परिवार को किनारे कर बसपा को मजबूत करने में जुटी मायावती, पकड़ी 'गुरु' कांशीराम की राह

मायावती अब बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के फार्मूले पर लौट आई हैं. सालों बाद आज उन्होंने पार्टी के ओबीसी नेताओं की बैठक बुलाई. साथ ही पार्टी के अंदर भाईचारा कमेटी बनाने में जुटी हैं.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
मायावती ने ओबीसी नेताओं से घर घर जाकर लोगों को पार्टी से जोड़ने की अपील की.
लखनऊ:

मायावती (Mayawati) एक बार फिर से अपने गुरु की शरण में हैं, जिन्होंने उन्हें अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी बनाया और बीएसपी की कमान मायावती को सौंप दी. उसके बाद मायावती ने कई तरह के प्रयोग पार्टी में किए. कई बार सफल भी रहीं, लेकिन पिछले कई चुनावों में उन्हें बस नाकामयाबी ही मिल रही है. बीजेपी और कांग्रेस के बाद एक जमाने में बीएसपी ही देश की तीसरी सबसे बड़ी राजनैतिक ताकत थी. हालांकि अब वही पार्टी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है. बीएसपी अपने गढ़ यूपी में भी हाशिए पर आ गई है. 

मायावती की पार्टी बीएसपी ही नहीं उनका अपना परिवार भी भंवर में फंसा है. भतीजे आकाश आनंद को वे अपना उत्तराधिकारी बना कर राजनीति में लाई थीं. अब वही आकाश बीएसपी से बाहर हैं. मायावती को अब भतीजे आकाश के चेहरे से भी चिढ़ है. उनके छोटे भाई आनंद कुमार हर सुख दुख में मायावती के साथ रहे, लेकिन अब वही आनंद कुमार मायावती की नजरों में नाकाबिल हो गए हैं. एक तरह से मायावती ने अपने परिवार को पार्टी से अलग कर दिया है. परिवार से परेशान मायावती ने एलान कर दिया है कि उनके लिए पार्टी ही मिशन है. 

कांशीराम के फार्मूले पर लौट रही बसपा

ऐसे हालात में मायावती अब बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के फार्मूले पर लौट आई हैं. सालों बाद आज उन्होंने पार्टी के ओबीसी नेताओं की बैठक बुलाई है. पार्टी के अंदर भाईचारा कमेटी बनाने में जुटी हैं. भाईचारे का मतलब है कि बीएसपी से दूसरी जातियों को जोड़ने की रणनीति. शुरुआत ओबीसी समाज से हैं. कांशीराम ने हमेशा गैर यादव पिछड़ों को अपने साथ रखा. इसे वे स्टेपनी वोट बैंक मानते थे. दलित समाज को बीएसपी का बेस वोटर माना जाता है. मायावती फिर से कांशीराम की राह पर हैं. इसी फार्मूले से वे बीएसपी का सामाजिक समीकरण मजबूत करने की कोशिश में हैं. 

Advertisement

बीएसपी से अलग हो गए कई बड़े नेता

एक दौर में यूपी के कई बड़े ओबीसी नेता बीएसपी में थे. कांशीराम ने इन्हें राजनैतिक ट्रेनिंग दी. इसके बाद कोई कुर्मी समाज का नेता बना तो कोई राजभर बिरादरी का तो कुछ निषाद समाज के. इनकी ताकत से बीएसपी ताकतवर बनी. मायावती चार बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं. सोनेलाल पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचल राजभर, बाबू सिंह कुशवाहा, दारा सिंह चौहान से लेकर संजय निषाद तक सब बीएसपी में रहे, लेकिन मायावती के काम करने के स्टाइल से नाराज होकर बीएसपी से निकले या फिर निकाल दिए गए. 

Advertisement

PDA को बताया परिवार डेवलपमेंट अथॉरिटी

बदलते राजनैतिक हालात में गैर यादव पिछड़े वोटरों का एक बड़ा तबका बीजेपी के साथ हैं. यूपी में बीजेपी ने ओबीसी वोटरों के समर्थन के लिए उन्हें एनडीए में शामिल कर लिया है. कुर्मी वोटरों के लिए अपना दल, निषाद वोट के लिए निषाद पार्टी, जाट वोटरों के लिए आरएलडी और राजभर समाज के लिए सुहेल देव समाज पार्टी. अखिलेश यादव भी पीडीए के फार्मूले से इसी समाज के वोटरों को साथ लाने में जुटे हैं. लोकसभा चुनाव में उन्हें इसका बंपर फायदा हुआ. अब मायावती भी उसी राह पर हैं. आज लखनऊ में हुई बैठक में उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर और कांशीराम के नाम का बार बार ज़िक्र किया. बीजेपी और कांग्रेस को सामंती सोच का बताया. समाजवादी पार्टी के पीडीए को परिवार डेवलपमेंट अथॉरिटी बताया. 

Advertisement

इस तरह से समीकरण बिठाने में जुटी हैं मायावती 

मायावती ने लखनऊ में बीएसपी के ओबीसी नेताओं से घर घर जाकर लोगों को पार्टी से जोड़ने की अपील की. एक बार फिर से वे हर जिले में भाईचारा कमेटी बनाने लगी है. जिस इलाके में लोधी वोटरों का दबदबा है, वहां की कमेटी में दलित और लोधी का समीकरण बनाया गया है. कुर्मी बाहुल्य जिलों में दलितों के साथ कुर्मी बिरादरी के नेताओं को जिम्‍मेदारी दी गई है. निषाद, राजभर, सैनी, शाक्य, मौर्य, कुशवाहा, प्रजापति जैसी पिछड़ी जातियों पर उनका फोकस है. मायावती की रणनीति ये है कि दलित वोटरों के छिटकने का नुकसान वे अब ओबीसी वोटरों से करना चाहती हैं. वक्‍त के साथ राजनीति के तौर तरीके बदले हैं. साथ ही ओबीसी वोटरों का मन भी. तो ऐसे में मायावती का पुराना वाला फार्मूला चल पाएगा? जवाब कम, सवाल अधिक हैं.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Sambhal News | Delhi Namaz Controversy: सड़क पर 'अलविदा' की नमाज को अलविदा! | Metro Nation @10
Topics mentioned in this article