NDTV युवा कॉन्क्लेव: बांसुरी स्वराज ने बताया मां से विरासत में मिली कौन सी खूबसूरत चीज, क्यों रखा गया यूनिक नाम?

बांसुरी स्वराज ने कहा, "मैंने अपने नाम को लेकर मां से सवाल किया था. मेरी मां सुषमा स्वराज ने मुझसे कहा कि श्रीकृष्ण की सबसे प्यारी चीज पर तुम्हारा नाम रखा गया है. मुझे लगता है कि ये सबसे सुंदर जवाब था."

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नई दिल्ली:

नई दिल्ली से BJP की लोकसभा सांसद और दिवंगत सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज (Bansuri Swaraj) ने आज की पीढ़ी (Gen Z) को अंग्रेजी के साथ-साथ अपनी मातृभाषा को सीखने और इसे आगे बढ़ाने की अपील की है. गुरुवार को NDTV के युवा कॉन्क्लेव के पांचवें एडिशन में बांसुरी स्वराज ने अपने परिवार, अपने प्रोफेशन और पॉलिटिकल करियर पर खुलकर बात कीं. इस दौरान बांसुरी ने अपने यूनिक नाम को लेकर भी एक किस्सा सुनाया. बांसुरी कहती हैं, "मुझे अपनी मां से विरासत में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति मिली है. आज मैं जहां भी हूं, श्रीकृष्ण कृपा से हूं."

बांसुरी स्वराज ने कहा, "मैंने अपने नाम को लेकर मां से सवाल किया था. मेरी मां सुषमा स्वराज ने मुझसे कहा कि श्रीकृष्ण की सबसे प्यारी चीज पर तुम्हारा नाम रखा गया है. मुझे लगता है कि ये सबसे सुंदर जवाब था." 

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बांसुरी कहती हैं, "बेशक जब मैं स्कूल में थी, तो मेरे नाम को लेकर मज़ाक उड़ाया जाता था. कोई कहता था कि अगर मेरा भाई होता तो क्या उसका नाम तबला रखा जाता? मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था. मैं वास्वत में अपनी मां और पिता की शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरा इतना यूनिक नाम रखा."

संस्कृत शुभता का प्रतीक
संस्कृत में लोकसभा सांसद की शपथ लेने से जुड़े सवाल पर बांसुरी ने कहा, "आज की पीढ़ी के लिए भाषा से जुड़ना, भाषा से कनेक्ट होना बहुत जरूरी है. बात सिर्फ हिंदी या संस्कृत की नहीं है. आपको अपनी मातृभाषा से जुड़ना जरूरी है.

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बांसुरी कहती हैं, "मेरी मां ने भी संस्कृत में शपथ ली थी. लेकिन मेरा मकसद उन्हें कॉपी करना नहीं था. बल्कि हमारी भारतीय संस्कृति में संस्कृत को शुभता का प्रतीक है. जब भी आप अपने जीवन में किसी भी चीज का शुभारंभ करते हैं, तो इसके लिए संस्कृत में श्लोक बोलते हैं. मुझे लगा कि मैं लोकतंत्र के मंदिर में जाकर अपने जीवन में एक नई शुरुआत कर रही हूं, तो मुझे संस्कृत में ऐसा करना चाहिए."

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शुरू से ही तय था भारत लौटना
वकालत से राजनीति में एंट्री करने वाली बांसुरी स्वराज ने कहा, "मैं बहुत खुश किस्मत हूं कि मुझे BJP से जुड़कर देश की सेवा करने का मौका मिला. जहां तक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की बात है, तो ये बहुत अच्छा अनुभव रहा. लेकिन मुझे पहले दिन से ही एक चीज साफ हो गई थी कि मुझे अपने देश लौटना है. मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूं. इसलिए मैं उन्हें छोड़कर विदेश में नहीं रहना चाहती थी. मैं जानती थी कि मैं ऑक्सफोर्ड सिर्फ पढ़ाई के लिए आई हूं. वापस मुझे अपने घर ही जाना है. रोजी- रोटी और जिंदगी मुझे अपने देश भारत में ही बनानी है."

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बांसुरी ने कहा, "महिला को पुरुष से कम समझने का अधिकार किसी को नहीं हैं. ऐसा कोई काम नहीं है, जिसे हम लड़कियां नहीं कर सकतीं. आप कुछ भी करिए उसमें अपना बेस्ट दीजिए. " 

अच्छा लगता है कोर्ट में रहना
BJP की सांसद बांसुरी स्वराज कहती हैं, "बेशक में राजनीति में आई हूं, लेकिन मुझे अपने प्रोफेशन से बेहद प्यार है. 17 साल से मैं इस प्रोफेशन से जुड़ी हुई हूं. मुझे मेरा काम बहुत पसंद है. मुझे कोर्ट में रहना अच्छा लगता है. लॉ की पढ़ाई ने एक तरह से मुझे उस तरीके से पेश होने की परमिशन दी, जैसी मैं हूं. शायद राजनीति ने मुझे लॉ में मैं क्या कर रही हूं, इसे समझाने में मदद की है."


बांसुरी कहती हैं, "18वीं लोकसभा में सिर्फ 4 फीसदी सदस्य ही पेशे से वकील हैं. मैं युवा पीढ़ी से अपील करती हूं कि वो लॉ को अपना प्रोफेशन बनाए और एक दिन चुनाव भी लड़ें."

समाज को नहीं है महिला और पुरुष में फर्क करने का हक
कोलकाता रेप-मर्डर केस में बांसुरी स्वराज पिटीशनर में शामिल थीं. इस मामले पर उन्होंने कहा, "मैं इस केस का राजनीतिकरण नहीं करना चाहती हूं. लेकिन वहां के प्रशासन ने रेप और मर्डर जैसे हैवानियत वाले, आत्मा को कचोटने वाले अपराध पर आत्महत्या का आवरण डाला. कोई भी संस्थान सिर्फ सेफ्टी इश्यू को लेकर महिलाओं के काम को बांध नहीं सकता.

बांसुरी स्वराज ने कहा, "अब वक्त आ गया है कि हम ये मान लें कि महिला सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की नहीं है. ये पुरुषों की भी जिम्मेदारी है. हमें वास्तव में लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लड़कों और पुरुषों को एजुकेट करने की जरूरत है. हमारा देश अर्धनारीश्वर (भगवान शिव का एक रूप) का देश है. जब भगवान ने महिला और पुरुष में फर्क नहीं किया, तो ये समाज कैसे महिला और पुरुष में अंतर कर सकता है?"

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