"हर साल ईद पर मां...." हीराबेन के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री ने शेयर की यादें, बचपन के दोस्त का किया जिक्र

पीएम मोदी (PM Modi) ने एक ब्लॉग लिखकर बताया कि री मां का मुझ पर बहुत अटूट विश्वास रहा है. और अपने द्वारा दिये गये संस्कारों पर पूरा भरोसा रहा है. मोदी से मां के बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) यात्रा से जुड़ा एक किस्सा सुनाया.

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मां को जन्मदिन की बधाई देने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मां हीराबेन के 100वें साल में प्रवेश करने पर गांधीनगर स्थित आवास उनसे मिलने पहुंचे और मां का आशीर्वाद लिया. इस मौके पर पीएम मोदी ने एक ब्लॉग लिखा इसमें उन्होंने अपनी मां के जीवन से जुड़े कुछ तथ्य जनता के साथ साझा किये. मोदी ने लिखा, मेरी मां का मुझ पर बहुत अटूट विश्वास रहा है. उन्हें अपने दिए संस्कारों पर पूरा भरोसा रहा है. मुझे दशकों पुरानी एक घटना याद आ रही है. तब तक मैं संगठन में रहते हुए जनसेवा के काम में जुट चुका था. घरवालों से संपर्क ना के बराबर ही रह गया था. उसी दौर में एक बार मेरे बड़े भाई, मां को बद्रीनाथ जी, केदारनाथ जी के दर्शन कराने के लिए ले गए थे. बद्रीनाथ में जब मां ने दर्शन किए तो केदारनाथ में भी लोगों को खबर लग गई कि मेरी मां आ रही हैं.

"उसी समय अचानक मौसम भी बहुत खराब हो गया था. ये देखकर कुछ लोग केदारघाटी से नीचे की तरफ चल पड़े. वो अपने साथ में कंबल भी ले गए. वो रास्ते में बुजुर्ग महिलाओं से पूछते जा रहे थे कि क्या आप नरेंद्र मोदी की मां हैं? ऐसे ही पूछते हुए वो लोग मां तक पहुंचे. उन्होंने मां को कंबल दिया, चाय पिलाई. फिर तो वो लोग पूरी यात्रा भर मां के साथ ही रहे. केदारनाथ पहुंचने पर उन लोगों ने मां के रहने के लिए अच्छा इंतजाम किया. इस घटना का मां के मन में बड़ा प्रभाव पड़ा. तीर्थ यात्रा से लौटकर जब मां मुझसे मिलीं तो कहा कि “कुछ तो अच्छा काम कर रहे हो तुम, लोग तुम्हें पहचानते हैं”.

PM मोदी का यह पूरा ब्लॉग आप यहां से पढ़ सकते हैं.

पीएम आगे लिखते हैं कि "अब इस घटना के इतने वर्षों बाद, जब आज लोग मां के पास जाकर पूछते हैं कि आपका बेटा पीएम है, आपको गर्व होता होगा, तो मां का जवाब बड़ा गहरा होता है. मां उन्हें कहती है कि जितना आपको गर्व होता है, उतना ही मुझे भी होता है. वैसे भी मेरा कुछ नहीं है. मैं तो निमित्त मात्र हूं. वो तो भगवान का है."

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अब्बास ने मेरे घर में रहकर पढ़ाई-लिखाई की  
"हमारे घर से थोड़ी दूर पर एक गांव था, जिसमें मेरे पिताजी के बहुत करीबी दोस्त रहा करते थे. उनका बेटा था अब्बास. दोस्त की असमय मृत्यु के बाद पिताजी अब्बास को हमारे घर ही ले आए थे. एक तरह से अब्बास हमारे घर में ही रहकर पढ़ा. हम सभी बच्चों की तरह मां अब्बास की भी बहुत देखभाल करती थीं. ईद पर मां, अब्बास के लिए उसकी पसंद के पकवान बनाती थीं. त्योहारों के समय आसपास के कुछ बच्चे हमारे यहां ही आकर खाना खाते थे. उन्हें भी मेरी मां के हाथ का बनाया खाना बहुत पसंद था."

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