प्रज्ञा सिंह ठाकुर को एनआईए कोर्ट ने मालेगांव धमाका मामले में किया बरी
- मालेगांव ब्लास्ट केस में 17 साल बाद NIA की कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा और अन्य आरोपियों को बरी किया.
- साध्वी ने एक बार बताया था कि जेल में उन्हें बहुत प्रताड़ित किया गया. दिन रात पीटा जाता था.
- जेल में गर्म पानी में प्रज्ञा का हाथ डुबोया जाता था और बेल्ट से मारा जाता था. जेल में खाना भी नहीं देते थे.
मालेगांव ब्लास्ट केस में 17 साल बाद NIA की स्पेशल कोर्ट ने बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बरी कर दिया. उनके साथ लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सातों आरोपियों को बरी कर दिया गया. कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं मिले हैं. कोर्ट ने ये भी कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और अदालत सिर्फ धारणा के आधार पर दोषी नहीं ठहरा सकती. 17 साल से मालेगांव केस में फैसले का इंतजार था, इसमें 6 लोग मारे गए थे और 101 लोग घायल हुए थे. 15 साल तक ट्रायल चला, इस दौरान 4 जज बदल गए. 323 गवाहों के बयान दर्ज हुए और 40 से ज्यादा गवाह अपनी गवाही से पलटे. इस बीच 25 गवाहों की मौत भी हो गई और आज फैसले में एनआईए कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया.
फैसले के बाद प्रज्ञा सिंह के मुंह से निकले ये 5 शब्द
मालेगांव ब्लास्ट केस में फैसले का बाद साध्वी प्रज्ञा के मुंह से बस 5 शब्द ही निकले. वो थे- जो बोलेंगे वकील ही बोलेंगे, लेकिन 6 साल पहले साध्वी प्रज्ञा ने जिन शब्दों में अपने टॉर्चर की कहानी सुनाई थी, वो बहुत खौफनाक और हैरान करने वाले थी.
कोर्ट में रो पड़ीं साध्वी तो वकील ने कही ये बात
मालेगांव ब्लास्ट केस में गुरुवार को जब NIA स्पेशल कोर्ट ने फैसला सुनाया, तब कोर्टरूम खचाखच भरा हुआ था. फैसले के लिए 11 बजे का वक्त तय था, लेकिन सभी आरोपी 10 बजे से ही कोर्ट में आना शुरू हो गए थे. केस की मुख्य आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की बुलाहट हुई. वो विटनेस बॉक्स में पहुंचीं और जिस वक्त जज एके लाहोटी फैसला पढ़ रहे थे, वो वहीं मौजूद रहीं. पूरे ऑर्डर को सुनती रहीं. कोर्ट में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर अपनी बात रखते हुए रो पड़ीं. जब उनके वकील जेपी मिश्रा से पूछा गया कि साध्वी रोईं क्यों? इसके जवाब में उन्होंने जो कहानी सुनाई, वो बहुत दर्दनाक थी.
साध्वी प्रज्ञा के वकील जेपी मिश्रा ने बताया कि वह इस बात पर रोईं कि वो कोर्ट से बरी हो गई हैं, लेकिन समाज जिस सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए , उस दृष्टि से नहीं देखता है. आपको बताऊं..इस केस में आरोपी नंबर 7 राकेश धावड़े के खिलाफ चार्ज भी फ्रेम नहीं हुआ था.उसकी वाइफ कोर्ट में गवाही देते विटनेस बॉक्स में गिर गई थी, कोर्ट ने पूछा क्या बात है तो बोलीं- 5 साल के बच्चे को एडमिशन के लिए स्कूल में लेकर जाती हूं..हस्बेंड बरी हो गए, फिर भी स्कूल में एडमिशन नहीं मिलता, क्योंकि पिता का नाम राकेस धावड़े हैं. जब मैंने अपने पिता का नाम डाला तब जाकर एडमिशन हुआ. कोर्ट से छूटने के बाद भी समाज के देखने की दृष्टि सही नहीं होती.ये अपमान का घूंट पीना पड़ता है.इसका दुख उनको था.
दिन-रात मारते थे, पूरा नर्वस सिस्टम ढीला पड़ जाता था- साध्वी प्रज्ञा
साध्वी ने आगे बताया कि हम सुन्न पड़ जाते थे. ये दिन और रात मारते थे. उन्होंने आगे कहा था कि मैं आपके सामने पीड़ा नहीं बता रही हूं, लेकिन इतना कह रही हूं कि और कोई बहन आज के बाद कभी इस पीड़ा का सामने न करे. वो बाल्टी में गर्म पानी लाते थे. उसमें नमक डालते थे. हमारे हाथों को उसमें डुबोते थे. जमीन पर भी कुटवाते थे, जिससे वो थोड़े मुलायम होते और पीटना शुरू कर देते थे. पिटाई उल्टा लटकाकर की जाती थी. इस प्रताड़ना से हाथ में पस पड़ गई थी. सोने नहीं दिया जाता था. गंदी-गंदी गालियां दी जाती थीं. जब मैं जेल से बाहर आई तो लंबे समय तक बिस्तर पर रहना पड़ा. पूरे शरीर में सूजन आ गई थी. इसके बाद कैंसर हुआ और रीढ़ की बीमारी भी हो गई थी. ये टॉर्चर सिर्फ इसलिए किया गया कि वो कहलवाना चाहते थे कि ब्लास्ट मैंने किया है.