तिहाड़ से बाहर आए मनीष सिसोदिया के सामने क्या हैं 5 बड़े चैलेंज?

Manish Sisodia 5 big challenges : आम आदमी पार्टी के लिए यह संकट काल है. मनीष सिसोदिया को जमानत मिलने के बाद भी पार्टी के लिए राह आसान नहीं है...जानिए, मनीष सिसोदिया की चुनौतियां...

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Manish Sisodia 5 big challenges : 17 महीने तक तिहाड़ जेल में रहने के बाद मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) को जमानत मिल चुकी है. जेल से बाहर आते ही कार्यकर्ताओं को देख कहा, ‘‘केवल मैं ही नहीं, बल्कि दिल्ली का हर व्यक्ति और देश का हर बच्चा भावनात्मक रूप से जेल में मेरे साथ था. देश में तानाशाही को करारा तमाचा मारने के लिए संविधान की शक्ति का उपयोग करने के वास्ते मैं उच्चतम न्यायालय को तहे दिल से धन्यवाद देता हूं.''सिसोदिया ने कहा कि यह सभी के लिए एक भावनात्मक क्षण है और उम्मीद है कि संविधान तथा लोकतंत्र की ताकत केजरीवाल की रिहाई का मार्ग प्रशस्त करेगी. उन्होंने नारा लगाया, ‘‘भ्रष्टाचार का एक ही काल, केजरीवाल, केजरीवाल.'' जेल से बाहर निकलने के बाद उन्होंने अरविंद केजरीवाल के परिवार से भी मुलाकात की. इस दौरान अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनिता केजरीवाल, उनके बच्चे और माता-पिता काफी खुश नजर आए. जाहिर है आम आदमी पार्टी (AAP) और मनीष सिसोदिया ने यह दिखाने की हर मुमकिन कोशिश की है कि इन 17 महीनों में कुछ नहीं बदला. मगर क्या सच में कुछ नहीं बदला?

निराश कार्यकर्ता

लोकसभा चुनावों में हार के बाद आप का कैडर निराश है. कांग्रेस के साथ गठबंधन और अरविंद केजरीवाल के जमानत पर आकर धुआंधार प्रचार के बाद भी दिल्ली की सभी सीटों पर इंडिया गठबंधन हार गई. वहीं देश में इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन पिछले दो लोकसभा चुनावों की अपेक्षा बेहतर रहा. आम आदमी पार्टी को पंजाब में भी झटका लगा. कांग्रेस को पंजाब में हारा हुआ मानकर सभी सीटों पर जीत का ख्वाब देखने वाली आम आदमी पार्टी को 13 में से महज 3 सीटें मिलीं. वहीं कांग्रेस 7 सीटें जीत गई. मतलब पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की जमीन खिसक चुकी है. अब जेल में रहकर आने वाले मनीष सिसोदिया जेल में बंद अपने नेता अरविंद केजरीवाल की गैर मौजूदगी में कैसे कार्यकर्ताओं को साधेंगे, ये देखने वाली बात होगी. 

दिल्ली की खुल चुकी है पोल

यूं तो बारिश हर बार अरविंद केजरीवाल सरकार की पोल खोलती रही है. मगर इस बार चार छात्रों की मौत ने उसे इंडिया गठबंधन में भी अलग-थलग कर दिया. लालू यादव की पार्टी राजद ने भी दिल्ली मॉडल पर सवाल खड़े किए. राजद नेता मनोज झा ने इस मुद्दे पर जमकर राज्यसभा में आम आदमी पार्टी को बगैर सीधे जिम्मेवार ठहराए सुनाया था. वहीं कांग्रेस से लेकर अन्य दलों ने भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी थी. जलभराव मुद्दे को लेकर बीजेपी-कांग्रेस के निशाने पर आम आदमी पार्टी अब भी है. एमसीडी में भी आम आदमी पार्टी ही सत्ता पर है. ऐसे में उसके पास अब आरोप लगाने के मौके कम हैं. 

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स्कूलों से फिर दिल जीतेंगे?

मनीष सिसोदिया को दिल्ली के स्कूलों को सुधारने का श्रेय आम आदमी पार्टी देती रही है. ऐसे में क्या स्कूलों के जरिए मनीष सिसोदिया दिल्ली के लोगों के दिल में फिर अपनी जगह बनाएंगे? मगर सवाल है कैसे? मनीष सिसोदिया के नहीं रहने पर दिल्ली के स्कूल वैसे ही चल रहे थे, जैसे पहले. हां, यह जरूर है कि स्कूलों की बात और उसे लेकर दावों में कमी आ गई थी. अब क्या मनीष सिसोदिया स्कूलों को लेकर कुछ बड़ी घोषणाएं करेंगे, जिनसे एक बार फिर वह सुर्खियों में आएं.

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दिल्ली सरकार का बनेंगे चेहरा?

अरविंद केजरीवाल फिलहाल जेल में हैं. उनके रहते मनीष सिसोदिया नंबर टू हुआ करते थे. उनके जेल जाने के बाद नंबर टू कोई नहीं रह गया है. आतिशी को जरूर मनीष सिसोदिया के मंत्रालय दिए गए थे लेकिन उनका रूतबा मनीष सिसोदिया सा पार्टी में नहीं था. सौरभ भारद्वाज भी पार्टी का चेहरा नहीं बन पाए थे. ऐसे में क्या केजरीवाल अपनी गैर-मौजूदगी में मनीष सिसोदिया को फिर से उतना पावरफुल बनने देना चाहेंगे. क्या पार्टी के नेता उनको आगे बढ़ने देंगे? यह भी बड़ा सवाल है.

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कट्टर ईमानदार वाली छवि का क्या?

जेल जाने से पहले तक मनीष सिसोदिया की छवि कट्टर ईमानदार की थी. अरविंद केजरीवाल के बाद सबसे ज्यादा उन्हीं को पार्टी के कार्यकर्ता योग्य मानते थे. अब 17 महीने जेल में गुजारने के बाद क्या कार्यकर्ताओं और आम लोगों के बीच मनीष सिसोदिया कट्टर ईमानदार होने का दावा उतनी ताकत से कर पाएंगे? अगर ऐसा किया तो क्या 17 महीने पहले वाला वो भरोसा जीत पाएंगे? इन पांचों सवालों के जवाब तो आगामी विधानसभा चुनाव में ही पता चल पाएगा, लेकिन ये जरूर है कि आने वाले कुछ दिनों में इसकी झलक जरूर नजर आ जाएगी.

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