कतराते थे: पीएम मोदी
 

पीएम ने अपने भाषण में जम्मू-कश्मीर का जिक्र किया. उन्होंने कहा, "आज देश का हर नागरिक जानता है कि वह कुछ भी कर सकता है. 370 ने जम्मू-कश्मीर के क्या हालात कर दिए थे? यहां संविधान को सिर पर रखकर नाचने वाले लोग वहां संविधान लागू करने से कतराते थे. लोग कहते थे- जम्मू-कश्मीर का कुछ नहीं हो सकता. जम्मू-कश्मीर की दीवार गिरी तो सबकुछ बदल गया. अब वहां लोग रिकॉर्ड संख्या में मतदान करने के लिए आ रहे हैं."

हमारी सरकार ने देश को निराशा के गर्त से निकाला: PM मोदी
पीएम मोदी ने इस दौरान अपनी 10 साल के शासनकाल की उपलब्धियां भी गिनाईं. उन्होंने कहा, "10 साल में हमारी सरकार की कई सिद्धियां हैं. देश निराशा के गर्त से निकला. धीरे-धीरे देश के मन में स्थिर हो गया, जो 2014 से पहले कहते थे कि कुछ नहीं हो सकता. वो आज कहते हैं कि देश में सब संभव है. ये विश्वास जताने का काम हमने किया."

2014 से पहले घोटाले का था कालखंड 
पीएम मोदी ने यूपीए के शासकाल का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि 2014 के उन दिनों को याद करेंगे, तो हमें ध्यान आएगा कि देश के लोगों का आत्मविश्वास खो चुका था. देश निराशा के सागर में डुबा था. 2014 के पहले देश ने जो सबसे बड़ा नुकसान भुगता था, अमानत खोई थी, वह था आत्मविश्वास. 2014 के पहले यही शब्द सुनाई देते थे- इस देश का कुछ नहीं हो सकता.  ये सात शब्द भारतीयों की निराशा की पहचान बन गए थे. अखबार खोलते थे तो घोटालों की खबरें ही पढ़ने को मिलती थीं. रोज नए घोटाले, घोटाले ही घोटाले. घोटालों की घोटालों से स्पर्धा, घोटालेबाज लोगों के घोटाले. भाई-भतीजावाद इतना फैला हुआ था कि सामान्य नौजवान तो आशा छोड़ चुका था कि अगर कोई सिफारिश करने वाला नहीं है तो जिंदगी ऐसे ही चलेगी."

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