पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक और 1999 के कारगिल युद्ध के सूत्रधार जनरल परवेज मुशर्रफ का जन्म अविभाजित भारत में दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में हुआ था. उन्हें अपना जन्म प्रमाण पत्र छह दशक बाद 2005 में यहां की अपनी यात्रा के दौरान प्राप्त हुआ था. गंभीर बीमारी से जूझते हुए 79 साल की उम्र में रविवार को मुशर्रफ का दुबई में निधन हो गया. वह पाकिस्तान में अपने खिलाफ आपराधिक मामलों से बचने के लिए संयुक्त अरब अमीरात में स्व-निर्वासन में रह रहे थे.
मुशर्रफ का जन्म 11 अगस्त, 1943 को हुआ था. द्वितीय विश्व युद्ध के कारण काफी उथल-पुथल का समय था और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने भी गति पकड़ ली थी. मुशर्रफ 1947 में भारत के विभाजन के बाद अपने परिवार के साथ नवगठित पाकिस्तान चले गए. पुराने रिकॉर्ड के अनुसार, मुशर्रफ का जन्म यहां के एक सरकारी अस्पताल में हुआ था, जिसे अब गिरधारी लाल प्रसूति अस्पताल के रूप में जाना जाता है, जो दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अंतर्गत आता है.
दिल्ली के मध्य में कमला मार्केट के पास स्थित, यह शहर के सबसे पुराने अस्पतालों में से एक है और इसने पुरानी दिल्ली में रहने वाले लोगों को बड़े पैमाने पर सेवा प्रदान की है. नगर निगम के एक पूर्व अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया, ‘‘उनका (मुशर्रफ का) परिवार पुरानी दिल्ली में रहता था. आसपास दो अस्पताल हैं दरियागंज में विक्टोरिया जनाना अस्पताल (स्वतंत्रता के बाद नाम बदलकर कस्तूरबा अस्पताल किया गया) और गिरधारी लाल प्रसूति अस्पताल.''
उन्होंने कहा, ‘‘हम जानते थे कि उनका (मुशर्रफ) जन्म दिल्ली में हुआ था और आज खबरों से पता चला कि उनका दुबई में निधन हो गया.'' जब मुशर्रफ ने अप्रैल 2005 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में भारत का दौरा किया, तो भारत सरकार ने उन्हें एक विशेष उपहार उनका जन्म प्रमाण पत्र दिया था. वर्ष 2011 में सेवानिवृत्त हुए पूर्व अधिकारी ने कहा कि 1940 के दशक में और 2005 में भी, जन्म और मृत्यु के रिकॉर्ड कागजात के रूप में रखे जाते थे. उन्होंने कहा, ‘‘60 से अधिक वर्षों के बाद 1940 के दशक के जन्म प्रमाण पत्र की तलाश करना आसान काम नहीं रहा होगा.''
सत्रह अप्रैल, 2005 की एक अभिलेखीय छवि के अनुसार, मुशर्रफ ने अपनी तीन दिवसीय भारत यात्रा के दौरान नयी दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अपना जन्म प्रमाणपत्र प्राप्त किया था. मुशर्रफ 2005 की अपनी भारत यात्रा के दौरान अजमेर शरीफ भी गए थे और प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मत्था टेका.
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