कोई पोस्ट नहीं, कोई लाइक नहीं... सैनिकों के लिए इंस्टाग्राम के इस्तेमाल को लेकर पढ़ें बड़ा अपडेट

जनरल द्विवेदी इसे लेकर कहा था कि ये तो एक परेशानी रहती है क्योंकि जब वो युवा एनडीए में आता है तो उसको जो मुझे बताया गया है कि सबसे पहले तो कैबिन में ढूंढा जाता है कहां पे फोन छुपा रखा है. तीन से छह महीने लगते हैं कैडेट को बताने के लिए कि बिना फोन के भी जिंदगी है, लेकिन क्या स्मार्टफोन आज की जरूरत है?

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  • भारतीय सेना ने सोशल मीडिया के उपयोग में जवानों को केवल इंस्टाग्राम देखने और निगरानी की अनुमति दी है
  • जवानों को पोस्ट करने, लाइक करने या कमेंट करने की अनुमति नहीं दी गई, पुराने डिजिटल नियम लागू रहेंगे
  • सेना प्रमुख जनरल द्विवेदी ने जवानों के लिए स्मार्टफोन की जरूरत और सोशल मीडिया के विवेकपूर्ण उपयोग पर जोर दिया.
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भारतीय सेना ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर अपनी नीति में एक अहम बदलाव किया है. सेना से जुड़े सूत्रों के मुताबिक- अब सेना के जवानों और अधिकारियों को इंस्टाग्राम सिर्फ देखने और निगरानी करने के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है हालांकि उन्हें अब भी पोस्ट करने, लाइक करने या कमेंट करने की इजाजत नहीं है. सेना के जवानों और अधिकारियों के लिए डिजिटल गतिविधियों से जुड़े पुराने नियम पहले की तरह लागू रहेंगे. सेना की सभी इकाइयों और विभागों को यह निर्देश जारी किए गए है. इसका उद्देश्य यह है कि सैनिक सोशल मीडिया पर मौजूद सामग्री को देख सकें और उस पर नजर रख सकें. इसका मकसद यह भी है कि यदि किसी सैनिक को कोई फर्जी या भ्रामक पोस्ट दिखती है, तो वह इसकी जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे सकें. 

वैसे सेना समय-समय पर फेसबुक, एक्स (X), इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल को लेकर दिशा-निर्देश जारी करती रही है. सुरक्षा वजहों  से भी पहले इनके इस्तेमाल पर पाबंदियां लगी थी. ये सख्त नियम इसलिए बनाए गए थे क्योंकि कुछ मामलों में जवान विदेशी एजेंसियों के हनी ट्रैप में फंस गए थे, जिससे अनजाने में संवेदनशील जानकारी लीक हुई.

बीते दिनों सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने भी चाणक्य डिफेंस डायलॉग में  सेना के जवानों के लिए सोशल मीडिया इस्तेमाल करने के नियमों का जिक्र किया था. उनसे पूछा गया, आज का युवा जो जेन ज़ी है, वो आज फौज जॉइन करना चाहता है. एक विरोधाभास देखने को मिलता है. आर्मी का सीधा मतलब है सोशल मीडिया से दूर रहो. क्या नई आर्मी उस चीज को नए तरीके से इंटीग्रेट करने के बारे में सोच रही है, क्योंकि जो COs होते हैं, उन्हें भी बहुत परेशानी होती होगी कि कितना अलाउ करें, कितना नहीं? इसका जवाब देते हुए जनरल द्विवेदी मुस्कुराते हुए कहते हैं, ये तो एक परेशानी रहती है क्योंकि जब वो युवा एनडीए में आता है तो उसको जो मुझे बताया गया है कि सबसे पहले तो कैबिन में ढूंढा जाता है कहां पे फोन छुपा रखा है. तीन से छह महीने लगते हैं कैडेट को बताने के लिए कि बिना फोन के भी जिंदगी है, लेकिन क्या स्मार्टफोन आज की जरूरत है? मेरे ख्याल से आज की यह निहायत जरूरत है, मैं जब जवानों से भी मिलता हूं तो यही बताता हूं कि स्मार्टफोन जरूरी है. मैं उसको मना कभी नहीं करता हूं. क्यों? क्योंकि आप देखिए हम लोग तो फील्ड में रहते हैं. आपको बच्चे की फीस भरनी है. मैं तो अपने दोनों बच्चों की पैदाइश के टाइम भी नहीं जा पाया हूं तो आज का जब वो सैनिक जहां पर कहीं पर है वो अगर वो चाहता है बच्चा की किलकारी देखना, तो कैसे देखेगा? फोटो पे ही देखेगा. उसी प्रकार से पिताजी का भी हाल-चाल पूछेगा या धर्मपत्नी की डांट भी खानी है तो फोन पे ही खाएगा. तो कहने का ये मतलब है कि स्मार्टफोन बहुत ही महत्व रखता है. आपने अगर कुछ पढ़ना भी है तो आप कितनी पुस्तकें ले जाएंगे? जाहिर है आप उसी में पढ़ेंगे.

