नोएडा में यमुना दिखाने लगीं तेवर, नदी किनारे रहने वाले घर छोड़ भागे, जानिए क्या हैं हालात

बड़े तो बड़े बच्चों को भी समझ आ रहा कि कोई आफत आ गई है. तभी तो मां-पापा के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुईं हैं. उन्हें पता है कि यहां किसी तरह की धमा-चौकड़ी नहीं की जा सकती. क्योंही मां-पापा को और मुसीबत डालें.

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  • दिल्ली-एनसीआर में लगातार बारिश के कारण यमुना नदी का जलस्तर बढ़ गया है और नदी किनारे के घर डूब गए हैं.
  • नदी किनारे रहने वाले लोग और सड़क किनारे झुग्गी में रहने वाले लोग सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट हो गए हैं.
  • प्रभावित लोग रोजी-रोटी से वंचित हो गए हैं और बारिश के बाद की स्थिति को लेकर अनिश्चितता में हैं.
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दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ दिनों से लगातार बारिश हो रही है. इससे यमुना नदी का जलस्तर बढ़ गया है. यमुना नदी के किनारे बने घर डूब गए हैं. इससे नदी किनारे रहने वाले लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ गया है. वो आसपास बने कम्युनिटी हॉल और स्कूलों में शिफ्ट हो गए हैं. कुछ यही हाल सड़क किनारे झुग्गी बनाकर रहने वालों का भी है. लगातार बारिश ने उन्हें झुग्गियों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया है. वो गुजर-बसर के लिए सरकार पर मोहताज हो गए हैं.

हाल ये है कि पक्की छत के नीचे रहने के बाद भी इनके चेहरों पर कोई उत्साह नहीं है. रोजी-रोटी छिन चुकी है. बारिश कब तक होगी और बारिश रुकने के बाद फिर क्या होगा, इन्हें नहीं पता. मन में हजारों शंकाएं घर कर रही हैं. एक को सुलझाने की कोशिश करते हैं तो दूसरी आ जाती है. यूं तो अपना घर भी कोई बहुत बड़ा नहीं था, पर अपना तो था. और कुछ नहीं तो कम से कम अपने मन के मालिक तो थे. मन करता तो बैठ जाते, मन कर तो सो जाते, मन करता तो काम कर लेता. अब इतने लोगों के साथ रहना है तो सबके मन को देखते हुए रहना है.

चिंता है कि जाती नहीं

बड़े तो बड़े बच्चों को भी समझ आ रहा कि कोई आफत आ गई है. तभी तो मां-पापा के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुईं हैं. उन्हें पता है कि यहां किसी तरह की धमा-चौकड़ी नहीं की जा सकती. क्योंही मां-पापा को और मुसीबत डालें. शांत बैठे हुए हैं. सभी के मुरझाए चेहरे देखते रहते हैं. जब थक जाते हैं तो आपस में थोड़ी चुहलबाजी कर लेते हैं. ऐसे ही दिन कट रहे हैं. सोचते हैं मां-पापा कुछ न कुछ कर लेंगे. पर मां-पापा तो ये भी नहीं सोच सकते. उन्हें पता है, अभी तो थोड़ा-बहुत खाने को सरकारी कर्मचारी दे भी दे रहे हैं, पर यहां से जाते ही सब बंद हो जाएगा. पुराना ठिकाना भी अब शायद मिले न मिले. कुछ बचे हुए पैसे थे, वो भी इस बारिश के बीच खत्म हो गए. बिस्तर से लेकर सब जरूरी सामानों का ना जाने क्या हुआ होगा. नये सिरे से काम शुरू करने के लिए भी पैसे नहीं बचे. 

चमत्कार का भी नहीं आसरा

फिर सोचते हैं एक बार बारिश बंद हो जाए तो देखेंगे. या तो घर लौट जाएंगे या फिर यहीं धीरे-धीरे फिर से डेरा जमाएंगे. मगर फिर ख्याल आता है कि घर लौटकर भी क्या कर लेंगे. गांव वाले घर में अगर खाने-पीने-रहने की व्यवस्था होती तो यहां ही क्यों आते. ये याद आते ही फिर ऊपर वाले को याद करते हैं. शायद वो कोई चमत्कार कर दे. कुछ ऐसा कि एक झटके में जैसे सब बिगड़ा है सब ठीक भी हो जाए. मगर फिर याद आता है किस्मत इतनी ही अच्छी होती तो ये दिन ही क्यों देखने पड़ते... बरामदे के बाहर बारिश का शोर है...सररररर...
 

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