प्रतिभाओं की खान भी है देश की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी बस्ती धारावी, क्यों निखर नहीं पाता है टैलेंट

समर्था देश की सबसे बड़ी झुग्गी झोपड़ी मानी जाने वाली धारावी की युवा प्रतिभाओं में से एक हैं. वो करीब चार साल की हैं, लेकिन वो सभी महाद्वीपों, ज्यादातर देशों और दुनिया के प्रमुख नेताओं के नाम जानती हैं. समर्था की मां महालक्ष्मी उनके भविष्य को लेकर चिंतिंत हैं. आइए जानते हैं कि इस चिंता का कारण क्या है.

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मुंबई:

समर्था का जन्म 2021 में हुआ था. वह केवल तीन साल की थीं, जब उन्होंने अपने घर में एनडीटीवी का स्वागत किया. जो भी उन्हें पहली बार देखेगा, वह आश्चर्यचकित रह जाएगा.इतनी कम आयु में ही समर्था दुनिया के सभी महाद्वीपों, ज्यादातर देशों और दुनिया के प्रमुख नेताओं के नाम बता सकती हैं.समर्था भूगोल, इतिहास और विज्ञान के साथ-साथ हर चीज के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं.

उनकी मां महालक्ष्मी हमें बताती हैं कि समर्था एक बार में सामान्य ज्ञान के करीब 150 सवालों के सही-सही जवाब दे सकती हैं. इस अद्वितीय प्रतिभा की वजह से ही उन्हें 2024 में'महाराष्ट्र रत्न'पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. महालक्ष्मी को इस बात पर गर्व है कि समर्था धारावी से हैं, जो भारत की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी बस्ती है. वह धारावी के बहुत से सफल युवाओं में सबसे कम आयु की हैं.

अध्यापिका मां की होनहार बेटी

आइए जानते हैं कि समर्था की मां महालक्ष्मी को उसकी इन विशेष योग्यताओं के बारे में पता कैसे चला.

इस सवाल पर वो कहती हैं, ''मैं एक अध्यापक हूं. मैं धारावी और माहिम के कोचिंग क्लास में पढ़ाती हूं. समर्था जब केवल तीन महीने की थी, तभी से मैं उसे अपने साथ इन कोचिंग क्लास में ले जा रही हूं. मैं केवल इतना चाहती थी कि वो मेरे साथ रहे. मेरी मंशा यह कतई नहीं थी कि वह उन चीजों को सीखें जो मैं अपने छात्रों का पढ़ा रही थी.लेकिन वह बहुत जिज्ञासु थी!''

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समर्था जब केवल सात महीने की थी तो वह ए फॉर ऐपल,बी फॉर बॉल...से लेकर जेड तक बोल लेती थी. उसे कई जानवरों के नाम भी पता थे और वह उनकी आवाज की नकल भी कर लेती थी.

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महालक्ष्मी समर्था का उस समय से अपने कोचिंग क्लास में ले जा रही हैं, जब उसकी उम्र केवल तीन महीने ही थी.

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महालक्ष्मी ने हमें बताया," मुझे उसकी प्रतिभा नजर आ रही थी, लेकिन मुझे लगा कि मुझे यह जानने के लिए उसे और समय देना चाहिए कि वह क्या कर सकती है. लेकिन समर्था हमें हर दिन चौंका देती थी, वह जल्द ही केंद्रीय मंत्रियों और प्रमुख खिलाड़ियों तक के नाम लेने लगी."

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समर्था की प्रतिभा का टेस्ट

सामान्य ज्ञान के सवालों के जवाब देती समर्था का एक वीडियो रिकॉर्ड कर महालक्ष्मी ने हैदराबाद में अपने एक दोस्त को भेजा. उस दोस्त ने सुझाव दिया कि तुम्हें उन संगठनों से संपर्क करना चाहिए जो प्रतिभाशाली बच्चों का टेस्ट लेकर उनका मूल्यांकन करते हैं.

