डीयू के पाठ्यक्रम में मनुस्मृति और बाबरनामा को शामिल करने की कोई योजना नहीं : कुलपति

कुलपति ने कहा कि मुगल बादशाह बाबर की आत्मकथा मौजूदा समय में प्रासंगिक नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘बाबरनामा वैसे भी एक तानाशाह की आत्मकथा है. इसे पढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है.’’

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दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने मंगलवार को विश्वविद्यालय के इतिहास पाठ्यक्रम में मनुस्मृति और बाबरनामा को शामिल करने की किसी भी संभावना से इंकार किया. यह स्पष्टीकरण उन खबरों के बीच आया है कि विश्वविद्यालय अपनी आगामी शैक्षणिक और कार्यकारी परिषद की बैठकों में इस तरह की अध्ययन सामग्री या पाठ्यक्रम शुरू करने पर चर्चा करने की योजना बना रहा है.

योगेश सिंह ने एक बयान में कहा, ‘‘डीयू में मनुस्मृति और बाबरनामा जैसे विषयों को पढ़ाने की कोई योजना नहीं है.'' उन्होंने कहा कि ऐसे विषयों पर न तो विचार किया गया है और न ही भविष्य में उन पर विचार किया जाएगा.

इतिहास विभाग की पाठ्यक्रम समिति ने हाल में इन दोनों पाठों को पाठ्यक्रम में शामिल करने को मंजूरी दी है. हालांकि, विश्वविद्यालय की ओर से अभी तक इसके लिए कोई वैधानिक मंजूरी नहीं दी गई है.

कुलपति ने कहा कि मुगल बादशाह बाबर की आत्मकथा मौजूदा समय में प्रासंगिक नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘बाबरनामा वैसे भी एक तानाशाह की आत्मकथा है. इसे पढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है.''

पिछले वर्ष भी विधि पाठ्यक्रम में मनुस्मृति को शामिल करने के प्रस्ताव को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था. इसकी वजह से डीयू की कार्यकारी परिषद में मंजूरी के लिए प्रस्तुत किए जाने से ठीक पहले वापस ले लिया गया था.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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