आखिरकार सेना ने 132 साल पुराने मिलिट्री फार्म्स बंद किए

बंद करने के पीछे तर्क दिया गया कि सेना को अब छोटा करना है. सेना का यह भी मानना है कि हर साल इन मिलिट्री फार्म्स को चलाने में 300 करोड़ का खर्च आता था लेकिन फार्म्स से उतने फायदे नहीं होते थे.

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एक फरवरी 1889 में इलाहाबाद से ब्रिट्रिश काल में पहली मिलि‍ट्री फार्म्स बनी थी
नई दिल्ली:

सैनिकों को ताजे दूध की आपूर्ति के लिए देश भर में स्थापित 130 मिलिट्री फार्म्स को सेना ने बंद कर दिया है. दिल्ली कैंट में हुए एक विशेष समारोह (फ्लैग-सेरेमनी) के दौरान मिलिट्री फार्म्स को बंद करने (डिसबैंड) का कार्यक्रम हुआ. बंद करने के पीछे तर्क दिया गया कि सेना को अब छोटा करना है. सेना का यह भी मानना है कि हर साल इन मिलिट्री फार्म्स को चलाने में 300 करोड़ का खर्च आता था लेकिन फार्म्स से उतने फायदे नहीं होते थे. सेना अब अपना ध्यान युद्धक की भूमिका में केंद्रित करना चाहती है. उसे लगता है अब इसकी जरुरत नहीं है. इसकी जगह अब डिब्बाबंद दूध से काम चल जाएगा. फार्म्स को बंद कर इनमें तैनात सैन्य अधिकारी और कर्मचारियों को सेना के दूसरे रेजिमेंट में तैनाती कर दी गई है.

एक फरवरी 1889 में इलाहाबाद से ब्रिट्रिश काल में पहली मिलि‍ट्री फार्म्स बनी. आजादी बाद मिलि‍ट्री फार्म्स की तादाद 130 तक पहुंच गई. इन फार्म्स में करीब 30 हजार गायें और दूसरे मवेशी थे. एक अनुमान के मुताबिक हर साल इन मिलिट्री फार्म्स से करीब 3.5 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता था. केवल दूध ही नहीं हर साल ये मिलिट्री फार्म्स करीब 25 हजार मि‍ट्रिक टन चारे का उत्पादन  करते थे. करगिल और लेह में भी सैनिकों को ताजा और स्वास्थ्यकर दूध आपूर्ति करने के लिए 1990 में मिलि‍ट्री फार्म्स बनाई गई ताकि जवानों को रोजाना बेहतर दूध मिले. बात 1971 की जंग की हो या फिर करगिल में लड़ाई के दौरान भी सैनिकों को दूध की आपूर्ति इन्हीं मिलिट्री फार्म्स से ही की गई थी.

अब सवाल यह उठता है कि क्या इन मिलिट्री फार्म्स को बंद कर देने से सैनिकों को ताजा और पोषणयुक्त दूध मिल पाएगा. यह तो समय बता पाएगा. लेकिन सेना में संख्या बल को कम करने के लिए सरकार का यह कदम सही प्रतीत नहीं होता है.

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