महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं, लोगों को मानवता के लिए करना चाहिए काम : RSS चीफ मोहन भागवत

भागवत ने कहा, ‘‘पिछले दो हजार वर्षों में विभिन्न प्रयोग किए गए, लेकिन वे भारत की पारंपरिक जीवन शैली में निहित खुशी और शांति प्रदान करने में विफल रहे. कोरोना के बाद दुनिया को पता चला कि भारत के पास शांति और खुशहाली का रास्ता है.’’

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RSS चीफ मोहन भागवत ने झारखंड के गुमला में गैर-लाभकारी संगठन विकास भारती के कार्यक्रम में ये बातें कही.
रांची:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि आत्म-विकास करते समय एक मनुष्य अतिमानव (सुपरमैन) बनना चाहता है, इसके बाद वह देवता और फिर भगवान बनना चाहता है. विश्वरूप की भी आकांक्षा रखता है, लेकिन वहां से आगे भी कुछ है क्या, यह कोई नहीं जानता है.

भागवत ने कहा, "कुछ लोगों में मनुष्य होने के बावजूद मानवीय गुणों का अभाव होता है. उन्हें सबसे पहले अपने अंदर इन गुणों को विकसित करना चाहिए." भागवत झारखंड के गुमला में गैर-लाभकारी संगठन विकास भारती द्वारा आयोजित ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता बैठक को संबोधित कर रहे थे.

RSS चीफ ने कहा, "लोगों को मानव जाति के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए, क्योंकि विकास और मानव महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं है.

 भागवत ने कहा, ‘‘मानवीय गुणों को विकसित करने के बाद एक मनुष्य अलौकिक बनना चाहता है, ‘सुपरमैन' बनना चाहता है, लेकिन वह वहां रुकता नहीं है. इसके बाद उसे लगता है कि देवता बनना चाहिए, लेकिन देवता कहते है कि हमसे तो बड़ा भगवान है और फिर वह भगवान बनना चाहता है. भगवान कहता है कि वह तो विश्वरूप है तो वह विश्वरूप बनना चाहता है। वहां भी कुछ है क्या रुकने की जगह, ये कोई नहीं जानता है. लेकिन विकास का कोई अंत नहीं है. बाहर का विकास भी और अंदर का विकास भी, यह निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया है.''

उन्होंने कहा कि मनुष्य को मानवता के लिए अथक परिश्रम करना चाहिए. साथ ही कहा कि एक कार्यकर्ता को अपने काम से कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए.

भागवत ने कहा, ‘‘काम जारी रहना चाहिए, पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में निरंतर कार्य करने का प्रयास करना चाहिए...इसका कोई अंत नहीं है और विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर कार्य करना ही एकमात्र समाधान है...हमें इस विश्व को एक सुंदर स्थान बनाने का प्रयास करना चाहिए जैसी की भारत की प्रकृति है.''उन्होंने कहा कि सनातन धर्म मानव जाति के कल्याण में विश्वास करता है.

उन्होंने कहा, ‘‘सनातन संस्कृति और धर्म राजमहलों से नहीं, बल्कि आश्रमों और जंगलों से आए हैं. बदलते समय के साथ हमारे कपड़े तो बदल सकते हैं लेकिन हमारा स्वभाव कभी नहीं बदलेगा.''

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उन्होंने कहा, ‘‘बदलते समय में अपने काम और सेवाओं को जारी रखने के लिए हमें नए तौर-तरीके अपनाने होंगे. जो लोग अपने स्वभाव को बरकरार रखते हैं, उन्हें विकसित कहा जाता है.''

भागवत ने कहा, ‘‘सभी को समाज के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए और जो लोग सही मायने में काम कर रहे हैं, उन्हें मंच से बोलना चाहिए जबकि हमें बैठकर सुनना चाहिए.'' उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी पिछड़े हुए हैं और उनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम किये जाने की जरूरत है.

RSS चीफ ने कहा, ‘‘वन क्षेत्रों में जहां आदिवासी पारंपरिक रूप से रहते हैं, वहां के लोग शांत और सरल स्वभाव के होते हैं और ऐसा बड़े शहरों में नहीं मिलता. यहां तो मैं गांव वालों पर आंख मूंदकर भरोसा कर सकता हूं, लेकिन शहरों में हमें सतर्क रहना पड़ता है कि हम किससे बात कर रहे हैं.''

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भागवत ने कहा कि वह देश के भविष्य को लेकर कभी चिंतित नहीं रहे, क्योंकि कई लोग इसकी बेहतरी के लिए सामूहिक रूप से काम कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘देश के भविष्य को लेकर कोई संदेह नहीं है, अच्छी चीजें होनी चाहिए, इसके लिए सभी मिलकर काम कर रहे हैं, हम भी प्रयास कर रहे हैं.''उन्होंने कहा कि भारत के लोगों का अपना स्वभाव है और कई लोग बिना किसी नाम या ख्याति की इच्छा के देश के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं.

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भागवत ने कहा, ‘‘हमारे यहां पूजा की अलग-अलग पद्धतियां हैं, क्योंकि हमारे यहां 33 करोड़ देवी-देवता हैं और 3,800 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं और यहां तक ​​कि खान-पान की आदतें भी भिन्न हैं. भिन्नता के बावजूद हमारा मन एक है और अन्य देशों में ऐसा नहीं मिल सकता.''

उन्होंने कहा कि आजकल तथाकथित प्रगतिशील लोग समाज को कुछ देने में विश्वास करते हैं, जो कि भारतीय संस्कृति में पहले से ही निहित है.

भागवत ने कहा, ‘‘पिछले दो हजार वर्षों में विभिन्न प्रयोग किए गए, लेकिन वे भारत की पारंपरिक जीवन शैली में निहित खुशी और शांति प्रदान करने में विफल रहे. कोरोना के बाद दुनिया को पता चला कि भारत के पास शांति और खुशहाली का रास्ता है.''

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