नेपाल का युवा आखिर इतने गुस्से में क्यों हैं? पढ़िए Gen Z के असंतोष की इनसाइड स्टोरी

नेपाल में युवा सड़कों पर है. सोशल मीडिया बैन को लेकर गुस्सा इतना उबला कि सरकार हिल गई. आखिर नेपाल में इस गुस्से की वजह क्या है. पढ़िए नेपाल पर बारीक नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रेम पुनेठा का लेख ...

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  • सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ नेपाल में Gen Z काठमांडू की सड़कों पर उतर आया है
  • सरकार ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स के रजिस्ट्रेशन न करने पर 26 ऐप्स को बैन कर दिया था, जिससे आंदोलन भड़क गया
  • नेपाली युवाओं राजनीतिक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई और पलायन को लेकर लंबे समय से असंतोष बढ़ रहा था
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नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ सोमवार को आंदोलन उग्र हो गया है. युवाओं ने संसद में घुसने का प्रयास किया और उसकी पुलिस के साथ हिंसक भिड़ंत हो गई. पुलिस की गोलीबारी में 20 प्रदर्शनकारियों के मारे गए हैं. काठमांडू में हालात संभालने के लिए सेना को मोर्चे पर लगाना पड़ा. आंदोलन के पीछे नेपाल का जेनरेशन Z (1997 से 2012 के बीच पैदा युवा पीढ़ी) है. अभी तक इसका किसी भी राजनीतिक संगठन से कोई कनेक्शन सामने नहीं आया है. 

2023 में नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया को लेकर एक गाइडलाइंस बनाई और इसके तहत नेपाल में काम कर रहे ऐप्स को रजिस्ट्रेशन के लिए कहा. लेकिन इसको विदेशी प्लैटफॉर्म्स ने गंभीरता से नहीं लिया. इसके बाद नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इन पर प्रतिबंध लगाने को कहा. नेपाल कैबिनेट ने 28 अगस्त को सभी सोशल मीडिया ऐप्स को एक सप्ताह के अंदर रजिस्टर्ड करने को कहा, लेकिन किसी भी संस्था ने इसका पालन नहीं किया. इसके बाद सरकार ने 5 सितंबर को 26 ऐप्स को बैन कर दिया. सोशल मीडिया के इस प्रतिबंध को युवाओें ने सरकार के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले और युवाओं को देश दुनिया के साथ संवाद स्थापित कर सकने से रोकने के तौर पर लिया. 

युवाओं के गुस्से के बाद नेपाल में बैकफुट पर पुलिस

इसके लिए युवाओं ने आंदोलन चलाने की योजना बनाई. आंदोलन के लिए 'हम नेपाल' संगठन ने सरकार से काठमांडू में प्रदर्शन की अनुमति मांगी और सरकार ने इसके लिए अनुमति भी दी. सरकार का आकलन था कि आंदोलन सामान्य ही होगा. उसको इतनी अधिक संख्या मे युवाओं के सड़क पर उतरने का अंदेशा नहीं था. युवा न केवल सड़क पर उतरे, उन्होंने पुलिस के साथ टकराव लेना शुरू किया. काठमांडू में प्रदर्शन के बाद यह आंदोलन दूसरे शहरों में भी फैलना शुरू हो गया. 

पुराना असंतोष, नया आंदोलन 

तात्कालिक कारण इस युवा आंदोलन का भले ही सोशल मीडिया पर प्रतिबंध है, लेकिन युवाओं के अंदर असंतोष काफी लंबे समय से उबल रहा था. माओवादी आंदोलन और उसके बाद राजतंत्र की समाप्ति के बाद युवाओं में यह आशा काफी ज्यादा हो गई कि जो भ्रष्टाचार अब तक था वह खत्म हो जाएगा और देश में एक नई राजनीतिक संस्कृति का जन्म होगा. लेकिन हुआ कुछ भी नहीं. नेपाल नकेवल राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता का शिकार हो गया, बल्कि उसकी आर्थिक स्थिति भी खराब होती चली गई.

कोविड में खराब हुई आर्थिक स्थिति में उसके बाद कोई भी सुधार नहीं हुआ. युवाओं को लगातार विदेशों में पलायन होता रहा. अकुशल मजदूरों के साथ विदेशों में होने वाले अमानवीय व्यवहार को लेकर कहीं न कहीं एक परेशानी नेपाली समाज में थी. महंगाई और बेरोजगारी ने युवाओं को और बेचैन किया. सबसे बड़ी समस्या यह रही कि नेपाल के तीन बड़े राजनीतिक दल माओवादी, नेपाली कांग्रेस और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी एमाले नेपाल की समस्याओं को सुलझाने के बजाय सत्ता की कुर्सी की दौड़ में शामिल हो गए.

युवाओं ने राजनीतिक दलों को इस असंतोष को कई तरह से बताने का प्रयास किया. सबसे पहले पिछले चुनाव में एक नई राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन एक टीवी एंकर ने किया और चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया. इस पार्टी ने बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को अपना विशेष मुद्दा बनाया. इसके साथ शहरी युवाओं का एक बड़ा हिस्सा जुड़ गया. यह परिणाम यह दर्शाने के लिए काफी था कि युवाओं का परंपरागत राजनीतिक दलों से मोहभंग हो गया है. लेकिन लोकतांत्रिक पार्टी के नेता रवि लामेछीने विवादों मे घिर गए और युवाओं इस कारण खुद को ठगा महसूस करने लगे. 

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प्रदर्शन में कई युवा घायल हुए हैं.

इसके बाद राजतंत्र समर्थक पार्टियों ने राजा को आगे कर युवाओं को नया मंच प्रदान करने का प्रयास किया. गोया कि यह एक प्रतिक्रियावादी कदम था लेकिन युवा उस ओर आकर्षित हो रहे थे. कुछ लोग यह कहने लगे कि राजनीतिक पार्टियों में जितना भ्रष्टाचार है उससे तो राजतंत्र ही अच्छा था. इस पूरे प्रकरण के बाद भी राजनीतिक दलों ने कोई सबक नहीं सीखा और सत्ता बनाने की दौड़ में शामिल रहे. शायद इन राजनीतिक दलों को यह भ्रम रहा कि देश में हमारा कोई विकल्प है ही नहीं, जिसको युवा इस बार खत्म करने के मूड में लग रहे हैं.

श्रीलंका और बांग्लादेश युवाओं का प्रभाव

युवाओं के इस आंदोलन की प्रेरणा श्रीलंका और बांग्लादेश के युवाओं के सत्ता परिवर्तन का प्रभाव साफ देखा जा सकता है. इन दो देशों में युवाओं ने जिस तरह से सत्ता को आंदोलन से निकाल बाहर किया वह निश्चित तौर पर इन युवाओं की प्रेरणा बनी है. पहले 2022 में श्रीलंका और 2024 में बाग्लादेश में युवाओं ने सफलता हासिल की. नेपाल के युवा अपने देश में इस तरह के आंदोलन को देख रहे हैं. इन युवाओं को लगता है कि अगर इन दो देशों में युवा सत्ता परिवर्तन कर सकते हें तो हम भी कर सकते हैं. 

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