एक शब्द 'सुस्वागतम', शुरू हो गई 'मोदी और टाटा' की 'नैनो' दोस्ती

टाटा ने आखिरकार 3 अक्टूबर 2008 को सिंगुर से बाहर निकलने का फैसला किया. रतन टाटा ने इस फैसले के लिए ममता बनर्जी और उनके समर्थकों के आंदोलन को जिम्मेदार ठहराया.  लेकिन, 7 अक्टूबर 2008 को रतन टाटा ने घोषणा की कि वे गुजरात के साणंद में टाटा नैनो प्लांट स्थापित करेंगे.

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नई दिल्ली:

Ratan Tata dies:  जाने-माने उद्योगपति रतन टाटा नहीं रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi express grief over Ratan Tata death) ने उनके लिए ट्वीटर पर शोक संदेश लिखा. पूरा उद्योग जगत उनके जाने से दुखी है. बॉलीवुड से लेकर कई वैश्विक मंच के नेताओं ने दुख जताया है. ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी और रतन टाटा (Relation between Narendra Modi and Ratan Tata) के बीच के कैसे संबंध थे इसे इस घटना से समझा जा सकता है. साल 2006 से लेकर 2008 के बीच की बात है. पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा समूह अपने छोटी कार नैनो का प्लांट (Tata Nano Singur Plant) लगाने की तैयारी में था. राज्य सरकार ने यहां पर टाटा को यह प्लांट लगाने के लिए भूमि अधिग्रहण कर कंपनी को दिया गया था. लेकिन स्थानीय लोगों का इस प्रोजेक्ट को लेकर खासा विरोध था. यहां के किसान अपनी जमीन अधिग्रहण के खिलाफ थे और सरकार यहां पर जमीन टाटा को दे चुकी थी. इस प्रोजेक्ट के विरोध में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी भी अपने कार्यकर्ताओं के साथ विरोध में खुलकर सामने आ गईं. उस समय ममता बनर्जी राज्य में विपक्ष की राजनीति कर रही थीं. 

ममता बनर्जी का सिंगूर में नैनो का विरोध

वहीं, टाटा मोटर्स ने नैनो के निर्माण के लिए कारखाने का निर्माण शुरू कर दिया था. टाटा की योजना थी कि छोटी कारों को 2008 तक कारखाने से तैयार कर बाहर भेजना था. बता दें कि कंपनी ने राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित छह साइटों में से सिंगुर को चुना था. वहीं ममता बनर्जी (Mamata Banerjee Singur protest) ने किसानों के साथ मिलकर "खेत बचाओ" आंदोलन की शुरुआत कर दी थी.  

सिंगूर से हटकर साणंद पहुंचा प्लांट

विरोध प्रदर्शन इतना उग्र और तीव्र हुआ की टाटा ने आखिरकार 3 अक्टूबर 2008 को सिंगुर से बाहर निकलने का फैसला किया. रतन टाटा ने इस फैसले के लिए ममता बनर्जी और उनके समर्थकों के आंदोलन को जिम्मेदार ठहराया. 
लेकिन, 7 अक्टूबर 2008 को रतन टाटा ने घोषणा की कि वे गुजरात के साणंद में टाटा नैनो प्लांट स्थापित करेंगे.

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सवाल यह उठा कि यह प्लांट पश्चिम बंगाल से निकल गुजरात कैसे पहुंच गया. कुछ और राज्य भी लाइन में जो चाहते थे कि यह प्लांट उनके राज्य में आ जाए.

क्योंकि इतना बड़ा प्लांट लगने से पूरे क्षेत्र का विकास हो जाता है और लोगों को रोजगार के अवसर पैदा हो जाते हैं. 

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सिंगूह की घोषणा के बाद सीएम मोदी का मैसेज

खबर निकलकर आई कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (वर्तमान में पीएम) पश्चिम बंगाल की पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए थे. उन्होंने यह अनुमान लग गया था कि प्लांट के लिए कहीं और स्थान देखना होगा. ऐसे में जैसी ही रतन टाटा ने घोषणा की कि वे पश्चिम बंगाल में प्लांट बंद  करेंगे. इसके कुछ ही समय बाद उन्हें एक मैसेज आया जिसमें लिखा था 'सुस्वागतम'. ये एक शब्द और रतन टाटा को अपने नैनो के सपने के लिए फिर उम्मीद दिखने लगी. 3 अक्तूबर को रतन टाटा ने पश्चिम बंगाल में प्लांट को बंद करने की घोषणा की और 7 अक्तूबर को साणंद में प्लांट लगाने का ऐलान भी किया.

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यह समझा जा सकता है कि केवल तीन दिनों में इतने बड़े प्लांट को नई जगह पर लगाने की घोषणा हो गई. यानि प्लांट की सभी जरूरतों का परीक्षण हो चुका था. 

खास बता यह भी रही कि गुजरात के साणंद में नया कारखाना बनाने में 14 महीने लगे जबकि सिंगुर कारखाने के लिए 28 महीने लगे थे.  

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