- RSS ने स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने पर तीन दिवसीय कार्यक्रम में हिंदुत्व की समावेशिता पर जोर दिया
- मोहन भागवत ने हिंदू समाज को एक संप्रदाय नहीं बल्कि समस्त धर्मों का सम्मान करने वाली संस्कृति बताया
- भागवत ने हिंदू शब्द का अर्थ विविधता में एकता स्वीकारने वाला समावेशी भाव बताया और मातृभूमि के प्रति भक्ति जताई
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है. तीन दिवसीय कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने संगठन के उद्देश्य और हिंदुत्व की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि जो सब धर्मों का सम्मान करे, वही हिंदू है. उन्होंने हिंदुत्व को समावेशिता का प्रतीक बताते हुए इसे भारतीय संस्कृति और परंपरा का आधार बताया.
हिंदू समाज का मतलब केवल एक संप्रदाय नहीं: भागवत
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के योगदान को याद किया. उन्होंने बताया कि 1925 की विजयादशमी को हेडगेवार ने कई प्रयोगों और युवाओं से चर्चा के बाद संघ की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन करना था. भागवत ने कहा, "हिंदू समाज का मतलब केवल एक संप्रदाय नहीं, बल्कि वह संस्कृति और परंपरा है जो सभी धर्मों का सम्मान करती है.
हिंदू शब्द का अर्थ समावेशी है: मोहन भागवत
यह भारतवर्ष की मातृभूमि के प्रति भक्ति और समर्पण का भाव है. "उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदू शब्द का अर्थ समावेशी है, जो विभिन्नता में एकता को स्वीकार करता है."40 हजार वर्षों से भारत के लोगों का डीएनए एक ही है. हमारी संस्कृति मिलजुलकर रहने की है.
हम यह नहीं मानते कि एक होने के लिए एकसमान होना जरूरी है. विविधता में भी एकता है,"भागवत ने कहा. उन्होंने जोर दिया कि जो लोग अपने को हिंदू नहीं कहते, उन्हें भी 'हिंदवी' या 'भारतीय' कहने में आपत्ति नहीं होती. सनातन परंपरा को स्वीकार करने वाले भी इसी विचारधारा का हिस्सा हैं. भागवत ने कहा कि संघ का लक्ष्य संपूर्ण समाज को संगठित करना है, न कि हिंदू बनाम अन्य की भावना पैदा करना."हिंदुत्व का मतलब ही समावेशिता है. संघ की कार्यप्रणाली मनुष्यों को जोड़ने और उनके जीवन को बेहतर बनाने की है."
देश का जिम्मा हम सभी का मिलकर है: आरएसएस प्रमुख
उन्होंने स्वयंसेवकों के अटूट समर्पण की सराहना करते हुए कहा कि उनका संबंध संघ से "जन्म-जन्मांतर" का है. उन्होंने समाज में विभिन्न विचारों के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, "अलग-अलग विचारों को सुनने के बाद सहमति बनती है, और उससे प्रगति निकलती है." भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य यह नहीं है कि देश का श्रेय केवल संघ को मिले."
देश का जिम्मा हम सभी का मिलकर है. हम जैसे होंगे, वैसे हमारे नेता और प्रतिनिधि होंगे. हमें स्वयं को बेहतर बनाना है."हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर उठने वाले सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्र का अर्थ केवल 'नेशन' नहीं, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और समावेशी विचार है. यह समारोह संघ के शताब्दी वर्ष के उत्सव का हिस्सा था, जिसमें स्वयंसेवकों और समर्थकों ने देशभर से हिस्सा लिया.
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