मुंबई की दो बहनों ने उठाई माथेरान के घोड़ों को बचाने की मुहिम, कोरोना से बेजार है हिल स्टेशन

महाराष्ट्र में मुंबई के करीब छोटे से हिल स्टेशन माथेरन पर घोड़े ही एकमात्र वाहन हैं. कोविड से पहले कई मुंबईकरों के लिए लगभग हर वीकेंड का ये ठिकाना रहा. यहां की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी है. जो महीनों से बंद है...

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माथेरन में बुरे दौर से गुजर रहे घोड़ों और उनके मालिकों के लिए मुंबई की दो बहनों ने उठाई आवाज.
मुंबई:

मुंबई (Mumbai Corona Lockdown) के पास एक छोटा सा माथेरान हिल स्टेशन ( Matheran Hill Station) है, मुंबईकरों के लिए यह वीकेंड का लोकप्रिय ठिकाना (Tourist Place) है. लेकिन यह हिल स्टेशन कोरोना की मार से बेजार हैं. यहां परिवहन का एकमात्र साधन घोड़े हैं. इन घोड़ों और उनके मालिकों के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. मुंबई की दो बहनें माथेरान के घोड़ों और उनके मालिकों को बचाने में जुट गई है. मुंबई शहर से माथेरान 80 किलोमीटर दूर है. यह देश का सबसे छोटा हिल स्टेशन भी कहलाता है. यहां सिर्फ घोड़ों से ही यात्रा की जा सकती है. कोविड के कारण यहां कामकाज ठप है. 50 फीसदी लोगों की आजीविका घोड़ों पर ही टिकी है. घोड़ों को रोज हर 250 रुपये का खाना लगता है. 15 साल की रिदा और 12 साल की दानिया (Mumbai Sisters) को जब माथेरान की यह कहानी पता चली तो उन्होंने मुहिम छेड़ी.

मुंबई से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित माथेरान देश का सबसे छोटा हिल स्टेशन भी कहलाता है. करीब 30 हजार जनसंख्या वाले माथेरान की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर है. यहा के वाहन सिर्फ घोड़े हैं, 50% परिवारों की आय इन घोड़ों पर ही निर्भर है. कोविड के चलते माथेरान के लोगों की आमदनी महीनों से बंद है. ऐसी मुश्किल घड़ी में घोड़ों को जिंदा रखना इनके मालिकों के लिए बड़ी चुनौती है.

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माथेरान के निवासी भावे ने बताया, ''मैं अकेला ही हूं, दूसरा काम करने वाला कोई नहीं है, पूरी आमदनी रुक गयी है, माथेरान का वाहन ये घोड़े ही हैं, रिक्शा खड़ी रही तो ऑटो ड्राइवर को रिक्शे पर खर्च नहीं करना पड़ेगा. लेकिन हमें इन घोड़ों को रोज खिलाना पड़ता ही है, इनपर एक दिन में ढाई सौ रुपय का खर्च आता है''.

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माथेरान के घोड़ों और इनके मालिकों की तकलीफ देख मुंबई की ये दो बहनें 15 साल की रिदा और 12 साल की दानिया ने सोशल मीडिया के जरिए क्राउडफंडिंग शुरू की है. इस क्रम में अभी तक 3 लाख रुपय इकट्ठा हो चुके हैं. बहनों द्वारा राशन और चारे जैसी तमाम मदद माथेरन पहुंचायी जा रही है. रिदा खान ने कहा, ''माथेरान के घोड़ों की पीड़ा के बारे में मुझे जानकारी स्कूल से मिली, प्रिन्सिपल और टीचर ने न्यूज़ अर्टीकल शेयर किया जिसमें हमने ये पढ़ा था, मैं और मेरी बहनों ने जब ये पढ़ा तो हम बेहद प्रभावित हुए और तब जाकर हमने ये क्राउडफ़ंडिंग शुरू की.''

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दूसरी बहन दानिया खान ने कहा, ''हमने क्राउड फंडिंग के लिए लोगों से अपील की, व्हाट्सऐप मेसेजेस सेंड किए, इन्स्टाग्राम अकाउंट के जरिए लोगों से मदद मांगी, दूसरे कुछ NGO जो ऐनिमल वेलफेयर के लिए काम करते हैं उनसे भी सम्पर्क किया.'' रिदा खान ने कहा कि हमें लोगों से बहुत अच्छा रेस्पॉन्स मिला. कुछ ही दिनों में हम 3 लाख इकट्ठा कर पाए, अब कोशिश है की जल्द चार लाख इकट्ठा कर पाएं. रिदा और दानिया की मां ने बताया कि मेरी बच्चियों को इस फैसले के लिए फैमिली फ़्रेंड्ज़ ने तो सपोर्ट किया ही, ऐसे लोगों ने भी सपोर्ट किया जो इन्हें जानते तक नहीं.

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नोबॉडी एवर स्लीप्स हंग्री संस्था के फाउंडर जोहेर दीवान ने कहा, ''ये दोनों बच्चियां.. बहनें ‘नोबॉडी एवर स्लीप्स हंग्री संस्था' की वॉरीअर हैं, घोड़ों की पीड़ा पढ़कर इन्होंने इनकी मदद के लिए पूरा प्रोजेक्ट तैयार किया, फंड इकट्ठा किया अब हमलोग यहां आए हैं. 240 घोड़ों के लिए चारा लाए हैं और राशन किट लोगों को बांट रहे हैं.''

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