हांगकांग आग का सबक, नोएडा की 'आसमान छूती' सोसाइटियां हैं सुरक्षित? एनडीटीवी ग्राउंड रिपोर्ट में जानें सच्चाई

सोसाइटी और फायर डिपार्टमेंट दोनों ही अपनी तैयारियों पर विश्वास जता रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि नियमित मेंटेनेंस और जागरूकता की जरूरत है.

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हांगकांग में हाल ही में हुई हाई-राइज इमारत में आग की भयानक घटना ने भारत में भी बहस छेड़ दी है. क्या नोएडा जैसे शहरों की ऊंची इमारतें ऐसी आपदा के लिए तैयार हैं? एनडीटीवी की टीम ने नोएडा की एक्ज़ोटिका फ्रेस्को सोसाइटी से ग्राउंड रिपोर्ट की, जहां निवासियों और फायर अधिकारियों ने अपनी तैयारियों पर खुलकर बात की. रिपोर्ट से पता चलता है कि स्थानीय स्तर पर कई उपाय हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं.

'हम हर तरह के फायर इंसिडेंट के लिए तैयार'

एक्ज़ोटिका फ्रेस्को सोसाइटी के निवासियों का कहना है कि वे आग जैसी आपात स्थितियों से निपटने के लिए पूरी तरह सुसज्जित हैं. सोसाइटी में कुल 10 टावर हैं, जिनमें 8 टावर 18वीं मंजिल तक और 2 टावर 14वीं मंजिल तक हैं. निवासियों ने बताया कि उनके पास तीन प्रकार के फायर एक्सटिंग्विशर उपलब्ध हैं, जिनमें CO2 और फोम एक्सटिंग्विशर शामिल हैं.

अगर डीजल जनरेटर में आग लग जाए, तो उसके लिए फोम मेकिंग मटेरियल मौजूद है. इसके अलावा, तीन तरह के पंप सिस्टम हैं: जॉकी पंप, स्प्रिंकलर और मेन हाइड्रेंट, साथ ही फायर इंजन. निवासियों ने जोर देकर कहा, “अगर किसी फ्लोर या घर में आग लगती है, तो 68 डिग्री तापमान पर स्प्रिंकलर खुद-ब-खुद फट जाते हैं और जॉकी पंप एक्टिवेट हो जाता है. अगर बिजली चली जाए, तो डीजल पंप काम करना शुरू कर देता है.” उन्होंने दावा किया कि हांगकांग जैसी घटना यहां होने पर वे अपनी ओर से पूरी तरह तैयार हैं.

'हांगकांग वाली घटना यहां नहीं हो सकती'

गौतमबुद्ध नगर के चीफ फायर ऑफिसर प्रदीप कुमार ने एनडीटीवी से बातचीत में साफ किया कि, "हांगकांग जैसी घटना भारत में होना मुश्किल है, क्योंकि निर्माण सामग्री और तरीके अलग हैं. हांगकांग में थर्मोकोल का इस्तेमाल इंसुलेशन के लिए किया जाता है, जो मशीन से डाला जाता है और पूरी बिल्डिंग में फैल जाता है. इसके अलावा, चाइनीज नेट और बांस की स्कैफोल्डिंग का उपयोग होता है, जो आग फैलाने में मदद करता है. हमारे यहां लोहे की स्कैफोल्डिंग होती है, जिससे आग को कंट्रोल करना आसान है."

फायर फाइटिंग के लिए स्टेयरकेस जैसे सिस्टम मौजूद हैं, जो रेस्क्यू ऑपरेशन को आसान बनाते हैं. ऑफिसर ने बताया कि उनके पास 72 मीटर की हाइड्रोलिक लैडर आ रही है, जिसके लिए ग्रेटर नोएडा, नोएडा और यमुना अथॉरिटी ने 6-6 करोड़ रुपये दिए थे. इसके अलावा, 4 हाइड्रोलिक 42 मीटर की और 36 मीटर की आर्टिकुलेटिंग टावर हैं, जो 50 मीटर तक पानी पहुंचा सकती हैं. उन्होंने कहा, “हमारी टीम सोसाइटियों में मॉक ड्रिल्स करती रहती है, ताकि हर कोई तैयार रहे.”

नोएडा की कई सोसायटियों में फायर इक्विपमेंट की कमी

हालांकि कुछ सोसाइटियां जैसे एक्ज़ोटिका फ्रेस्को अपनी तैयारियों पर भरोसा जता रही हैं, लेकिन नोएडा और ग्रेटर नोएडा में कई हाई-राइज सोसाइटियां ऐसी हैं जहां फायर फाइटिंग इक्विपमेंट या तो नॉन-फंक्शनल हैं या बिल्कुल मौजूद नहीं हैं. गौतम बुद्ध नगर फायर डिपार्टमेंट की रिपोर्ट्स के अनुसार, 357 हाई-राइज सोसायटियों को नोटिस जारी किए गए थे क्योंकि उनके फायर फाइटिंग टूल्स काम नहीं कर रहे थे. इसी तरह, हालिया ऑडिट में 131 सोसाइटियों में पर्याप्त फायर सेफ्टी इक्विपमेंट की कमी पाई गई, जो निवासियों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है. इन सोसाइटियों को तुरंत अपनी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना होगा, नियमित ऑडिट करवानी होंगी और फायर डिपार्टमेंट के साथ मिलकर मॉक ड्रिल्स आयोजित करनी होंगी, ताकि हांगकांग जैसी किसी घटना से बचा जा सके.

नियमित मेंटेनेंस और जागरूकता की जरूरत

सोसाइटी और फायर डिपार्टमेंट दोनों ही अपनी तैयारियों पर विश्वास जता रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि नियमित मेंटेनेंस और जागरूकता की जरूरत है. हांगकांग की घटना एक सबक है कि हाई-राइज इमारतों में आग की रोकथाम के लिए सिर्फ उपकरण ही काफी नहीं, बल्कि ट्रेनिंग और त्वरित रिस्पॉन्स भी जरूरी है.

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