नोबेल विजेता प्रोफेसर अमर्त्य सेन (Amartya Sen) की उनके संस्मरणों पर आधारित किताब "होम इन द वर्ल्ड : ए मेमॉयर" (Home in the World: A Memoir) पर NDTV के प्रणय रॉय ने उनसे बात की. प्रणय रॉय ने इंटरव्यू की शुरुआत में कहा, उन्होंने और राधिका ने ये पुस्तक पढ़ी है और यह उन सबसे बेहतर किताबों में से एक है, जो उन्होंने पढ़ी है. यह कई जगहों पर हंसाने और सीख देने वाली पुस्तक है. कई जगह यह भावुक भी कर देती है.
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प्रणय रॉय ने कहा, एक किस्सा 1963 का है, जब 30 साल के थे. लिहाजा दो सवाल हैं. उम्मीद है कि किताब का दूसरा हिस्सा भी आएगा, क्योंकि हम 30 साल बाद के अमर्त्य सेन को पढ़ना चाहते हैं, क्या आपने वास्तव में बर्मा, ढाका, कलकत्ता, शांति निकेतन, कैंब्रिज, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स पर फोकस किया है. इस शुरुआती दौर ने आपके जीवन के मूल्यों और विचारों की बुनियाद तैयार की होगी, क्या यही वजह है कि आपने जीवन के पहले 3 दशकों को पहले हिस्से में रखा?
प्रोफेसर अमर्त्य सेन : एक वजह रही है कि ज्यादा तर मेरे मूल्य और प्राथमिकताएं तब तक तय और स्पष्ट हो चुकी थीं. जब मैं दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में था, तब मैं दुनिया को कैसे देखता था और मेरे छात्र कैसे दुनिया को देखते थे, इसकी रोचक तुलना है. अभिव्यक्ति की आजादी की उपेक्षा को लेकर काफी चिंता थी. छात्रों के साथ संवाद में यह बेहद स्पष्ट था.
एनडीटीवी : "मैंने जब दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाया तो प्रेसीडेंसी के छात्रों का आईक्यू ज्यादा बेहतर पाया. हो सकता है कि कलकत्ता से ताल्लुक रखने के कारण मैं थोड़ा पक्षपाती हूं. नोबेल पुरस्कार की बात लें तो फाउंडेशन ने नोबेल म्यूजियम के लिए जीवन की दो अहम चीजें दान करने का अनुरोध किया. मैंने आर्यभट्ट की एक प्रतिलिपि (संस्कृत में लिखी गणित की पुस्तक) जो 499 ईसापूर्व की थी और मेरी स्कूली दिनों की पुरानी साइकिल उन्हें दान दी."
प्रोफेसर अमर्त्य सेन : लैंगिक असमानता और अन्य विषयों पर आंकड़ों को इकट्ठा करने के लिए मुझे काफी दूर तक जाना पड़ता था. इसमें साइकिल ने काफी मदद की. आर्यभट्ट की किताब मेरी सबसे पसंदीदा थी, जो देश के महान गणितज्ञ थे. भारत में मैथेमैटिक्स को लेकर सही वैदिक गणित से शुरू हुई. आर्यभट्ट भी बाहरी दुनिया से प्रभावित हुए बना नहीं पर भी ग्रीस और बेबीलोन की घटनाओं का भी भारत पर असर दिखा. उन्होंने गणित के अलावा गुरुत्व के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
NDTV: आप शुरुआत में गणित औऱ दर्शनशास्त्र के प्रति आकर्षित थे और अचानक अर्थशास्त्र की ओर मुड़ गए. नोबेल जीतने के बाद आप ढाका में सेंट ग्रेगोरी स्कूल भी गए. वहां के हेडमास्टर ने पाया कि मेरी रैंक 37 छात्रों में 33वीं थी. लेकिन तब उतना दबाव नहीं था. मेरी अपील है कि जो भी छात्र इस वक्त अपनी कक्षा में सर्वश्रेष्ठ नहीं है, वो भी नोबेल प्राइज जीत सकते हैं. लेकिन आप उस दबाव को पसंद नहीं करते?
प्रोफेसर अमर्त्य सेन : मैं निश्चित तौर पर दबाव पसंद नहीं करता था. सेंट ग्रेगोरी का रिकॉर्ड शानदार था. मैं व्यथित था, क्योंकि सिर्फ वहीं नहीं करना चाहता था, जो वो कहते थे. मैं अपने लिए भी कुछ पढ़ना चाहता था, जो मुझे शांतिनिकेतन में मिला, जब मैं यहां आया. मैंने यहां वही पढ़ सका, जो मुझे पसंद आता था. मैं छात्रों से यह कहना चाहता हूं कि हम दुनिया में बहुत अच्छा कर सकते हैं. नोबेल पुरस्कार आपके प्रदर्शन को आंकने का जरिया नहीं है.