NDTV World Summit: कॉलेज से निकलते ही मिले नौकरी, विदेशी यूनिवर्सिटी कैसे दे सकती हैं इसमें योगदान, जानें

NDTV World Summit में डीकिन यूनिवर्सिटी की CEO रवनीत पाहवा और एम3एम फाउंडेशन की चेयरपर्सन पायल कनोडिया ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने भारत के विदेशी शिक्षा और वैश्विक सहयोग को देखने का नजरिया बदल दिया है.

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  • NDTV World Summit के 'अपस्किलिंग इंडिया: फ्रॉम नॉलेज टू एम्प्लॉयबिलिटी' सेशन में स्किल इंडिया पर चर्चा हुई
  • डीकिन यूनिवर्सिटी की CEO रवनीत पाहवा, M3M फाउंडेशन की ट्रस्टी चेयरपर्सन डॉ. पायल कनोडिया ने अपने विचार रखे
  • कहा- नई शिक्षा नीति-2020 के तहत युवाओं को स्किल्स से लैस करने में विदेशी यूनिवर्सिटी योगदान दे सकती हैं
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भारत की शिक्षा व्यवस्था की एक बड़ी खामी ये मानी जाती है कि स्कूल-कॉलेजों में जो पढ़ाया जाता है, वह असल जिंदगी में ज्यादा काम नहीं आता. नरेंद्र मोदी सरकार ने इस धारणा को बदलने के लिए नई सोच के साथ काम शुरू किया है. नई शिक्षा नीति 2020 के तहत युवाओं को स्किल्स से लैस करके फ्यूचर रेडी बनाने पर मिशन मोड में काम हो रहा है. सरकार के इस मिशन में विदेशी यूनिवर्सिटी किस तरह योगदान दे सकती हैं. NDTV World Summit 2025 में इस पर चर्चा हुई. 

डीकिन यूनिवर्सिटी की सीईओ और वाइस प्रेसिडेंट रवनीत पाहवा तथा एम3एम फाउंडेशन की चेयरपर्सन व ट्रस्टी डॉ. पायल कनोडिया ने 'अपस्किलिंग इंडिया: फ्रॉम नॉलेज टू एम्प्लॉयबिलिटी' नामक सेशन में कहा कि विदेशी विश्वविद्यालय अपने ज्ञान से भारतीय युवाओं को समृद्ध बना सकते हैं. 

रवनीत पाहवा ने विस्तार से यह भी समझाया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने किस तरह भारत के विदेशी शिक्षा और वैश्विक सहयोग को देखने का नजरिया पूरी तरह बदल दिया है. उन्होंने कहा कि भारत में एक दौर NEP-2020 से पहले का था, और एक दौर उसके बाद का है. इस दौरान यह सोच पूरी तरह बदल गई है कि भारत किस तरह फॉरेन एजुकेशन और ग्लोबल एंगेजमेंट को दखता है. 

उन्होंने कहा कि 2020 के बाद भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के बीच सहयोग का रास्ता खुला है, जिसका सार्थक प्रभाव सामने आ सकता है. इसकी खास बात ये है कि आज हम दोनों दुनिया के बेस्ट माइंड्स को साथ लाकर भारत में लर्निंग के एक नए इकोसिस्टम को आकार दे सकते हैं. 

रवनीत पाहवा ने कहा कि जब हम विकसित भारत के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले जो बात दिमाग में आती है, वह है स्किल्स और यहां के लोग. भारत में दुनिया की 5 प्रतिशत स्किल्ड पॉपुलेशन है, इसके बावजूद रोजगार पाने लायक स्किल्स के बीच एक बड़ा अंतर बना हुआ है.

आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि स्किलिंग प्रोग्राम करने वाले सिर्फ 15 फीसदी लोगों को ही रोजगार मिला है, जबकि बाकी 85 पर्सेंट लोग ट्रेंड होने के बावजूद अभी भी नौकरी की तलाश में हैं. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति को देखते हुए भारत के सामने चुनौती यह है कि हम अगले 20 वर्षों में किस तरह देश को दुनिया की स्किल कैपिटल बना सकते हैं. इसमें फॉरेन यूनिवर्सिटीज अहम भूमिका निभा सकती हैं.

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डीकिन यूनिवर्सिटी ने हाल ही में भारत में अपना कैंपस खोला है. वह भारत में कैंपस खोलने वाली पहली विदेशी यूनिवर्सिटी है. डीकिन विदेश की तरह भारत में भी उसी क्वालिटी के साथ एजुकेशन प्रोवाइड कर रही है. पाहवा ने बताया कि भारतीय कैंपस से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. 

डॉ. पायल कनोडिया ने जोर देकर कहा कि सरकार के स्किल मिशन में भारत की ग्रामीण आबादी को सबसे अधिक सपोर्ट करने की जरूरत है. उनका कहना था कि स्किल डेवलपमेंट और एजुकेशन एक साथ प्रदान की जा सकती है. 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के विजन को देखते हुए गांवों में रहने वाले युवाओं पर फोकस करना जरूरी है. भारत की अधिकांश आबादी चूंकि ग्रामीण इलाकों में रहती है, इसलिए उन्हें कौशल से लैस करना और शिक्षा के अवसरों तक उनकी अधिक पहुंच सुनिश्चित करना समय की जरूरत है.

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