कोविड की दूसरी लहर के दौरान अपनों को खोने वाले लोग अब भी गमगीन

पिछले साल अप्रैल में कोरोना वायरस के डेल्टा स्वरूप के कारण आई दूसरी लहर ने शहर में तबाही मचाई थी.

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भारत में कोविड की दूसरी लहर के दौरान लाखों लोगों की मौत हुई थी
नई दिल्ली:

दिल्ली में रहने वाले पत्रकार एरिक मैसी का कहना है कि पिछले साल कोविड महामारी की घातक दूसरी लहर में अपनी मां को खो देने के बाद उनका ईश्वर पर से यकीन उठ गया है. पिछले साल अप्रैल में कोरोना वायरस के डेल्टा स्वरूप के कारण आई दूसरी लहर ने शहर में तबाही मचाई थी. 30 वर्षीय पत्रकार के भाई और बहन भी कोविड से संक्रमित होने के बाद रोहिणी के अस्पताल में भर्ती थे. उन्होंने कहा कि तीनों बहन-भाइयों ने पिछले साल 22 अप्रैल को अपनी मां के जन्मदिन पर पारिवारिक वीडियो कॉल पर आखिरी बार उनसे बात की थी जिसके बाद अस्पताल में कथित रूप से ‘ऑक्सीजन की कमी' के कारण उनकी मौत हो गई थी.

उन्होंने कहा, “हमने जीवन भर प्रार्थना की. जब मेरी मां संक्रमित हुई और अस्पताल में भर्ती हुई तो हमने बहुत प्रार्थना की. लेकिन, मेरी मां और अन्य लोगों की जिदंगी चली गई . अब, मुझे ईश्वर के विचार और क्या वह मौजूद हैं इस में अधिक विश्वास नहीं है. दूसरी लहर में परिवारों को बहुत नुकसान हुआ है.” मैसी ने कहा कि उन्होंने अपनी मां डेलफिन मैसी की याद में 23 अप्रैल को प्रार्थना का आयोजन किया था लेकिन कोविड के बढ़ते मामलों और खुद संक्रमित होने के बाद उन्होंने इसे टाल दिया. उनकी मां का पिछले साल 24 अप्रैल को जयपुर गोल्डन अस्पताल में 61 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था.

एरिक मैसी ने पीटीआई-भाषा से कहा, “दूसरी लहर के दौरान, मेरी मां की मृत्यु के बाद, हमें उनके पार्थिव शरीर को दफनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा. कोई भी कब्रिस्तान उन्हें दफनाने के लिए तैयार नहीं था. आखिरकार हमने एक श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार करने का फैसला किया, लेकिन पुजारी ने शुरू में मना किया क्योंकि हम ईसाई हैं. हमने अंत में उन्हें आश्वस्त किया कि हमारे पास और कोई विकल्प नहीं बचा है, भले ही हमारी आस्था में मृतकों को दफनाना जरूरी ठहराती हो.”

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उन्होंने कहा कि जलती चिताओं के समुद्र के बीच दाह संस्कार के बाद, 'हमें अपने भाई और बहन की देखभाल करनी थी, जो रोहिणी के एक अस्पताल में भर्ती थे, हमें अपनी मां के खोने का शोक मनाने का भी समय नहीं मिला.” पत्रकार के मुताबिक, उन्हें अपनी मां की अस्थियों को मौरिस नगर में अपने नाना और नानी की संयुक्त कब्र में दफन किया, क्योंकि उन्हें शहर में अपनी मां के लिए एक कब्र भी नहीं मिल सकी.

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मैसी का परिवार दिल्ली के उन हजारों परिवारों में शामिल हैं जिन्होंने पिछले साल कोरोना वायरस की घातक दूसरी लहर के दौरान अपने करीबी रिश्तेदारों को खोया है. पिछले वर्ष बड़ी संख्या में कोविड के कारण जान गंवाने लोगों के रिश्तेदारों ने इस साल अप्रैल में शोकसभाओं का आयोजन किया था.

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शहर के व्यवसायी 37 वर्षीय रवीश चावला ने अपनी पत्नी की पहली पुण्यतिथि के मौके पर 26 अप्रैल को पूर्वी दिल्ली में अपने घर पर 'हवन' रखा था. उनकी पत्नी आठ महीने की गर्भवती थी जब उनकी इस जानलेवा संक्रमण के कारण मौत हो गई थी. उन्होंने कहा, “लोग अपने परिवार के सदस्यों के लिए अस्पतालों में बिस्तर पाने के लिए हाथ-पांव मार रहे थे. कई लोगों की सड़कों पर या एम्बुलेंस में मृत्यु हो गई. कोरोना ने मेरी पत्नी और हमारे अजन्मे बच्चे को भी छीन लिया.”

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चावला ने कहा, “अजन्मे शिशु को पहले मृत घोषित किया और भ्रूण को सी-सेक्शन ऑपरेशन के माध्यम से निकाला गया, और मेरी पत्नी की एक दिन बाद मृत्यु हो गई जब उन्हें ऑक्सीजन दी जा रही थी. ” वह अपने माता-पिता और साढ़े चार साल के बेटे के साथ सूर्य निकेतन इलाके में रहते हैं. चावला की शादी 2016 में हुई थी और उनकी पत्नी की 33 साल की उम्र में फरीदाबाद के अस्पताल में मृत्यु हो गई थी.

पिछले साल की घातक लहर के दौरान, 20 अप्रैल 2021 को 28,000 मामले आए थे और 277 लोगों की मौत हुई थी. 22 अप्रैल को मृतक संख्या 306 पहुंच गई थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, तीन मई 2021 को 448 लोगों की जान गई थी जो एक दिन में सबसे ज्यादा है.स्वास्थ्य विभाग के बुलेटिन के मुताबिक, दिल्ली में शनिवार को कोविड 1520 नए मामले आए और एक संक्रमित की मौत हुई तथा संक्रमण दर 5.10 फीसदी रही.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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