भारतीय सेना एलओसी पर चीन की और टेंशन बढ़ाने वाली है. ऐसा कहने के पीछे की वजह न्योमा एयरबेस. इस एयरबेस को अब पूरी तरह से ऑपरेशनल कर दिया गया है. वायुसेना का ये फाइटर बेस सीमा रेखा से महज 30 किलोमीटर दूर है. पूर्वी लद्दाख में बना ये एयरबेस कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बुधवार को इसके उद्घाटन के लिए वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह खुद सी-130जे एयरक्राफ्ट उड़ाकर इस एयरबेस पर पहुंचे.
अग्रिम विमान होंगे तैनात
न्योमा का ऑपरेशनल होना चीन की टेंशन बढ़ाने वाला है. वायुसेना का नया फाइटर बेस लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल से महज 30 किलोमीटर के आसपास है. इसके ऑपरेशनल होने से ज़रूरत पड़ने पर सैनिकों की तेज आवाजाही और तैनाती हो सकेगी. पहले यहां से कभी कभी हेलीकॉप्टर और वायुसेना के परिवहन विमान उड़ान भरते थे, लेकिन अब यहां से लड़ाकू विमानों के संचालन और रखरखाव की सारी सुविधाएं मौजूद हैं. आने वाले दिनों में यहां वायुसेना के अग्रिम श्रेणी के राफाल, सुखोई और तेजस जैसे फाइटर एयरक्राफ्ट उड़ान भरते हुए दिखाई देंगे.
शुरू में था एएलजी
शुरुआत में न्योमा का इस्तेमाल एडवांस्ड लैडिंग ग्राउंड के तौर पर किया गया था. खासकर 2020 में चीन के साथ तनातनी के दौरान जवानों की तैनाती और सैनिकों के साजोसामान लाने ले जाने के लिये ट्रांसपोर्ट एयरकाफ्ट और चिनूक हेलीकॉप्टर ने यहीं से उड़ान भरी थी. उसी दौरान इस एयरफील्ड की उपयोगिता को देखते हुए लड़ाकू विमानों की उड़ान के लिये इसको पूर्ण रूप से ऑपरेशनल करने का फैसला लिया गया.
यह 13,700 फीट की ऊंचाई पर बने इस बेस की लागत 218 करोड़ रुपए आई है. यहां करीब तीन किलोमीटर का रनवे है. माना जाता है कि यह दुनिया के सबसे ऊंचे एयरबेस में से एक है. यहां वायुसेना की क्षमताएं बढ़ने से चीन पर नज़र रखने का रास्ता साफ हो गया है.
बढ़ेगी सामरिक क्षमता
जब से 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ विवाद बढ़ा है तब से इस इलाके में सैनिकों की तादाद में काफी इजाफा हुआ है. चीन से लगी सरहद पर सड़कों से लेकर बुनियादी ढ़ांचा विकसित करने का काम युद्धस्तर पर हुआ है. ठंड में सैनिकों के लिए स्थायी ढांचे की बात हो या फिर हथियारों की, ज़मीनी हक़ीक़त यह है एलएसी पर सैनिकों की संख्या में कोई कटौती नहीं हुई है. इसका साफ अर्थ है कि भारत एलएसी पर विरोधी पक्ष की किसी भी हिमाकत का माकूल वाब देने की क्षमता बनाए रखना चाहता है.
ऑपरेशनल एयरबेस और एएलजी का अंतर
ऑपरेशनल एयरबेस का मतलब यह है कि यहां से सभी सैन्य या हवाई गतिविधियां संचालित की जा सकती हैं. यहां रनवे, हैंगर, कंट्रोल टॉवर, कम्युनिकेशन और राडार सिस्टम, लॉजिस्टिक सपोर्ट, ईंधन स्टेशन, हथियार भंडारण और विमानों के रखरखाव की सभी सुविधाएं मौजूद होती हैं. साथ ही तकनीकी स्टाफ भी रहता है. जबकि एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड ऐसा अस्थाई ठिकाना होता है, जो सीमा के निकट किसी मोर्चे पर बनाया जाता है. यहां सीमित स्टाफ होता है. यह केवल कभी-कभी सीमित संचालन और तकनीकी जरूरतों के लिए बनाया जाता है.














