National Mango Day: स्वाद से सियासत तक... फलों का 'राजा' आम कैसे बन गया संस्‍कृति, अर्थव्‍यवस्‍था और कूटनीति का आधार?

मैंगो डिप्लोमेसी का इतिहास काफी पुराना है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहते हुए जिया उल हक भी इंदिरा गांधी को आम भेजा करते थे.  

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  • भारत में आम की उत्पत्ति करीब पांच हजार वर्ष पहले बताई जाती है और ये दुनिया का सबसे बड़ा आम उत्पादक भी है.
  • भारत में आम की सैकड़ों किस्में पाई जाती हैं, जिनमें हापुस, दशहरी, लंगड़ा, मालदा और बंगनपल्ली प्रमुख हैं.
  • मैंगो डिप्लोमेसी के जरिये भारत और पड़ोसी देशों के बीच राजनयिक और सांस्कृतिक संबंधों को मिठास मिलता रहा है.
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देश में फलों का राजा आम (Mango), केवल एक फल नहीं, बल्कि एक संस्‍कृति है. इसके साथ हम भारतीयों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं, ये एक ऐसी परंपरा का हिस्‍सा है, जो सदियों से हमारी जीवनशैली का अभिन्न अंग रहा है. हर साल 22 जुलाई को 'राष्‍ट्रीय आम दिवस' (National Mango Day) के रूप में मनाया जाता है. ये दिन आम के अनोखे स्‍वाद, इसके सामाजिक, सांस्‍कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक महत्‍व  के साथ-साथ देश से गहरे जुड़ाव को सेलिब्रेट करने का दिन है. 

भारतीयों के जीवन में गर्मी का ऐसा कोई मौसम नहीं गुजरता, जब हम आम का रसास्‍वादन न कर लें. और ये सिर्फ हमारे जीभ तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक ताने-बाने से लेकर अंतरराष्‍ट्रीय कूटनीति तक का हिस्‍सा रहा है. 

भारत सबसे बड़ा उत्‍पादक देश 

आम को अंग्रेजी में Mango कहा जाता है, जो कि इसके वैज्ञानिक नाम Mangifera indica से आया. वैसे तो इसका मूल स्थान दक्षिण एशिया बताया जाता है, लेकिन दक्षिण एशिया में खासतौर से भारत, म्यांमार और बांग्लादेश आम की उत्पत्ति की जगह मानी जाती है. आम की उत्पत्ति भारत में 4,000-5,000 साल पहले हुई मानी जाती है. भारत आज दुनिया में सबसे बड़ा आम उत्पादक भी है, जहां हर साल करीब 25 मिलियन मीट्रिक टन आम का उत्पादन होता है. ये दुनिया में आम की कुल पैदावार का लगभग आधा है.  

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भारतीय सभ्‍यता-संस्‍कृति में रचा-बसा आम 

आम के अनूठे स्वाद और गुणों के कारण ये भारतीय उपमहाद्वीप में काफी लोकप्रिय हुआ. वरिष्‍ठ पत्रकार और लेखक सोपान जोशी ने इस पर Mangifera Indica: A Biography Of The Mango नाम से एक शानदार किताब लिखी है. आम हमारी लोककथाओं का हिस्‍सा रहा, कला का हिस्‍सा रहा और हमारे पारंपरिक और धार्मिक अनुष्‍ठानों में भी शामिल हो गया. फल के साथ-साथ इसकी पत्तियों का भी विशेष महत्‍व है. आम भारतीय त्योहारों का भी एक अभिन्न हिस्सा है. होली से लेकर गणेश चतुर्थी तक, आम और उसके पत्तों का प्रयोग पूजा-पाठ और सजावट में होता है. घर के अनुष्‍ठानों में, पर्व-त्‍यौहारों पर मूंज की रस्‍सी में आम की पत्तियों को लगाना शुभ माना जाता है. 

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आम की विविधता, स्‍वाद और पोषण

भारत आम की सैकड़ों किस्मों का ठिकाना है और हर आम का अपना अनूठा स्‍वाद, अनोखी सुगंध और अलग बनावट है. जैसे कि महाराष्ट्र का 'हापुस' (अल्फांसो) अपनी सुगंध के लिए प्रसिद्ध है, जबकि उत्तर प्रदेश का 'दशहरी' और 'लंगड़ा' अपनी मिठास के लिए जाने जाते हैं. बिहार का 'मालदा' और आंध्र प्रदेश का 'बंगनपल्ली' भी अपनी अलग पहचान रखते हैं.

