- मोहन भागवत ने कहा कि भारत हमेशा शांति चाहता है लेकिन पाकिस्तान नुकसान पहुंचाने में ही संतुष्ट रहता है
- 1971 के भारत-पाक युद्ध का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि पाकिस्तान ने उस युद्ध में भारी सैनिक क्षति उठाई थी
- उन्होंने बांग्लादेश से हो रही अवैध घुसपैठ और भारत की सीमाओं की सुरक्षा पर विशेष चिंता जताई
RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बेंगलुरु में एक कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तान, आर्थिक असमानता, सीमा सुरक्षा और सामाजिक मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखी. पाकिस्तान के साथ संबंधों पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि भारत हमेशा शांति चाहता है, लेकिन पाकिस्तान को भारत को नुकसान पहुंचाने में ही सुकून मिलता है, इसलिए वह शांति नहीं चाहता. भागवत ने कहा, "हमने हमेशा पाकिस्तान के साथ शांति बनाए रखी है. लेकिन पाकिस्तान ने कभी हमारे साथ शांति नहीं रखी. जब तक पाकिस्तान को भारत को नुकसान पहुंचाने में संतोष मिलता रहेगा, वह ऐसा करता रहेगा." उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान के साथ शांति का रास्ता सीधा है, हम अपनी ओर से शांति भंग नहीं करेंगे. लेकिन अगर पाकिस्तान ने शांति भंग करने की कोशिश की, तो वह कभी सफल नहीं होगा. जितना वह कोशिश करेगा, उतना ही उसे नुकसान उठाना पड़ेगा.
1971 युद्ध का हवाला, घुसपैठ पर चिंता
इस दौरान मोहन भागवत ने 1971 के भारत-पाक युद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने उस समय भारत पर हमला किया था और 90,000 सैनिकों की सेना गंवा दी थी. अगर ऐसी घटनाएं बार-बार होंगी, तो पाकिस्तान को समझ में आ जाएगा कि लड़ाई या प्रतिस्पर्धा से बेहतर सहयोग करना है. उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान को ताकत की भाषा ही समझ में आती है. जब पाकिस्तान को यह समझ आ जाएगा कि वह भारत को नुकसान नहीं पहुंचा सकता, तभी वह सच्चा मित्र बनने और सहयोग करने की दिशा में सोचेगा. भागवत ने बांग्लादेश से हो रही अवैध घुसपैठ और भारत की खुली सीमाओं पर खासतौर पर अपनी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा, "हमें अपनी सीमाओं को सुरक्षित बनाना होगा. मणिपुर जैसे इलाकों में कुछ लोग सीमाएं बंद नहीं करना चाहते क्योंकि वे इन्हें 'प्राकृतिक सीमाएं' नहीं मानते. लेकिन यह कोई बहाना नहीं हो सकता, सीमाएं मजबूत और सुरक्षित होनी चाहिए."
आर्थिक असमानता और आरक्षण पर कही ये बात
देश में बढ़ती आर्थिक असमानता पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि यह समस्या केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया भर में है. उन्होंने कहा कि हमें दुनिया को एक नया रास्ता दिखाना होगा. हमारा मॉडल 'मास प्रोडक्शन' नहीं, बल्कि 'प्रोडक्शन बाय द मासेस' होना चाहिए. भागवत ने सामाजिक समरसता पर बल देते हुए कहा कि नेताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग एक ही मंदिर, एक ही जल स्रोत और एक ही श्मशान का उपयोग करें. साथ ही उन्होंने कहा कि समाज के वंचित वर्गों को सदियों से प्रेम और सम्मान की भूख रही है. अगर उन्हें यह मिले, तो वे खुद को ऊपर उठा सकते हैं. हमें धैर्य रखना चाहिए और आरक्षण को जारी रखना चाहिए.
भारत की सांस्कृतिक शक्ति पर जोर
भागवत ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है. उन्होंने कहा कि जहां दुनिया के तीन महाद्वीप एक सदी में बदल गए, वहीं भारत में तीन सदियों के बाद भी धर्मांतरण के बावजूद हिंदुस्तान बना रहा. उन्होंने यह भी कहा कि यहां पर भ्रष्टाचार और संगठित अपराध तभी पनपते हैं जब समाज के भीतर के लोग उसमें शामिल होते हैं. इसलिए इनके खात्मे के लिए समाज की एकता और नैतिकता को मजबूत करना जरूरी है.