महालक्ष्मी याद करते हुए कहती हैं, ''समर्था का जब पहली बार ऑनलाइन टेस्ट हुआ तो वह ठीक से बैठ भी नहीं सकती थी.इसके बाद भी उसने उन सभी सवालों के जवाब दिए, जो उससे पूछ गए.''

वो कहती हैं, ''उसके बाद, बच्ची ने कोई कसर नहीं छोड़ी. प्रोफाइल ऑफ इंटरनेशनल टैलेंट एंड इंटेलेक्चुअल्स (पीआईआईआई) नाम के एक संगठन ने महालक्ष्मी से संपर्क किया. इस संगठन ने सुझाव दिया कि वह समर्था को अंतरराष्ट्रीय स्तर की मान्यता दिलवाएं. समर्था जब ​केवल सिर्फ 19 महीने की थी तो, धारावी की इस प्रतिभाशाली बच्ची ने केवल पांच मिनट में ही सामान्य ज्ञान के 54 सवालों के जवाब दे दिए थे!'

धारावी का टैग

महालक्ष्मी को परेशानी यह है कि वह यह नहीं समझ पाती हैं कि धारावी का टैग समर्था के लिए नुकसानदेह क्यों होना चाहिए.

वो कहती हैं, ''मैं जानती हूं कि मेरा बच्ची बहुत प्रतिभाशाली है. किसी भी दूसरी मां की तरह मैं भी अपनी बच्ची को सबसे अच्छे स्कूल में भेजना चाहती हूं.लेकिन दुख की बात यह है कि शायद मुझे उसे बीएमसी के किसी स्कूल में ही भेजना होगा. क्योंकि वह धारावी में रहती है और कोई भी बढ़िया स्कूल अपने यहां इस इलाके के बच्चे को नहीं रखना चाहता है. यहां तक कि स्कूल की बसें भी हमारे इलाके में नहीं आती हैं.''

धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के सीईओ एसवीआर श्रीनिवास का कहना है कि इस परियोजना में सबको घर मिलेगा.

महालक्ष्मी का मानना है कि सीखने की असामान्य क्षमता रखने वाले समर्था जैसे बच्चे के लिए आर्थिक मदद होनी चाहिए. एक अभिभावक के तौर पर उनकी कमाई इतनी नहीं है कि वे मुंबई के बड़े निजी स्कूलों की ऊंची फीस का भुगतान कर सकें.

वो कहती हैं, ''जो बच्चे आधे से भी कम होशियार होते हैं, वे सबसे अच्छे स्कूलों में जाते हैं क्योंकि उनके माता-पिता के पास अच्छा बैंक बैलेंस होता है, लेकिन मेरा बहुत होशियार बच्चा इसलिए परेशान होता है क्योंकि मेरा बैंक स्टेटमेंट अच्छा नहीं दिखता है. बच्चे की प्रतिभा मायने रखती है न कि माता-पिता के पैसे या वे रहते कहां हैं.''

क्या चाहती है एक मां

महालक्ष्मी चाहती हैं कि समर्था, यहां तक ​​कि उनके कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले बच्चे भी अपने जीवन में अपने माता-पिता से ज्यादा हासिल करें. अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कठिन संघर्ष करने के बाद भी महालक्ष्मी कहती हैं कि वह कई गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती हैं. लेकिन उनका मानना ​​है कि इस तरह के सहयोग को संस्थागत बनाकर लागू किया जाना चाहिए.

वो कहती हैं, ''मैं कुछ छात्रों को मुफ्त में पढ़ाती हूं, क्योंकि मैं समाज में कुछ बदलाव लाना चाहती हूं, जहां शिक्षा सिर्फ अमीरों के लिए न हो. अगर गरीबों को शिक्षित किया जाएगा तो वे भी बेहतर जीवन जी पाएंगे. शिक्षा को एक व्यवसाय की तरह नहीं देखा जा सकता.''

