NASA का बड़ा खुलासा, सैटेलाइट भी नहीं पकड़ पा रहे पराली की आग, क्या आधिकारिक डेटा क्यों बता रहा गलत तस्वीर?

NASA के अध्ययन से पता चला है कि पंजाब-हरियाणा में किसान अब शाम 4 से 6 बजे पराली जला रहे हैं, जिससे उपग्रह ट्रैकिंग फेल हो रही है. देर शाम की आगजनी से प्रदूषक रातभर जमा होकर सुबह की हवा को और जहरीला बना रहे हैं. 

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  • उत्तर भारत में पराली जलाने का समय शाम चार से छह बजे के बीच हो रहा है, जिससे उपग्रह ट्रैकिंग मुश्किल हो गई है
  • देर शाम पराली जलाने से जहरीले प्रदूषक कण रातभर हवा में जमा रहते हैं और सुबह की हवा और अधिक प्रदूषित होती है
  • किसान जानबूझकर उपग्रहों के गुजरने के बाद पराली जलाते हैं ताकि आधिकारिक आंकड़ों में आग की संख्या कम दिखे
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नई दिल्ली:

उत्तर भारत में पराली जलाने का पैटर्न बदल रहा है और यह बदलाव वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है. NASA के वैज्ञानिकों ने उपग्रह डेटा के विश्लेषण के आधार पर बताया है कि पंजाब और हरियाणा के किसान अब धान की पराली शाम 4 बजे से 6 बजे के बीच जला रहे हैं. यह समय MODIS और VIIRS जैसे निगरानी उपग्रहों के गुजरने के बाद का है, जो दिन में केवल एक या दो बार क्षेत्र को स्कैन करते हैं. नतीजतन, देर शाम की आगजनी को पूरी तरह से ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है. 

प्रदूषण पर असर: रातभर जमा होते जहरीले कण

विशेषज्ञों का कहना है कि देर शाम पराली जलाने से प्रदूषक कण रातभर हवा में जमा रहते हैं. ठंडी और स्थिर हवा के कारण ये कण फैलने के बजाय जमीन के करीब रहते हैं, जिससे सुबह की हवा और ज्यादा जहरीली हो जाती है. यह स्थिति दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत में सर्दियों के स्मॉग को और खतरनाक बना सकती है.

आधिकारिक डेटा पर उठ रहे हैं सवाल

थिंक टैंक iForest के हालिया अध्ययन ने इस मुद्दे को और स्पष्ट किया है. अध्ययन के मुताबिक, किसान जानबूझकर उपग्रहों के गुजरने के बाद पराली जलाते हैं ताकि आधिकारिक रिकॉर्ड में आग की गिनती कम दिखे. इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) के आंकड़े MODIS और VIIRS डेटा पर आधारित हैं, जिनमें 2021 के बाद पंजाब और हरियाणा में एक्टिव फायर काउंट में 90% गिरावट दिखाई गई थी. लेकिन iForest ने जियोस्टेशनरी सैटेलाइट डेटा का उपयोग कर पाया कि अधिकांश आग दोपहर 3 बजे के बाद लगी थी.

अध्ययन के अनुसार, 2025 में पंजाब में लगभग 20,000 वर्ग किमी और हरियाणा में 8,800 वर्ग किमी फसल क्षेत्र जला था. हालांकि पराली जलाने में 25-35% कमी आई है, लेकिन यह आधिकारिक दावे के 95% गिरावट से काफी अलग है.

क्यों जरूरी है बदलाव?

विशेषज्ञों का मानना है कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन रणनीतियों में संशोधन की जरूरत है. मौजूदा सिस्टम केवल दिन के समय की आग को ट्रैक करता है, जबकि शाम की आगजनी का डेटा गायब है. इससे पराली जलाने के योगदान को कम आंका जा रहा है, जो सर्दियों के प्रदूषण में 5-10% तक हो सकता है.

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