मणिपुर में करीब 17 महीने पहले भड़की जातीय हिंसा के बाद राज्य में जारी संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान तलाशने के प्रयास के तहत पहली बार मेइती, कुकी और नगा समुदायों के 20 विधायकों ने यहां मंगलवार को बैठक की. सूत्रों ने यह जानकारी दी.
गृह मंत्रालय द्वारा बुलाई गई बैठक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद संबित पात्रा और नगा समुदाय के तीन विधायक भी मौजूद थे. यह बैठक दो घंटे से अधिक समय तक चली. इसे मेइती और कुकी समुदायों के बीच मतभेदों को दूर करने और संकट का सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के प्रयासों के तहत बुलाया गया था.
बैठक में गृह मंत्री अमित शाह एवं मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह शामिल नहीं हुए, लेकिन गृह मंत्रालय के वार्ताकार ए. के. मिश्रा और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इसमें शिरकत की. कांग्रेस की मणिपुर इकाई ने दिल्ली में मइती और कुकी विधायकों के बीच हुई बातचीत का स्वागत किया, लेकिन कहा कि गृह मंत्रालय की यह पहल बहुत पहले की जानी चाहिए थी.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के. मेघचंद्र ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह और केंद्रीय मंत्री अमित शाह को पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद पहली बार आयोजित बैठक में उपस्थित होना चाहिए था.
गृह मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि मणिपुर विधानसभा में कुकी-ज़ो-हमार, मेइती और नगा समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले निर्वाचित सदस्यों के एक समूह ने राज्य में वर्तमान परिदृश्य पर चर्चा करने के लिए यहां मुलाकात की. बयान में कहा गया, “बैठक में सर्वसम्मति से राज्य के सभी समुदायों के लोगों से हिंसा का रास्ता छोड़ने की अपील करने का संकल्प लिया गया, ताकि निर्दोष नागरिकों की कीमती जान न जाए.''
तीन मई 2023 के बाद यह पहली बार था जब मेइती और कुकी विधायक एक ही कमरे में थे. पिछले डेढ़ साल में 10 कुकी विधायकों में से किसी ने भी मेइती बहुल इंफाल घाटी और राज्य की राजधानी इंफाल में कदम नहीं रखा. इसके अलावा, तब से आयोजित सभी विधानसभा सत्रों से भी वे अनुपस्थित रहे हैं.
सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्षों ने दोनों समुदायों के विचारों और शिकायतों तथा लंबे समय से चल रहे उथल-पुथल के दौरान हुई उनकी पीड़ाओं को सामने रखा. उन्होंने बताया कि विधायकों ने आगे की रणनीति और आने वाले दिनों में क्या करना है, इस पर भी चर्चा की, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका.
विचार-विमर्श से जुड़े एक सूत्र ने बताया, “यह एक अच्छी शुरुआत थी. पहली बैठक में हमें किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं थी, लेकिन यह एक उपलब्धि है कि हम दोनों समुदायों के विधायकों को एक छत के नीचे ला पाए. हमें उम्मीद है कि निकट भविष्य में वे फिर मिलेंगे ताकि शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सके.”
बैठक में पात्रा की मौजूदगी के बारे में सूत्रों ने बताया कि वह पूर्वोत्तर के लिए भाजपा के समन्वयक हैं और विधायकों को राजधानी लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. सूत्रों ने बताया कि मेइती और कुकी समुदायों के नागरिक समाज समूहों की इसी तरह की बैठकों के लिए प्रयास किए जाएंगे ताकि उनके मतभेदों को दूर किया जा सके और राज्य में शांति बहाल की जा सके.
बैठक में मेइती समुदाय की ओर से विधानसभा अध्यक्ष थोकचोम सत्यब्रत सिंह और विधायक थोंगम बसंतकुमार सिंह एवं तोंगब्राम रबिन्द्रो तथा कुकी समुदाय की ओर से लेतपाओ हाओकिप और नेमचा किपगेन (दोनों राज्य मंत्री) शामिल हुए.
सूत्रों ने बताया कि नगा समुदाय का प्रतिनिधित्व विधायक राम मुइवा, अवांगबो न्यूमई और एल. दिखो ने किया. करीब एक महीने पहले शाह ने कहा था कि मणिपुर में स्थिति को सुलझाने के लिए कुकी और मेइती समुदायों के बीच बातचीत की जरूरत है और केंद्र दोनों समूहों के साथ चर्चा कर रहा है, जिसके बाद इन समूहों के नेताओं के बीच यह बैठक हुई.
गृह मंत्री ने 17 जून को मणिपुर में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा के दौरान भी ऐसा ही बयान दिया था. गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया था कि गृह मंत्री ने राज्य में जारी जातीय संघर्ष को हल करने के लिए समन्वित दृष्टिकोण के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि ‘‘गृह मंत्रालय जल्द से जल्द दोनों समूहों - मेइती और कुकी से बात करेगा ताकि जातीय विभाजन को पाटा जा सके.''
सूत्रों ने बताया कि बैठक में भाग लेने वाले सभी नगा, कुकी और मेइती विधायकों एवं मंत्रियों को गृह मंत्रालय द्वारा पत्रों तथा टेलीफोन कॉल के माध्यम से आमंत्रित किया गया था. कुकी समुदाय के लोगों की इच्छा के अनुसार, समुदाय के विधायकों ने मणिपुर में जनजातीय लोगों के लिए अलग प्रशासन या केंद्र शासित प्रदेश की मांग पर भी जोर दिया.
मणिपुर में बहुसंख्यक मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की उसकी मांग के विरोध में राज्य के पर्वतीय जिलों में जनजातीय एकता मार्च निकाले जाने के बाद पिछले साल तीन मई को जातीय हिंसा भड़क गई थी. राज्य में तब से जारी हिंसा में कुकी और मेइती समुदायों के 220 से अधिक लोग और सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं.