जो बाइडन प्रशासन के एक शीर्ष अधिकारी एवं अमेरिका के ऊर्जा संसाधन मामलों के सहायक विदेश मंत्री ज्योफ्री पैट ने कहा है कि भारत के अमेरिका का एक महत्वपूर्ण साझेदार बने रहने और रूस से सस्ती दरों पर कच्चा तेल खरीदने में ‘कोई विरोधाभास' नहीं है. पैट की इस टिप्पणी को यूक्रेन युद्ध के बीच रूस से भारत द्वारा सस्ती दरों पर कच्चा तेल खरीदने को लेकर बाइडन प्रशासन के रुख की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा रहा है. अमेरिका के ऊर्जा संसाधन मामलों के सहायक विदेश मंत्री ज्योफ्री पैट ने कहा कि न्यूनतम कीमत पर कच्चा तेल खरीदने के लिए रूस के साथ कड़ी सौदेबाजी करके भारत तेल से उसके राजस्व को कम करने की जी7 की नीति को आगे बढ़ा रहा है. यह पूछे जाने पर कि अगर भारत और रूस द्विपक्षीय कारोबार के लिये रुपया-रूबल तंत्र का उपयोग करते हैं, तो क्या अमेरिका भारतीय बैंकों पर किसी तरह का प्रतिबंध लगायेगा, इस पर अमेरिकी राजनयिक ने किसी तरह का अटकल लगाने से मना किया. उन्होंने हालांकि कहा कि अमेरिकी प्रतिबंध केवल रूस को दंडित करने को लक्षित है. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका ऊर्जा सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर भारत के साथ सहज है.
अमेरिका के ऊर्जा संसाधन मामलों के सहायक विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘ मैं अटकलों पर आधारित स्थितियों में नहीं जाना चाहता हूं, लेकिन स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हमारी नीति रूस को दंडित करने, उसके व्यवहार को बदलने की दिशा में प्रयास करने पर केंद्रित है.''उन्होंने कहा, ‘‘ इस प्रयास में हमने किसी तीसरे देश पर प्रतिबंध नहीं लगाया है. इसे मैं यहीं पर छोड़ता हूं.''पैट ने कहा कि भारतीय कंपनियां रूसी कच्चे तेल की कीमतों को लेकर बेहद सफलतापूर्वक बातचीत कर रही हैं, जो भारतीय तेलशोधकों को उत्पादों को वैश्विक बाजार में काफी प्रतिस्पर्धी एवं लाभदायक कीमतों पर पेश करने में सक्षम बनाती हैं.पैट 16 फरवरी से दो दिन की भारत यात्रा पर हैं.उन्होंने कहा कि ऊर्जा परिवर्तन से जुड़े हर विषय में भारत, अमेरिका का महत्वपूर्ण साझेदार है और दोनों पक्ष हरित हाइड्रोजन और असैन्य परमाणु ऊर्जा सहित अपने सहयोग को व्यापक रूप से बढ़ाने के विकल्पों पर विचार कर रहे हैं.
पैट ने कहा, ‘‘ हमारे विशेषज्ञों का आकलन है कि भारत अभी रूस से कच्चे तेल के आयात पर प्रति बैरल 15 डॉलर की छूट प्राप्त कर रहा है. कड़ी सौदेबाजी से न्यूनतम संभावित कीमत प्राप्त करके अपने हितों को साधने के साथ भारत हमारे जी7 समूह की नीतियों को आगे बढ़ा रहा है. हमारे जी7 समूह के सहयोगी रूसी राजस्व को कम करना चाहते हैं.''उन्होंने कहा, ‘‘हम इस तरह से चीजों को देखते हैं. भारत सरकार के साथ इन मुद्दों पर हमारी अच्छी बातचीत हुई है.''उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन मैं सोचता हूं कि यह समझना सभी के लिये महत्वपूर्ण है कि यह अस्थायी स्थिति नहीं है. जब तक व्लादिमीर पुतिन आक्रामकता को जारी रखते हैं, तब तक रूस के साथ संबंध सामान्य रूप से बहाल नहीं हो सकते.''
गौरतलब है कि चीन और अमेरिका के बाद भारत कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है. रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किये जाने के बाद भारत सस्ती दरों पर रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है. वहीं, कई पश्चिमी ने कच्चे तेल की सीमा तय कर दी है और रूस से तेल खरीद के बदले 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक भुगतान नहीं करने को कहा है.यूक्रेन में अमेरिका के राजदूत के रूप में काम कर चुके पैट ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपने कार्यों के कारण न केवल यूरोप में अपना बड़ा बाजार खो दिया है, बल्कि इसके कारण यूरोपीय देश स्वच्छ एवं सुरक्षित ऊर्जा स्रोतों में अधिक निवेश को तत्पर हुए हैं.उन्होंने कहा, ‘‘इसलिये हम इन मुद्दों पर भारत के साथ काफी सहज हैं, लेकिन इसके साथ ही इस पर हम भारत सरकार के साथ करीबी बातचीत को लेकर मजबूती से प्रतिबद्ध हैं और अपनी बातचीत में इस पर चर्चा जारी रखेंगे.''
यह पूछे जाने पर कि एक तरफ भारत, अमेरिका का एक महत्वपूर्ण वैश्विक साझेदार है और दूसरी तरफ वह रूस से सस्ती दरों पर कच्चा तेल खरीद रहा है, इस पर क्या वह कोई विरोधाभास देखते हैं, तो पैट ने कहा, ‘‘ हम ऐसा नहीं सोचते हैं. कोई विरोधाभास नहीं है.''उन्होंने कहा कि ऊर्जा परिवर्तन और सुरक्षा से जुड़े हर विषय में भारत, अमेरिका का महत्वपूर्ण साझेदार है .पैट ने कहा कि वह समझते हैं कि व्लादिमीर पुतिन के कदमों के कारण ऊर्जा सुरक्षा बाधित हुई है और ‘‘हमें अधिक लचीली व्यवस्था बनाने और मास्को के कार्यों के परिणामों से निपटने के लिये काम करना होगा''.उन्होंने कहा कि इसके कारण उत्पन्न बाधा से वह पूरी तरह से अवगत हैं और इसका प्रभाव न केवल यूरोप पर बल्कि वैश्विक स्तर पर पड़ा है, जिसमें भारत जैसे देश भी शामिल हैं.पैट ने पुतिन पर अपने कदमों से रूसी ऊर्जा संसाधनों को हथियार बनाने का आरोप लगाया.
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