झुग्गी-झोपड़ी से जुड़े कलंक और संसाधनों की कमी के बीच फंसे बहुत से बच्चों को हम गुणवत्ता वाली शिक्षा से वंचित कर रहे हैं. महालक्ष्मी को उम्मीद है कि झुग्गी-झोपड़ियों के पुनर्विकास से समस्या के कम से कम एक हिस्से का समाधान हो जाएगा. वो कहती हैं,''मुझे उम्मीद है कि पुनर्विकास के बाद लोग धारावी और धारावी के लोगों को अलग नजरिए से देखेंगे. मुझे उम्मीद है कि उसके बाद स्कूल हमारे बच्चों को अलग नजरिए से देखेंगे और हमारे बच्चों के लिए एडमिशन मिलना आसान हो जाएगा.''

समर्था एक बहुत ही चुलबुली बच्ची है. वह अपनी प्रतिभा से अनजान है, उसकी मां एक भावुक आदर्शवादी हैं. वो कहती हैं, ''मैं नहीं चाहती हूं कि समर्था सिर्फ एक और डॉक्टर या इंजीनियर बन जाए. मैं चाहती हूं कि वह समाज की मदद करे, लोगों के दिमाग को बदले कि हम अपनी जाति,वर्ग या धर्म से नहीं, बल्कि अपने विचारों से परिभाषित होते हैं.''

शहरी गरीबों में साक्षरता

साक्षरता का पता लगाने वाले अधिकांश अध्ययन शहरी और ग्रामीण भारत में व्यापक तुलना करते हैं. इसमें इस बात की अनदेखी कर दी जाती है कि भारत के शहरी गरीबों में साक्षरता काफी कम है. इनमें से अधिकांश शहर की झुग्गियों में रहते हैं. इसका कारण स्पष्ट हैं, स्कूलों तक पहुंच की कमी, यहां तक कि सरकारी स्कूलों तक भी. इसके अलावा बच्चों को स्कूल भेजने के लिए भी संसाधनों की कमी है. कुछ ऐसे ही विचार महालक्ष्मी के भी हैं.

मुंबई की धारावी को भारत की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी बस्ती माना जाता है.

अगर इसमें लिंग का भी फैक्टर जोड़ दिया जाए तो कोई भी व्यक्ति एक मां की अपनी प्रतिभाशाली बेटी के भविष्य के लिए आशंकाओं को बड़ी आसानी से समझ सकता है, केवल इसलिए कि वह एक शहरी भारतीय झुग्गी में पली-बढ़ी एक छोटी बच्ची है.

समर्था की कहानी भारत की शहरी झुग्गियों की तत्कालिक जरूरत के बारे में बताती है. मुंबई की करीब आधी आबादी झुग्गियों में रहती है. ये झुग्गियां शहर के आवासीय क्षेत्र का बमुश्किल आठ फीसदी हिस्सा ही घेरती है. यहां उचित स्वास्थ्य, स्वच्छता और शिक्षा के बुनियादी ढांचे तक पहुंच बहुत कम है. अनौपचारिक रूप से कहें तो वे दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह रहते हैं.

झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की जरूरत

अगर हम भारत की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए केवल दिखावटी बातें नहीं करना चाहते हैं तो झुग्गी-झोपड़ियों के पुनर्विकास को अर्बन प्लानिंग पर भारत के दृष्टिकोण का एक बड़ा हिस्सा होना चाहिए. इसके बाद ही हम समर्था और उसकी मां महालक्ष्मी जैसे लोगों का समर्थान कर सकते हैं, जो अपनी बेटी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बेहतर जीवन का मौका उपलब्ध कराने के लिए बाधाओं से लड़ रही है,जिसकी वह हकदार भी है.

अंत में महालक्ष्मी कहती हैं, " मेरी समर्था जैसी किसी बच्ची को पाकर कोई भी स्कूल खुद को भाग्यशाली मानेगा. लेकिन उसे और उसके जैसे अन्य बच्चों को केवल पते की वजह से अवसर नहीं खोना चाहिए. मेरा मानना ​​है कि मेरी बेटी जादू है और भगवान बहुत दयालु हैं, इसलिए वह जो भी करेगी, उसमें वह जरूर चमकेगी!"

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