ड्रैगन की चाल! अमेरिका को पछाड़ने के लिए चाहिए भारत का साथ, आतंक पर पाकिस्तान के साथ चीन

पाकिस्तान की जमीन पर पनप रहे आतंकवाद पर चीन का रवैया उसके दोहरे मापदंड का प्रदर्शन करता है. एक तरफ तो वह अमेरिका से भिड़ने के लिए भारत की ओर देखता है तो पाकिस्तान में आंतकवाद को समर्थन जारी रखता है. 1962 का युद्ध बताता है कि चीन भरोसेमंद नहीं है.

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नई दिल्ली:

चीन के साथ 1962 के युद्ध के बाद उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में खड़े होकर कहा था,''तमाम कोशिशों के बावजूद चीन ने धोखा दिया है." यह बात आज भी दोनों देशों के संबंधों में प्रासंगिक लगती है. जब पाकिस्तान में आतंकवाद पनपाने में चीन न सिर्फ मदद कर रहा है, बल्कि पहलगाम जैसे आतंकी हमले के बाद भी उसे समर्थन जारी रखे हुए हैं. चीन एक तरफ तो ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर अमेरिकी वर्चस्व को तोड़ने के लिए क्षेत्रीय स्थिरता की बात करता है. वहीं, दूसरी ओर वह भारत के खिलाफ आतंकवाद को समर्थन देना भी बदस्तूर जारी रखा है. 

क्यों है चीन को भारत की जरूरत?

अमेरिका को काउंटर करने के लिए भारत का बाजार चीन के लिए काफी अहम है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर का तोड़ निकालने में जुटे चीन को भारत में एक उम्मीद नजर आती है. विशाल और तेजी से बढ़ते उपभोक्ता बाजार को देखते हुए चीन भारत में निर्यात बढ़ाना चाहता है. चीन अमेरिकी वर्चस्व को कम करने के लिए डीडॉलराइजेशन (De-dollarization) नारा बुलंद कर रहा है.

इसके लिए वह दुनिया की 43 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले ब्रिक्स के अलावा SCO जैसे मंचों पर रूस और भारत की अहम भूमिका पर जोर देता है. रूस एक बड़े ऊर्जा निर्यातक के रूप में और भारत बड़े उपभोक्ता बाजार के साथ अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने में चीन का सहयोगी साबित हो सकता है. हालांकि रूस अपनी मुद्रा रूबल और चीन अपनी मुद्रा युआन में व्यापार को तेजी से बढ़ा रहे हैं, जबकि भारत भी रुपए में व्यापार को प्रोत्साहित करता रहा है.

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पहलगाम आतंकी हमले के बाद जम्मू कश्मीर में तलाशी अभियान चलाते सुरक्षा बल के जवान.

ब्रिक्स में एकजुटता का नारा और चीन का विरोधाभास 

विरोधाभास देखिए, ब्रिक्स का सदस्य देश चीन भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद में परोक्ष रूप से बड़ा सहयोगी है. वह पाक के आतंकी संगठनों को न सिर्फ सहायता देता है, बल्कि मसूद अजहर जैसे आतंकी को जब संयुक्त राष्ट्र आतंकी घोषित करने की तरफ बढ़ता है तो चीन वीटो का भी इस्तेमाल करता है. ऐसा करके वह खुद ही ब्रिक्स के घोषित उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता, सहयोग और आतंकवाद के खिलाफ खड़ा हो जाता है. 

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ऐसी ही कुछ कहानी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की भी है.साल 2001 में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं ने इसकी स्थापना की थी. इसका गठन यूरेशियाई क्षेत्र के प्रमुख गैर पश्चिमी देशों को एक मंच पर लाने के लिए किया गया था. 9/11 के हमलों के साथ, SCO ने यूरेशियाई क्षेत्र में सुरक्षा की गारंटी देने वाले संगठन के रूप में अपनी भूमिका दोहराई. भारत इस संगठन में बाद में शामिल हुआ. भारत दो प्राथमिक उद्देश्यों के साथ SCO में शामिल हुआ था- सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला करना और मध्य एशिया के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करना. पीएम नरेंद्र मोदी ने 2017 में कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में आयोजित SCO के शिखर सम्मेलन में कहा था, "आतंकवाद मानवता के लिए एक प्रमुख खतरा है.मुझे पूरा विश्वास है कि भारत-SCO सहयोग आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को एक नई दिशा और ताकत देगा."

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पहलगाम आतंकी हमले के बाद से भारत ने अटारी सीमा से होने वाले सभी तरह के व्यापार को रोक दिया है.

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चीन का पुराना शगल है विश्वासघात

भारत के साथ संबंधों में चीन का विश्वासघात का इतिहास काफी पुराना है. भारत ने 1950 के दशक में चीन के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. 1950-60 के दशक में भारत ने 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया. भारत ने 1954 में पंचशील समझौते के तहत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत की. भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को स्थायी सदस्य बनाने का समर्थन किया. इसके बदले में चीन ने 1962 में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. अब पाकिस्तान के जरिए आतंकवाद को समर्थन- चीन की भारत विरोधी नीतियों के कई उदाहरण नजर आ चुके हैं.

चीन में 2018 में आयोजित एससीओ की बैठक में मिलते पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग.

पाकिस्तान शह क्यों दे रहा है चीन?

पाकिस्तान को शह देने के पीछे चीन की सबसे बड़ी मजबूरी उसका निवेश है. पिछले कुछ सालों में चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा व्यापार साझीदार और निवेश का प्रमुख स्रोत बनकर उभरा है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) इसका बड़ा उदाहरण है. ग्वादर पोर्ट के माध्यम से अरब सागर के प्रवेश द्वार के रूप में पाकिस्तान चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में काफी अहम है. चीन के लिए व्यापार और कनेक्टिविटी को यही सुविधाजनक बनाता है. दूसरी ओर, पाकिस्तान की जरूरतों को चीन एक बड़े सप्लायर के रूप में पूरी कर रहा है.अगर बीते साल के आंकड़ों पर गौर करें तो चीन और पाकिस्तान के बीच 23.1 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था. यह 2023 के व्यापार से 11.1 फीसदी ज्यादा था. इन्हीं व्यापारिक हितों के चलते चीन पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को पनपने में मदद कर रहा है.

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