- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुर्गापुर रैली में बंगाल की छह महान हस्तियों का जिक्र किया और बंगाल की समृद्ध विरासत को याद किया.
- पीएम मोदी ने रैली में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, बीसी रॉय, द्वारका नाथ टैगोर और वीरेंद्र मुखर्जी का नाम लिया और उनके योगदान का उल्लेख किया.
- प्रधानमंत्री मोदी ने कादंबिनी गांगुली और बिष्णु डे का भी जिक्र किया और इनके बहाने से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार पर जमकर निशाना साधा.
सियासी संदेश पहुंचाने के कई तरीके होते हैं. पीएम मोदी इसमें माहिर हैं. शुक्रवार को पीएम मोदी ममता बनर्जी के गढ़ में थे. वह तृणमूल सरकार पर जमकर बरसे, लेकिन बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम एक बार भी नहीं लिया. प्रतीकों के जरिए उन्होंने दीदी को उनके घर में घेरा. पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने बंगाल को अलग पहचान देने वाले छह लोगों का जिक्र किया. दरअसल हर एक के पीछे एक पॉलिटिकल संदेश था. उन्होंने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, बीसी रॉय, द्वारका नाथ टैगोर, सर वीरेंद्र मुखर्जी, कादंबिनी गांगुली और बिष्णु डे का नाम लिया. आइए बताते हैं कि ये कौन हैं और भारत व बंगाल के उत्थान में इनका क्या योगदान है. इनका जिक्र करने के पीछे पीएम मोदी का क्या मकसद था.
नाम: श्यामा प्रसाद मुखर्जी, संदेश: बंगाल की माटी से BJP का कनेक्शन जोड़ा
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि पश्चिम बंगाल की धरती प्रेरणाओं से भरी हुई है. यह देश के पहले उद्योग मंत्री डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की धरती है. उन्होंने भारत के औद्योगिक विकास की नींव रखी. देश को पहली इंडस्ट्रियल पॉलिसी दी. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में बताएं तो वह भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे. जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में बनी आजाद भारत की पहली सरकार में मुखर्जी तीन साल तक उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री रह थे. इस दौरान उन्होंने भारी उद्योगों की स्थापना और छोटे उद्योगों के विकास में अहम योगदान दिया जो आगे चलकर औद्योगिक विकास की रीढ़ बने.
लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी महज 33 साल की उम्र में, 1934 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे कम उम्र के कुलपति बने थे. 1943-1946 तक वह अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे. 1951 में उन्होंने बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय के साथ मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी. मुखर्जी ने 1953 में कश्मीर में 'दो निशान, दो विधान, दो प्रधान'का विरोध करते हुए आंदोलन छेड़ा था. 1953 में संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई.
नाम: बीसी रॉय, संदेशः बंगाल के गौरव का याद किया
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में बीसी रॉय का भी नाम लिया. कहा कि ये बीसी रॉय जैसे विजनरी की धरती है, जिन्होंने दुर्गापुर को बड़े सपनों और बड़े संकल्पों के लिए चुना था. बीसी रॉय के बारे में बताए तो उनका पूरा नाम बिधान चंद्र रॉय था. वह प्रसिद्ध डॉक्टर होने के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री भी रहे थे. उन्हें आधुनिक पश्चिम बंगाल के वास्तुकार भी कहा जाता है. उन्होंने दुर्गापुर, कल्याणी और अशोक नगर जैसे शहरों की स्थापना भी की थी. उन्हें 1961 में भारत रत्न प्रदान किया गया था. उनके सम्मान में 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे भी मनाया जाता है.
नाम: द्वारका नाथ टैगोर, संदेशः बंगाल रिफॉर्मरों की धरती है
पीएम मोदी ने कहा कि पश्चिम बंगाल ने देश को द्वारका नाथ टैगोर जैसे रिफॉर्मर दिए, जिन्होंने गुलामी के कालखंड में बैंकिंग रिफॉर्म पर काम किए. उद्योगों और उद्यमों से कैसे समाज का भला हो सकता है, यह करके दिखाया. द्वारका नाथ टैगोर के बारे में बताएं तो वह रवींद्र नाथ टैगोर के दादा थे. 1794 में जन्मे द्वारकानाथ कलकत्ता में जोड़ासांकू के प्रसिद्ध ठाकुर (टैगोर) परिवार के संस्थापक थे. उन्होंने यूनियन बैंक की स्थापना की जो बंगालियों द्वारा खोला जाने वाला पहला बैंक था.