इसके अलावा चीफ ने सोशल मीडिया पर कुछ भी अपलोड करने को लेकर भी बात की. उन्होंने कहा कि स्मार्टफोन सबके लिए एक जरूरत बन गया है, लेकिन ये आपको पता होना चाहिए कि उसे कब आपको रखना है कब नहीं रखना है. दूसरी चीज सोशल मीडिया में क्या डालना है, क्या नहीं डालना है. एक चीज होती है रिएक्ट, एक होता है रिस्पॉन्ड. रिएक्ट का ये मतलब है कि आप तुरंत ही उसका त्वरित उत्तर देना चाहते हैं. रिस्पॉन्ड ये मतलब है उसको सोचिए गंभीरता से विश्लेषण कीजिए और उसके बाद उसका जवाब दीजिए. जो कि हम नहीं चाहते हैं कि इसमें हमारे फौजी भाई उसमें पड़े तो हमने बोला है कि हम सिर्फ आपको एक्स (पूर्व में Twitter) इस्तेमाल करने देंगे देखने के लिए. आप उसमें जवाब अभी मत दीजिए. जब आप रिटायर हो जाएंगे उसके बाद जवाब दीजिए तो देखने को आप देख सकते हैं. इसमें किसी प्रकार की परेशानी नहीं है. मुझे लगता है कि रिएक्ट और रिस्पॉन्ड में फर्क है और ये हमारे एडवर्सरी के लिए एक बहुत बड़ा मैसेज है. हम रिएक्ट नहीं करते रिस्पॉन्ड करते हैं.आपको बता दे कि 2017 में तत्कालीन रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि ये दिशानिर्देश जानकारी की सुरक्षा और उसके गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए बनाए गए हैं.

2019 तक सेना के जवानों को किसी भी सोशल मीडिया ग्रुप का हिस्सा बनने की अनुमति नहीं थी. सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल होने से जुड़े कई मामले आने पर 2020 में सेना ने नियम और कड़े कर दिए और जवानों को फेसबुक व इंस्टाग्राम समेत 89 मोबाइल ऐप हटाने के निर्देश दिए गए हालांकि सख्त नियमों के बीच सेना ने कुछ प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, यूट्यूब, एक्स, लिंक्डइन, कोरा, टेलीग्राम और व्हाट्सएप को कड़े नियमों और निगरानी के साथ इस्तेमाल करने की अनुमति दी हुई है.

वैसे सेना के अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पहले से मौजूद है. नए निर्देशों के बाद जवान इन प्लेटफॉर्म्स को सामान्य जानकारी लेने के लिए भी देख सकते हैं. इसके अलावा जवान सिर्फ जानकारी हासिल करने के लिए कंटेंट देख सकते हैं, अपना बायोडाटा अपलोड कर सकते हैं या पेशेवर अवसरों की जानकारी ले सकते हैं, लेकिन सभी सुरक्षा नियमों का सख्ती से पालन करना अनिवार्य होगा. उन्हें किसी भी निर्देश की अवहेलना करने की इजाजत नही होगी. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी सेना के आधिकारिक हैंडल्स ही वो जरिया थे, जिनसे उस जंग के माहौल में पुख्ता सूचनाएं मिल रही थीं. पाकिस्तानी ट्विटर अकाउंट्स ने रात के डेढ़ बजे से पोस्ट करना शुरू कर दिया था कि बहावलपुर, कोटली आदि इलाकों में कुछ तो हो रहा है, लेकिन जानकारी और ऑपरेशन का नाम रात के 1 बजकर 51 मिनट पर ही पुख्ता हुआ जब सेना ने अपने आधिकारिक हैंडल से इसकी जानकारी साझा की.
 

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