कृषि कानूनों की वापसी से जुड़े बिल (farm laws repeal bill) को पेश करने से दो दिन पहले इसे वापस लेने की वजहें और तर्क भी गिनाए गए हैं. इसके एक अंश में कहा गया है कि किसानों के कुछ समूह ही इसका विरोध कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने गुरु पर्व के मौके पर जब कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया था तो कुछ ऐसी ही बात रखी थी.आब्जेक्ट्स एंड रीजंस के नोट के तहत सरकार ने इनकी वापसी को लेकर अपनी राय रखी है. किसान करीब 15 महीनों से इन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन (farmers protest) कर रहे थे. इसको लेकर बीजेपी सरकार को लगातार आलोचना झेलनी पड़ी रही थी और किसानों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा था. हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा ने 29 नवंबर के संसद मार्च (Sansad march) को टाल दिया है.
यह नोट संसद के सदस्यों के लिए जारी किया गया है. इसमें किसानों एक समूह पर किसानों खासकर लघु एवं सीमांत किसानों की स्थिति सुधारने की दिशा में उठाए गए इस कदम का विरोध करने को दोष मढ़ा गया है. इसमें यह भी कहा गया है कि सरकार ने किसानों को इस मुद्दे पर समझाने की बहुत कोशिश की और उन्हें कृषि कानूनों की अहमियत भी समझाई. इस नोट पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Agriculture Minister Narendra Tomar) के हस्ताक्षर हैं.
नोट के अनुसार, "किसानों के कुछ समूहों का कृषि कानूनों का विरोध करने पर भी सरकार ने कृषि सुधारों से जुड़े इस मुद्दे पर उन्हें समझाने के भरसक प्रयास किए. दोनों पक्षों की कई दौर की बैठकों में उन्हें इसके फायदों के बारे में गिनाया." इसमें कहा गया है कि यह कानून किसानों को उनकी उपज ज्यादा दामों पर कहीं भी बेचने की आजादी देता है. उन्हें तकनीकी सुविधाएं भी मुहैया कराता है. बाजार तक उनकी पहुंच बढ़ाता है, जिससे उनकी आय भी बेहतर होती.
नोट के अनुसार, "यह कानून किसानों को उनकी उपज किसी भी खरीदार को कहीं भी बेचने की आजादी देता. उन्हें खुदरा और थोक विक्रेताओं से सीधे संपर्क साधने की सुविधा देता. साथ ही कांटैक्ट्र खेती को लेकर कानूनी ढांचे के साथ किसानों को सुरक्षा प्रदान करता ".