द्वारका नाथ बंगाल के शुरुआती उद्यमियों में से एक थे. 1829 में उन्होंने कलकत्ता यूनियन बैंक की स्थापना की थी. ब्रिटिश व्यापारियों के साथ साझेदारी में कई बैंकिंग, बीमा और शिपिंग कंपनिया स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने रानीगंज में पहली भारतीय कोयला खदान खरीदी जो बाद में बंगाल कोल कंपनी बनी. उन्होंने धर्म सुधार के आंदोलनों में प्रमुखता से हिस्सा लिया था. वह राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज के सबसे प्रारम्भिक सदस्यों में से थे.
नाम: सर बीरेंद्र मुखर्जी, संदेशः बंगाल की विरासत
पीएम मोदी ने कहा कि बंगाल की इस भूमि पर सर बीरेंद्र मुखर्जी हुए, जिनके जीवन और विजन से भारत में स्टील उद्योग को मजबूत नींव मिली. ऐसे महान लोगों ने ही पश्चिम बंगाल की महान विरासत को आगे बढ़ाया है. 1899 में जन्मे बीरेंद्र नाथ मुखर्जी एक प्रसिद्ध उद्योगपति थे, जिन्होंने बरनपुर में इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (IISCO) में स्टील बनाने की शुरुआत कराई थी. 1937 में बीरेंद्र ने स्टील कॉर्पोरेशन ऑफ बंगाल (SCOB) के प्रेसिडेंट के रूप में स्टील निर्माण सुविधाएं स्थापित कीं. बाद में SCOB का IISCO के साथ विलय कर दिया गया. उन्होंने अपने उद्योगपति पिता सर राजेंद्र नाथ मुखर्जी के कार्यों को आगे बढ़ाया. बीरेन मुखर्जी को 1942 में नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया था.
नाम: कादंबिनी गांगुली, संदेशः तब और अब, जब बंगाल में बेटियां सेफ नहीं हैं
पीएम मोदी ने अपने भाषण में कादंबिनी गांगुली का भी जिक्र किया. कादंबिनी भारत की पहली वेस्टर्न मेडिसिन डॉक्टर थीं. 18 जुलाई को ही उनका जन्मदिन है. 1861 में जन्मी कादंबिनी भारत की पहली महिला स्नातक और पहली महिला फिजिशियन डॉक्टर थीं. वह पहली दक्षिण एशियाई महिला थीं, जिन्होंने यूरोपियन मेडिसिन में प्रशिक्षण लिया था. कांग्रेस के 1889 के मद्रास अधिवेशन में भाषण देने वाली पहली महिला होने का गौरव भी उनके नाम दर्ज है. 1906 के कोलकाता कांग्रेस में महिला सम्मेलन की अध्यक्षता भी कादंबिनी ने ही की थी. बिहार के भागलपुर में जन्मी कादंबिनी का निधन 3 अक्तूबर 1923 को कलकत्ता में हुआ था. उन्होंने कादंबिनी गांगुली का जिक्र करते हुए ममता सरकार पर निशाना साधा और कहा कि आज अस्पताल भी बेटियों के लिए सुरक्षित नहीं है. डॉक्टर बेटी के साथ अत्याचार हुआ, कैसे टीएमसी सरकार अपराधियों को बचाने में जुट गई. इसके बाद एक और बेटी के साथ अत्याचार हुआ. आरोपी का कनेक्शन टीएमसी से निकला है. टीएमसी के बड़े नेता और मंत्री पीड़ित को ही दोषी ठहराते रहे.
नाम: बिष्णु डे, संदेशः बांग्ला भाषा की फिक्र है
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में बिष्णु डे का भी जिक्र किया और कहा कि बांग्ला भाषा को समृद्ध करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. बिष्णु डे का जन्म आज ही के दिन 18 जुलाई 1909 को कलकत्ता में हुआ था. वह प्रसिद्ध बंगाली कवि, लेखक, निबंधकार और साहित्यिक आलोचक थे. उन्होंने बांग्ला भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. 1965 में उन्हें साहित्य अकादमी और 1971 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 3 दिसंबर 1982 को कलकत्ता में उनका निधन हुआ.
पीएम मोदी ने दुर्गापुर की धरती से, बंगाल को समृद्ध करने वाले इन छह लोगों का जिक्र करके एक बड़ा संदेश दिया है. उन्होंने दिखाया कि बंगाल कई महान हस्तियों की धरती रही है. बंगाल की महत्ता का बखान करके उन्होंने स्थानीय लोगों से कनेक्ट करने का प्रयास किया. साथ ही, यह जताने का कोशिश की कि एक समय महानता के शिखर पर रहे बंगाल की अब क्या दशा हो गई है.