बीजेपी संसदीय बोर्ड का नए सिरे से गठन किया गया है. यह पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक संस्था है. बीजेपी संसदीय बोर्ड में किए गए बड़े बदलाव के तहत पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को हटा दिया गया है जबकि कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा इसमें शामिल किए गए हैं. बीजेपी संसदीय बोर्ड के सदस्यों में पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा उनके कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री राजनाथ सिंह और अमित शाह भी शामिल हैं. नितिन गडकरी का इस महत्वपूर्ण समिति से बाहर होना आश्चर्यजनक है. गडकरी, नरेंद्र मोदी कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री हैं, वे बीजेपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. आमतौर पर पार्टी, अपने पूर्व अध्यक्ष को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करती है.
पार्टी की ओर से जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक, राज्यसभा सदस्य व पार्टी के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लक्ष्मण, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा, पार्टी की राष्ट्रीय सचिव व पूर्व सांसद सुधा यादव और वरिष्ठ नेता व पूर्व सांसद सत्यनारायण जटिया को संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया गया है.
केंद्रीय मंत्री और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने संसदीय बोर्ड में फिर से जगह बनाई है. संसदीय बोर्ड में सबसे चौंकाने वाला चेहरा कर्नाटक के बीजेपी लीडर बीएस येदियुरप्पा है जिन्होंने पिछले वर्ष ही राज्य के सीएम पद से इस्तीफा दिया है. 77 वर्षीय येदियुरप्पा, पार्टी की 'अलिखित' आयु सीमा को पार कर चुके हैं. सूत्र बताते हैं कि येदियुरप्पा कुछ समय से नाराज चल रहे हैं, ऐसे में संसदीय बोर्ड में स्थान देकर उन्हें 'संतुष्ट\ करने का प्रयास किया है. हिमंता बिस्व सरमा के लिए इस बार असम में सीएम पद के लिए स्थान खाली करने वाले पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाला को संसदीय बोर्ड के साथ केंद्रीय चुनाव समिति में भी स्थान दिया गया है.
इसके साथ ही बीजेपी महासचिव अरुण सिंह की ओर से जारी विज्ञप्ति में केंद्रीय चुनाव समिति के 15 सदस्यों के नाम का ऐलान किया गया है. विज्ञप्तिा में कहा गया कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति का गठन किया है जिसके सदस्य इस प्रकार होंगे- जेपी नड्डा (अध्यक्ष), नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह, बीएस येदयुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के. लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया, भूपेंद्र यादव, देवेंद्र फडणवीस, ओम माथुर, बीएल संतोष और श्रीमती बनथी श्रीनिवास.
सीईसी में संसदीय बोर्ड के सभी सदस्यों के अलावा आठ अन्य सदस्य होते हैं. चूंकि गड़करी और चौहान संसदीय बोर्ड का सदस्य होने के नाते सीईसी के सदस्य थे, इसलिए पार्टी की इस महत्वपूर्ण इकाई से भी उनकी छुट्टी हो गई है. भाजपा संविधान के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष के अलावा 10 अन्य संसदीय बोर्ड के सदस्य हो सकते हैं. पार्टी का अध्यक्ष संसदीय बोर्ड का भी अध्यक्ष होता है. अन्य 10 सदस्यों में संसद में पार्टी के नेता को शामिल किया जाना जरूरी है. पार्टी के महासचिवों में से एक को बोर्ड का सचिव मनोनीत किया जाता है.
चौहान एकमात्र मुख्यमंत्री है जो लंबे समय से संसदीय बोर्ड के सदस्य थे. शाह जब 2014 में भाजपा के अध्यक्ष बने थे, तब उन्होंने चौहान को संसदीय बोर्ड में जगह दी थी. शाह ने उस वक्त वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को संसदीय बोर्ड से हटाकर मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया था.
संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन में भाजपा ने सामाजिक और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का भी खासा ख्याल रखा है. भाजपा संसदीय बोर्ड में जगह बनाने वाले लालपुरा पहले सिख नेता हैं. वह इसमें अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व करेंगे. सोनोवाल पूर्वोत्तर भारत से ताल्लुक रखने वाले पहले आदिवासी नेता हैं, जिन्हें भाजपा संसदीय बोर्ड में जगह दी गई है.
महिलाओं के प्रतिनिधि के तौर पर सुधा यादव को इसमें शामिल किया गया है, जबकि के लक्ष्मण ओबीसी समुदाय से आते हैं और वह तेलंगाना से ताल्लुक रखते हैं. येदियुरप्पा कर्नाटक से हैं और वह वहां के प्रभावी लिंगायत समुदाय से आते हैं. इस प्रकार से संसदीय बोर्ड में दक्षिण से दो नेताओं को जगह दी गई है कर्नाटक और तेलंगाना में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं.
इन बदलावों के बाद बाद संसदीय बोर्ड और सीईसी में अब कोई भी पद खाली नहीं है. साल 2020 में भाजपा का अध्यक्ष बनने के बाद नड्डा ने पहली बार इनमें परिवर्तन किया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के निधन और एम वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति और थावरचंद गहलोत के राज्यपाल बन जाने के बाद से संसदीय बोर्ड में कई रिक्तियां थी.
भाजपा सूत्रों ने बताया कि संसदीय बोर्ड में जगह देकर पुराने कार्यकर्ताओं और उनके अनुभवों का सम्मान करते हुए उन्हें ‘पुरस्कृत' किया गया है. उन्होंने कहा कि येदियुरप्पा, जटिया और लक्ष्मण ने पार्टी के लिए अपना जीवन खपा दिया और पार्टी के उभार में अहम योगदान दिया है.
पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘‘इन बदलावों में विविधता पर भी जोर दिया गया है. सोनोवाल पूर्वोत्तर से हैं तो येदियुरप्पा और लक्ष्मण दक्षिण से हैं. लालपुरा के रूप में सिख समुदाय का भी इसमें प्रतिनिधित्व है.'' उन्होंने कहा कि सुधा यादव ने राजनीति में खुद अपना मुकाम बनाया है, जिनके पति करगिल के युद्ध में शहीद हो गए थे.
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