मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में एक माह से ज्यादा वक्त लॉकडाउन (Mumbai Lockdown Coronavirus) का हो चुका है. 24 घंटे सरपट दौड़ती रहने वाली मुंबई में भी आर्थिक गतिविधियां ठप हैं और इसकी मार डब्बावाला (Mumbai's Dabbawala ) पर भी पड़ी है. जो डब्बेवाले पूरे शहर का पेट भरते थे,आज उन्हें खुद अपना पेट भरने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना के चलते डब्बेवाले कई तरह के काम करने को मजबूर हैं. जिन साइकिलों के ज़रिये डब्बेवाले पूरे मुम्बई में डब्बे पहुंचाने का काम करते थे, फिलहाल वो साइकिलें कोरोना के चलते धूल फांक रही हैं.
30 सालों से घर-घर टिफिन पहुंचाने का काम करने वाले 49 साल के बाजीराव सत्कार मुंबई के माटुंगा इलाके में रहते हैं. बाजीराव पहले जहां 25 से 30 टिफ़िन की सप्लाई किया करते थे तो वहीं अब बमुश्किल 5 से 6 टिफ़िन पहुंचा पाते हैं. घर चलाने के लिए पैसों की ज़रूरत पड़ती है. इसके लिए अब इन्हें कुली का भी काम करना पड़ता है. बाजीराव का कहना है कि पहले जहां महीने में 25 हज़ार रुपये कमा लेता था, तो वहीं अब 6 हज़ार रुपये ही कमा पाता हूं. घर चलाने के लिए कभी कभी कुली का काम भी करता हूँ, लेकिन फिर भी पैसे नहीं जुट पाते हैं.
बाजीराव की पत्नी शांताबाई सत्कार ने कहा, जीना बहुत मुश्किल है, ऐसे हालात में हम कैसे रह सकते हैं. अतुल मेंढे 6 साल से डब्बा पहुंचाने का काम करते हैं. मेंढे ने पिछले साल नवंबर में डब्बा पहुंचाने के काम में पैसे नहीं होने की वजह से छोड़ दिया और अब गाड़ी चलाने का काम करते हैं. इस काम में उनका मन नहीं लगता, लेकिन मजबूरन करना पड़ रहा है.मुंबई में डब्बेवाले करीब 130 सालों से काम कर रहे हैं और दफ्तरों में डिब्बे पहुंचाने के इनके काम को कई जगह पहचान भी मिली है,
लेकिन अब धीरे धीरे हालात खराब हो रहे हैं. मुंबई में करीब 5000 डब्बेवाले मौजूद हैं.लॉकडाउन के वजह से केवल 350 से 400 लोगों के पास ही काम मौजूद है.अभी केवल 5 फीसदी काम ही बचा हुआ है.मुंबई टिफ़िन सर्विस एसोसिएशन (Mumbai Tiffin Service Association) के प्रवक्ता विष्णु कलडोके ने कहा कि डब्बेवालों को बहुत परेशानी हुई है, काम बचा नहीं है, लोग दूसरा काम ढूंढ रहे हैं.सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए.