कौन था वो 19 साल का फौजी, जिसने 104 साल पहले तैयार किया था तिरंगा, आज ही के दिन देश ने अपनाया

Indian Flag History: भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का इतिहास बेहद पुराना है. तिरंगे की डिजाइन के पीछे एक भारतीय सैनिक की सोच है, जिसने इसके लिए सब कुछ झोंक दिया.

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Indian Flag History
नई दिल्ली:

National Flag History: तिरंगा हमारी आन-बान और शान का प्रतीक है, जिसे देखकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. लेकिन हमारे राष्ट्रीय ध्वज बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. आज ही 22 जुलाई के दिन ही 1947 में संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर स्वीकार किया था, लेकिन इसके बनने का इतिहास 100 साल से भी पुराना है. इसके पीछे देशभक्ति से ओतप्रोत एक फौजी का जोश-जज्बा और जुनून छिपा है, जिसने राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने के लिए सब कुछ झोंक दिया.

संविधान शभा ने 1947 में अपनाया
दिल्ली के कांस्टीट्यूशनल हॉल में 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा के सदस्यों की बैठक हुई थी. इसमें तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर स्वीकार किया गया था. केसरिया, सफेद और हरे रंग को कुछ परिवर्तन के साथ राष्ट्रीय ध्वज माना गया. लेकिन क्या आपको पता है कि राष्ट्रीय ध्वज को किसने डिजाइन किया था. उस शख्स का नाम है पिंगली वेंकैया... वो एक सैनिक, स्वतंत्रता सेनानी, लेक्चरर, भूगर्भविज्ञानी, लेखक-शिक्षाविद के साथ कई भाषाओं के जानकार थे.

गांधी के अनुयायी पिंगली वेंकैया
भारत के वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज को बनाने का श्रेय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिंगली वेंकैया को जाता है। वेंकैया के बनाए ध्वज में लाल और हरे रंग की पट्टियां थीं, जो भारत के दो प्रमुख धर्मों का प्रतिनिधित्व करती थीं। 1921 में पिंगली जब इसे लेकर गांधी जी के पास गए, तो उन्होंने ध्वज में एक सफेद रंग और चरखे को भी लगाने की सलाह दी। सफेद रंग भारत के बाकी धर्मों और चरखा स्वदेशी आंदोलन और आत्मनिर्भर होने का प्रतिनिधित्व करता था।

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ब्रिटिश झंडे को सलामी रास नहीं आई
दरअसल, महज 19 साल की उम्र में वेंकैया ब्रिटिश भारत फौज में शामिल हुए और द्वितीय बोअर युद्ध में दक्षिण अफ्रीका में अपनी सेवाएं दीं. वहां जब ब्रिटिश ध्वज यूनियन फ्लैग के सामने उन्हें सैल्यूट करना पड़ा तो उन्हें महसूस हुआ कि भारत का अपना राष्ट्रीय ध्वज होना चाहिए. कोलकाता के 1906 के कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने अपने विचार रखे. कांग्रेस की सभाओं में ब्रिटिश ध्वज फहराए जाने का उन्होंने विरोध किया.

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25 डिजाइन किए तैयार
पिंगली वेंकैया राष्ट्रीय ध्वज के कई डिजाइन बनाते रहे.  उन्होंने 25 से ज्यादा डिजाइन तैयार किए. ए नेशनल फ्लैग ऑफ इंडिया (अनुवादित) नाम से किताब भी लिखे, जिसमें राष्ट्रीय झंडे के 30 से ज्यादा डिजाइन और उनकी अहमियत के बारे में उन्होंने लिखा. वर्ष 1918 से 1921 के बीच कांग्रेस को कई डिजाइन उन्होंने दिखाए. 1921 में लाल-हरे दो रंगों वाला झंडा लेकर विजयवाड़ा कांग्रेस अधिवेशन के दौरान महात्मा गांधी के पास गए.

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भारत के सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व
हिन्दू और मुस्लिम के साथ देश के अन्य समुदायों के प्रतिनिधित्व के लिए गांधी जी ने इसमें सफेद पट्टी बीच में जोड़ने का सुझाव दिया. 1921 में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान अनौपचारिक तौर पर इसका इस्तेमाल किया गया. फिर ये भारत की आजादी तक अनाधिकारिक तौर पर इस्तेमाल होता रहा. इसे ही थोड़े बहुत बदलावों के साथ 22 जुलाई 1947 को देश की आजादी की घोषणा के पहले राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर मान्यता दी गई.

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बहुमुखी प्रतिभा के धनी
आंध्र प्रदेश के मछलीपटनम शहर में 2 अगस्त 1876 में जन्मे पिंगली वेंकैया ने मद्रास प्रेसीडेंस कॉलेज से भूगर्भविज्ञान में डिप्लोमा किया. हीरे के खनन के विशेषज्ञ पिंगली डायमंड वेंकैया कहा जाता था. उन्हें जापानी, उर्दू-हिंदी समेत कई भाषाओं का ज्ञान था. बहुमुखी प्रतिभा के धनी पिंगली वेंकैया का जीवन बेहद गरीबी में गुजरा और 1963 में गुमनामी में उनकी मौत हो गई. सरकार ने 2009 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया. वर्ष 2012 में उनके लिए मरणोपरांत भारत रत्न की सिफारिश भी की गई.

1923 में पहली बार इस्तेमाल
नागपुर में 1923 में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान हजारों प्रदर्शनकारियों ने पहली बार इस ध्वज को हाथों में लिया. सुभाष चंद्र बोस ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इसका इस्तेमाल किया. वर्ष 2002 में इंडियन फ्लैग कोड में बदलाव मकान-दुकान या ऑफिस समेत कहीं भी ससम्मान राष्ट्रीय ध्वज फहराने की छूट मिली.

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