ताउम्र हिंदी प्रेमी रहे मुलायम, अब सपा को क्यों पसंद आ रही अंग्रेजी, समझिए

समाजवादी पार्टी के मुखपत्र 'समाजवादी बुलेटिन' में अब तक हिंदी में ही लेख देखने को मिलते रहे हैं. लेकिन पहली बार पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का अंग्रेजी में एक लेख छपा है.

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आखिर, समाजवादी पार्टी को क्‍यों पड़ी अंग्रेजी की जरूरत?
नई दिल्‍ली:

समाजवादी पार्टी भी अब बदल रही है. बदलते समाज और संस्‍कृति को देखते हुए सपा मुखिया अखिलेश यादव भी बदलने को मजबूर होते नजर आ रहे हैं. अब तक समाजवादी पार्टी के नेता हिंदी को प्राथमिकता देते आए हैं, मुलायम सिंह यादव ताउम्र हिंदी प्रेमी रहे. लेकिन अब समाजवादियों की 'भाषा' बदल रही है. युवाओं को पार्टी के करीब लाने के लिए समाजवादी पार्टी ने अब अंग्रेजी से भी नाता जोड़ लिया है. पहली बार समाजवादी पार्टी के आधिकारिक मुखपत्र 'समाजवादी बुलेटिन' में पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अखिलेश यादव का अंग्रेजी में एक संदेश आया है.   

अंग्रेजी में अखिलेश यादव का मैसेज

अखिलेश यादव ने 'समाजवादी बुलेटिन' में छपे अंग्रेजी के संदेश में पार्टी के युवाओं नेताओं को संबोधित किया है, जिनमें इकरा हसन, प्रिया सरोज और पुष्पेंद्र सरोज जैसे युवा नेता शामिल हैं. इन्‍हें समाजवादी पार्टी ने पहली बार चुनाव मैदान में उतारा और जनता ने उन्‍हें स्‍वीकार भी किया है. अखिलेश का संदेश इस विश्वास का समर्थन करता है कि जिन लोगों का वह प्रतिनिधित्व करता है उनकी चिंताओं को उठाने की उम्मीदवारों की अपनी क्षमताएं किसी भी अन्य चीज़ से अधिक मायने रखती हैं.   

क्‍या अब सपा में बढ़ेगी अंग्रेजी...?  

इकरा, प्रिया और पुष्पेंद्र ने क्रमशः कैराना, मछलीशहर और कौशांबी लोकसभा सीट से जीत हासिल की है. इन तीनों ने विदेशों की टॉप यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है, इसलिए ये सभी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं. अखिलेश यादव के संदेश के अलावा, पार्टी के मासिक मुखपत्र में तीन नवनिर्वाचित युवा सांसदों पर अंग्रेजी में एक-एक अध्याय है. टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि हिंदी पार्टी और उसके कैडर के भीतर संचार की मुख्य और एकमात्र भाषा बनी रहेगी और अंग्रेजी का उपयोग उस पीढ़ी को संबोधित करने तक ही सीमित रहेगा, जो अंग्रेजी में बातचीत करने में अधिक सहज हैं. पार्टी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार ने बताया कि यह केवल उन लोगों तक पहुंचने का एक साधन है, जो अंग्रेजी में सोचते हैं.

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आखिर, क्‍यों पड़ी अंग्रेजी की जरूरत?

दिलचस्प बात यह है कि जब से सिडनी विश्वविद्यालय से पर्यावरण इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल करने वाले अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की कमान संभाली है, तब से उन्होंने हिंदी में ही अपने विचार पार्टी नेताओं और जनता के सामने रखे हैं. शायद ही कोई मीडिया इंटरव्‍यू होगा, जहां उन्हें मीडिया के सवालों का जवाब अंग्रेजी में देते हुए देखा और सुना जा सकता है. भले ही सवाल अंग्रेजी में पूछा गया हो या विदेश से आए किसी पत्रकार ने ही क्‍यों न पूछा हो. अखिलेश उसका जवाब हिंदी में ही देते दिखे. पार्टी के वरिष्ठ रणनीतिकारों का कहना है कि फिलहाल अंग्रेजी का इस्तेमाल पार्टी की विज्ञप्तियों के एक हिस्से तक ही सीमित रहेगा. ये उनके लिए है जो किसी भी कारण से अंग्रेजी पढ़ना, बोलना और लिखना पसंद करते हैं. उदाहरण के लिए, केरल और कर्नाटक के लोग हिंदी पट्टी की तुलना में अंग्रेजी में हमारे लेखन को पढ़ने के लिए अधिक इच्छुक होंगे.

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कारण चाहे कोई भी हो, लेकिन यह समय की मांग है. आज का युवा अंग्रेजी भाषा में ज्‍यादा सहज महसूस करता है. ऐसे में लगभग सभी पार्टियां हिंदी के साथ अंग्रेजी में भी अपना प्रचार करती हैं. समाजवादी पार्टी भी अब इसी लाइन पर चल रही है. ऐसे में अगर कहें कि समाजवादियों की 'भाषा' बदल रही है, तो गलत नहीं होगा. 

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