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मुग़ल सम्राटों को तो आम से विशेष लगाव था. बाबर और शाहजहां जैसे शासक इसके अनूठे स्वाद के दीवाने थे. मुगलों के काल में भारत में आम की कई नई किस्में, जैसे कि प्रसिद्ध 'दशहरी' और 'चौसा' वगैरह विकसित हुईं.

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इसकी विभिन्न किस्में, जैसे कैसर, चौसा, लंगड़ा, दशहरी, हापुस और टोटापुरी स्वाद और सुगंध में भिन्न होती हैं. गर्मियों के मौसम में भारतीय घरों में आम से बने कई व्‍यंजन, जैसे आमरस, मैंगो शेक, आम पन्‍ना, अचार और चटनी वगैरह बनाए जाते हैं. 

आम सेहत के लिए भी फायदेमंद माना जाता है. ये विटामिन C, विटामिन A, फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट का एक उत्कृष्ट स्रोत है. यह पाचन सुधारता है, साथ ही इम्‍यून सिस्‍टम भी मजबूत बनाता है.

मैंगो डिप्लोमेसी: आम के जरिये खास संबंध बनाने की नीति 

आम का स्‍वाद केवल हमारे खानपान तक सीमित नहीं, बल्कि इसने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी एक दिलचस्प भूमिका निभाई है, जिसे 'मैंगो डिप्लोमेसी' (Mango Diplomacy) कहा जाता है. ये वो तरीका है, जब दो देशों के बीच आम जैसे पारंपरिक उत्पादों को उपहार के तौर पर देकर राजनयिक संबंध मजबूत बनाने की कोशिश की जाती है. मैंगो डिप्लोमेसी का इतिहास काफी पुराना है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहते हुए जिया उल हक भी इंदिरा गांधी को आम भेजा करते थे.  

हाल के वर्षों में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हर साल विशेष किस्म के आम भेजना सुर्खियों में रहा है. यह एक ऐसा मीठा जेस्चर है जो राजनीतिक मतभेदों के बावजूद सौहार्द और व्यक्तिगत संबंध बनाए रखने का प्रतीक बन गया है. ममता बनर्जी दशकों से ऐसा कर रही हैं, जिसमें लक्ष्मणभोग और हिमसागर जैसी खास किस्में शामिल होती हैं.

इसी तरह, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भी कई बार प्रधानमंत्री मोदी और भारत के अन्य नेताओं के लिए आम भिजवा चुकी हैं. यह सिर्फ एक उपहार नहीं होता, बल्कि ये दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और राजनीतिक सौहार्द को बढ़ावा देने का एक तरीका है. ये दर्शाता है कि कैसे एक साधारण सा फल दो देशों के बीच संबंधों में मिठास घोल सकता है और बातचीत के लिए एक अनौपचारिक रास्ता खोल सकता है.

साल 2021 से बांग्‍लादेश ने मैंगो-डिप्‍लोमेसी की शुरुआत की थी. साल 2022 में तो बांग्‍लादेश की तत्‍कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की ओर से भेजे गए 600 किलो आम पर खूब चर्चा हुई थी. ममता से पहले हसीना ने तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री मोदी को भी आम भेंट किए गए थे. आम के साथ उन्‍होंने हिल्‍सा भी भेजे थे. जानकार बताते हैं कि शेख हसीना खासकर 'हिल्सा-आम' कूटनीति के जरिये भारत के प्रति अपनी उदार पड़ोसी वाली मानसिकता दिखाती रहीं. भारत की ओर से आर्थिक मदद के तौर पर इसका बांग्‍लादेश को बहुत फायदा भी मिला. 

अर्थव्‍यवस्‍था में अहम रोल 

दुनिया के सबसे बड़े उत्‍पादक देश भारत में आम की खेती लाखों किसानों के लिए आजीविका का स्रोत है. इसके जरिये न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, बल्कि इसका निर्यात विदेशी मुद्रा लाने में भी भूमिका निभाता  है. सरकारें भी आम किसानों को बेहतर बीज और बाजार पहुंच सुगम बनाकर समर्थन करती हैं ताकि आम उत्पादन बढ़े और किसानों की आय भी बढ़े.  

आम का मौसम भारत में एक उत्सव की तरह होता है. खासतौर से 1987 से हर साल राजधानी दिल्‍ली में मनाया जाने वाला 'अंतरराष्ट्रीय आम महोत्सव' दुनियाभर में फेमस है, जहां आम की 500 से अधिक किस्‍मों का प्रदर्शन होता है. ये महोत्सव किसानों को अपनी उपज बेचने और आम के शौकीनों को नई किस्मों का अनुभव करने का अवसर भी देता है. 
 

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