कोरोना की दूसरी लहर में रेलवे के 2300 से ज्यादा कर्मचारियों की मौत, परिजनों की मुआवजे की मांग

कोरोना महामारी ने लखनऊ के इमलिया गांव के रहने वाले रेलवे कर्मचारी विनोद कुमार यादव और सत्य प्रकाश का घर पूरी तरह से तबाह कर दिया है. इनके घर में आठ लोगों की मौत हो चुकी है.

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नई दिल्ली:

कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर में, यानी 60 दिन में रेलवे के 2300 से ज्यादा कर्मचारियों की मौत हो चुकी है. मौत का आंकड़ा इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि दूसरी लहर में रेलवे की तरफ से ऑक्सीजन ट्रेन समेत तमाम सवारी ट्रेनें चलती रही. अब एआईआरएफ ने भारत सरकार से रेलवे कर्मचारियों को फ्रंट लाइन वर्कर का दर्जा देने की मांग की है. कोरोना की दूसरी लहर में दिल्ली रेल मंडल के कर्मचारी ताराचंद, सी राना, अजय मलिक, बालकृष्ण, दानवीर सिंह, एसके सिंह जैसे देशभर में 2300 से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमण से मारे गए, जबकि कोरोना की पहली लहर में महज 400 रेलवे कर्मचारियों की जान गई थी.

कोरोना महामारी ने लखनऊ के इमलिया गांव के रहने वाले रेलवे कर्मचारी विनोद कुमार यादव और सत्य प्रकाश का घर पूरी तरह से तबाह कर दिया है. इनके घर में आठ लोगों की मौत हो चुकी है. अब छह भाईयों में से केवल दो जिंदा बचे हैं. मृतक विनोद के भाई ओंकर सिंह यादव ने सरकार से मदद मांगते हुए कहा है कि, “मैं सरकार से गुहार लगाता हूं कि मेरी बड़ी भाभी और छोटी बहू जो गरीबी रेखा से नीचे है, उनको आर्थिक मदद और नौकरी दी जाए.”

रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर में रेलवे ने करीब 13 हजार से ज्यादा मालगाड़ी चलाई और ट्रेन के जरिए 32 हजार मिट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई करके वाहवाही बटोरी लेकिन आल इंडिया रेलवे मेंन्स फेडरेशन का कहना है कि रेलवे कर्मचारियों की वैक्सीनेशन से लेकर मारे गए कर्मचारियों की आर्थिक मदद देने में सरकार अब आनाकानी कर रही है. एआईआरएफ के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा का कहना है कि रेलवे कर्मचारियों को फ्रंट लाइन मानकर 50 लाख रुपए की आर्थिक मदद देनी चाहिए. हमने मंत्री से भी बात की, लेकिन उनका कहना है कि सब केंद्र सरकार के कर्मचारी ये मांग करने लगेंगे. लेकिन जो घर में बैठकर काम कर रहे थे उनकी तुलना रेलवे कर्मचारियों से नहीं हो सकती है.

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कोरोना संक्रमण के चलते कई हंसते खेलते परिवार तबाह हो चुके हैं. रेलवे मंत्रालय को भी कोरोना में पचास हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान झेलना पड़ा है. लेकिन रेलवे को अपनी पूरी जीवन देने वाले कई ऐसे कर्मचारियों के परिवार अब मदद के लिए सरकार की ओर देख रहे हैं.

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